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दरकती जा रही है उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सियासी जमीन ! - members of uttar pradesh legislative assembly

कभी जनता के दिलों पर राज करने वाली नेहरू गांधी परिवार के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में सिमटती जा रही है. पार्टी के बड़े नेता साथ छोड़कर जा रहे हैं. प्रियंका गांधी को यूपी की जिम्मेदारी मिलने के बाद भी कार्यकर्ताओं में निराशा की स्थिति बनी हुई है. हालांकि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व प्रियंका गांधी के सहारे किसी चमकत्कार के भरोसे बैठा है.

उत्तर प्रदेश में सिमटती कांग्रेस
उत्तर प्रदेश में सिमटती कांग्रेस

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Published : Nov 27, 2020, 12:25 PM IST

लखनऊःकहते हैं, सियासत में शिकस्त होती है तो शान जाती है. इसी शान को बचाने के लिए राजनीतिक पार्टियां कई तिकड़म करके, जनता के दिलों में बने रहना चाहती है. लेकिन सबसे पुरानी और देश भर में सबसे ज्यादा सत्ता का सुख भोगने वाली पार्टी भारतीय नेशनल कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में बीते तीन दशक से पटखनी खाती जा रही है... प्रदेश में अपने वजूद को फिर से कायम करने के लिए, कांग्रेस ने कई तरह से राजनीतिक विसात विछाए, लेकिन इनका हर एक मोहरा, पहली चाल में ही विरोधियों के आगे धरासाई होता गया.

कभी जनता के दिलों पर राज करने वाली नेहरू गांधी परिवार के नेतृत्व वाली यह पार्टी क्या अब जनता के दिलों से निकल चुकी है, चुनाव दर चुनाव अपने वजूद को खोती जा रही कांग्रेस की हालत देखकर तो, यही लग रहा है.

देखें रिपोर्ट

राजीव गांधी के फैसलों ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल !

आखिर यूपी में कांग्रेस की यह दुर्दशा क्यों हुई. सवाल गंभीर है, जवाब जानने के लिए हम यूपी की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजबहादुर सिंह के पास पहुंचे, तो जो उत्तर मिला वह सियासत की ऐसी विशेषता की तरफ ले गया जहां कहा जाता है कि राजनीति में मुर्दे कभी गाड़े नहीं जाते. राज बहादुर सिंह का कहना है कि पार्टी में गिरावट 1986- 1987 में ही शुरू हो गई थी जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शाहबानो के केस में सुप्रीम कोर्ट से इतर फैसला ले लिया था. इसके अलावा एक समुदाय को लुभाने के लिए अयोध्या में राम मंदिर के कपाट खोलने की चाल चली थी. यहीं से लोगों का कांग्रेस से मोहभंग होने लगा था. कांग्रेस को कभी बैकवर्ड ने वोट किया, अगर किया भी तो यह संख्या काफी कम रही होगी, लेकिन जो वर्ग कांग्रेस को वोट करते थे वह भी समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी में चले गए. यहीं से कांग्रेस कब पतन शुरू हो गया.

यकीनन, तब के फैसले जो भी हों, लेकिन उसका एक नकारात्म असर आज की तथाकथित प्रगतिवादी भारतीय राजनीति पर जरूर पड़ती दिखाई दे रही है. और इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है.1980 से 1985 तक का दौर ऐसा रहा जब... लोकसभा की 85 सीटें कांग्रेस के हिस्से आती थीं. 280 से लेकर 364 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का ही कब्जा रहता था. पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज रहती थी.स्थिति यह है कि अब लोकसभा में उनका एक सांसद उत्तर प्रदेश से रह गया है तो विधानसभा में सिर्फ सात. उसमें भी एक-दो बगावत ही करते रहते हैं. अगर पार्टी को अपनी स्थिति में सुधार करना है तो टि्वटर छोड़कर फिजिकली लोगों से संपर्क करना होगा. जनता के बीच जाना होगा. सभी वर्गों से समान व्यवहार करना होगा. इससे ही हो सकता है कि फिर से कांग्रेस की स्थिति पहले की तरह हो जाए. फिलहाल इस तरफ पार्टी का कोई ध्यान नहीं है.

लोकसभा में यूपी से एकमात्र सांसद

राज्यसभा सांसद की तरह ही लोकसभा में यूपी से कांग्रेस की एकमात्र सांसद ही है. वह है आल इंडिया कांग्रेस की कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी. 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ उन्हें ही विजयश्री हासिल हुई.उनके बेटे राहुल गांधी भी इस चुनाव में हारकर उत्तर प्रदेश छोड़कर केरल चले गए. सोनिया उत्तर प्रदेश के रायबरेली से सांसद है तो उनके बेटे और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी केरल के वायनाड से.

लोकसभा में कांग्रेस की स्थिति

लोकसभा में कांग्रेस की स्थिति

विधानसभा में सात तो विधान परिषद में सिर्फ एक

उत्तर प्रदेश के 403 विधायकों में से कांग्रेस के हिस्से में सिर्फ सात विधायक ही रह गए हैं. उनमें भी दो विधायक बगावत कर चुके हैं. वहीं, विधान परिषद की बात की जाए तो कांग्रेस का सिर्फ एक ही विधान परिषद सदस्य रह गया है.

विधानसभा में कांग्रेस की स्थिति

विधानसभा में कांग्रेस की स्थिति

यूपी में नहीं चल पा रहा है राहुल गांधी का जादू

सोनिया गांधी के कमान समान संभालने तक तो प्रदेश में पार्टी की हालत कुछ हद तक ठीक रही. 2002 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में राहुल गांधी की जोरदार इंट्री से कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया. भट्टा परसौल के किसान आंदोलन में आधी रात पैदल चलकर पहुंचने वाले एंग्री यंग मैन राहुल गांधी से लोगों को एक उम्मीद बनी, लेकिन तब राज्य में अपने विस्तार लगी बहुजनसमाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने राहुल गांधी के धार को कुंद कर दिया... तब से राहुल गांधी के चमत्कार का आज भी पार्टी कार्यकर्ताओं को इंतजार है.

2002 के विधानसभा से कांग्रेस का शुरू हुआ पतन आज भी बदस्तूर जारी है. आज 2020 में कांग्रेस की हालत किसी नई नवेली पार्टी की मानिंद होती जा रही है. बीते दो दशक से पार्टी ने प्रदेश में कई तरह के प्रयोग किए. कई आंदोलन किए, लेकिन यहां मजबूती से खड़ी दो क्षेत्रीय पार्टी सपा और बसपा के आगे हमेशा मुंह की खानी पड़ी. जातीय और धार्मिक समीकरण में बंधे वोट बैंक कहीं जाने वाली जनता जो कभी एक गुच्छे के समान कांग्रेस के साथ रहकर उसमें अपना हित देखती थी वह कब ढाख के तीन पात की तरह अलग हो गई. किसी को पता तक न चला.

पार्टी को मजबूत करने का प्रयास जारीः बृर्जेंद्र सिंह

कांग्रेस की हुई इस हालत पर कांग्रेस प्रवक्ता बृर्जेंद्र सिंह की अपनी ही दलील है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी का गौरवशाली इतिहास रहा है लेकिन यह जरूर है कि इस समय पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. कभी लोकसभा और विधानसभा की सभी सीटें कांग्रेस के हिस्से आती थीं लेकिन अब लोकसभा और राज्यसभा में उत्तर प्रदेश से सिर्फ एक एक सांसद तो विधान परिषद में एक और विधानसभा में सात विधायक ही रह गए हैं. हम मानते हैं कि अब पार्टी कमजोर हुई है, लेकिन पार्टी को फिर से मजबूत करने के प्रयास भी शुरू हो गए हैं.

नेतृत्व के ध्यान न देने से पार्टी छोड़ रहे नेता

अपने ही घर में विरोध के सुर से कांग्रेस में संग्राम मचा हुआ है. जगदंबिका पाल, संजय सिंह, अमिता सिंह, रानी रत्ना सिंह, रीता बहुगुणा जोशी और अभी हाल में अनु टंडन जैसे तमाम बड़े नेता हैं जो कांग्रेस छोड़कर जा चुके हैं. बगावती नेताओं की फेहरिश्त लंबी है, लिहाजा नाम गिनाने में समय की बर्बादी ही है.

कभी कांग्रेस की कसमें खाने वाले अमित त्यागी से जब हमने पार्टी छोड़ने की वजह पूछी तो उन्होंने जो बताया वो हैरान करने वाला है. उन्होंने कहा कि पिछले 20 सालों से लगातार कांग्रेस पार्टी की सेवा की है. पार्टी के लिए संघर्ष किया है, लेकिन अब जिनकी कांग्रेस की विचारधारा नहीं रही है वही हम से सवाल कर रहे हैं कि हम कौन हैं? नेतृत्व ने पिछले आठ माह से न कोई प्रभार दिया और न ही संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया गया. ऐसे में भला पार्टी की स्थिति नहीं होगी? मैं पार्टी के विभिन्न पदों पर रहा हूं. एआईसीसी का इलेक्टेड मेंबर हूं. उसके बारे में अगर प्रदेश नेतृत्व यह कहता है कि यह कौन हैं तो इससे पार्टी की स्थिति का अंदाजा लग जाता है. यही सब वजह कांग्रेस पार्टी छोड़ने की रही है.

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कार्यालय

वहीं पार्टी प्रवक्ता बिजेंद्र सिंह कहते हैं कि जहां तक कांग्रेस पार्टी से नेताओं के जाने की बात है तो मुझे लगता है कि उन्हें विचार करना चाहिए था. पार्टी ने उन्हें बहुत कुछ दिया है. धोखा नहीं देना चाहिए. पहले जहां कांग्रेस पार्टी की सरकार होती थी तो उत्तर प्रदेश में बहुत विकास हुआ. कानून व्यवस्था आज की सरकारों की तुलना में काफी अच्छी रही. तब कांग्रेस लोगों की सरकार हुआ करती थी, लेकिन अब पार्टियों के नाम की सरकार होती है.

प्रियंका गांधी की रणनीति भी हुई फेल

राजनीति में आने के बाद प्रियंका गांधी से कांग्रेस को काफी उम्मीदें थी, लेकिन 2019 के लोकसभा में कांग्रेस अमेठी सीट भी हार गई. सोनिया गांधी की रायबरेली सीट बमुश्किल बची, लेकिन अब रायबरेली में भी कांग्रेस की हालत नाजुक नजर आ रही है. जिले के बड़े नेता अब भाजपाई हो चले हैं. देश की सत्ता का जो रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता था उस पर अब योगी आदित्यनाथ का कब्जा दिखाई दे रहा है. प्रधानमंत्री के सहयोग से उत्तर प्रदेश में योगी आदित्याथ ने जो किला बनाया है उसे ढहाने के लिए प्रियंका गांधी को मुश्किलों का समाना करना पड़ रहा है.

प्रियंका के नेतृत्व में मजबूत हो रही कांग्रेसः लल्लू

हालांकि कांग्रेस के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू लगातार पार्टी को आगे ले जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. किसानों के मुद्दे को लेकर योगी सरकार से दो-दो हाथ को तैयार हैं. पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि प्रियंका गांधी के उनके नेतृत्व में अब कांग्रेस, बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को तैयार करने के लिए गांव-गांव अभियान चलाने जा रही है. हालांकि इसका राजनीतिक असर क्या होगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा.

प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू आने वाले वक्त में पार्टी की गिरती साख को बदलने की बात कर रहे हैं. उनका मानना है कि बदलाव में वक्त लगता है. अब देखना ये होगा कि लंबे राजनीति इतिहास को समेटी हुई कांग्रेस पार्टी आने वाले वक्त में अपनी साख कितना बचा पाती है.

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