लखनऊ: स्वामी प्रसाद मौर्य ने 5 साल तक भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सत्ता का लाभ लिया. चुनाव नजदीक आने पर सपा से जुड़ गए. 5 साल पहले बसपा का दामन छोड़ कर भाजपा के साथ खड़े हो गए थे. बीते कुछ दिनों में कोई उठापटक के बाद धर्म सिंह सैनी, दारा सिंह चौहान से लेकर कांग्रेस विधायक आदित्य सिंह, सपा विधायक हरिओम यादव जैसे कई दल बदलू नेताओं के नाम सामने आए.
राजनीतिक दल इसको लेकर भले ही उत्साहित क्यों न हो, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इसका ज्यादा असर अब विधानसभा के आगामी चुनावों पर देखने को नहीं मिलेगा. उनकी माने तो किसी भी पार्टी से जुड़ा हुआ मतदाता अब तक अपना मन बना चुका होता है. हां 20 प्रतिशत वोट फ्लकचुएट करता है. इन हालातों में ऐसे नेताओं के दल-बदल से दो से चार प्रतिशत वोट के प्रभावित होने की संभावना हमेशा बनी रहती है.
लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग के वरिष्ठ शिक्षक और राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर संजय गुप्ता कहते हैं कि वोटर भी अब समझदार हो चुका है. वह जानता है कि जिन नेताओं ने 5 साल तक सत्ता का सुख भोगा, उन्हें अचानक क्यों दलितों और पिछड़ों की याद आ गई. एक आम मतदाता को भी समझ में आता है कि यह विशुद्ध रूप से अवसरमा देता है और स्वार्थ की राजनीति है. 5 साल तक जिस पार्टी के साथ आप सत्ता में बैठे थे, उसमें आपको अचानक खामियां नजर आ रही है.
प्रोफेसर गुप्ता का कहना है कि बार-बार राजनीति में नैतिक मूल्यों की बात होती है. मतदाता भी चाहता है कि उसका नेता एक विचारधारा से जुड़ा रहे. उनका कहना है कि इन दल बदलू नेताओं पर राजनीतिक दल भले ही दांव क्यों न लगाएं, लेकिन पब्लिक अब इनके बारे में समझ चुकी है.