लखनऊ: राजनीति का एक ऐसा दौर भी था जब राजनेता गांव-गांव और घर-घर जाकर अपना चुनावी प्रचार किया करते थे. लगभग 10-15 साल पहले सोशल मीडिया अस्तित्व में आया, जिसके बाद से चुनाव के दौरान होने वाले प्रचार में भी बदलाव होना शुरू हुआ. आज राजनीतिक पार्टियों और राजनेताओं ने चुनाव प्रचार के लिए सोशल मीडिया को अपना प्रमुख साधन बना लिया है.
यूं तो सभी लोग फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सप्प आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल शुरू से कर रहे हैं. लेकिन भारतीय राजनीति में इसकी असल शुरुआत साल 2014 के लोकसभा चुनाव के साथ हुई. जब बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा पसंदीदा राज नेता बन गए. जिसके बाद बीजेपी ने सोशल मीडिया को अहम राजनीतिक हथियार के तौर पर युवाओं तक पहुंचने के लिए इस्तेमाल किया. जिसका फायदा भी बीजेपी को भरपूर मिला और पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. अन्य राजनीतिक दलों ने उसके बाद से ही सोशल मीडिया को अपना हथियार बना लिया.
वहीं छोटी या बड़ी सभी राजनीतिक पार्टियां व राजनेताओ ने अपना अपना आईटी सेल बना रखा है. जिसके जरिए वो अपना प्रचार व प्रसार करती हैं. कई राजनैतिक दिग्गज जैसे बसपा सुप्रीमो मायावती का मानना था कि उनके समर्थक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इतने एक्टिव नहीं है. लेकिन सोशल मीडिया की ताकत को समझते हुए हाल ही के दिनों में मायावती ने भी अपना टि्वटर अकाउंट बनाया जिसे उनकी आईटी सेल हैंडल करता है.वहीं आईटी सेल के जरिए राजनेता खुद का व अपनी पार्टी का प्रचार व प्रसार करते हैं. वहीं फेसबुक ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लाइक्स और फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए मोटी रकम भी खर्च करते हैं.