लखनऊ :शनासा यूं तो सब चेहरे बहुत हैं, मगर मिलने में अंदेशे बहुत हैं. सज़ा लब खोलने की भी मिली है, ख़मोशी में भी दुख झेले बहुत हैं... इन पंक्तियों के साथ अनेक गजल, लेख लिखने वाले अजीम शायर शारिब रुदौलवी का निधन बुधवार की सुबह हो गई. वे पिछले कुछ दिनों से बीमार थे. एक सप्ताह पहले उन्हें डेंगू हुआ था. वे राजधानी के अपोलो अस्पताल में भर्ती थे, वहीं उनका निधन हो गया. कर्बला अब्बासबाग में उनकी तदफीन होगी.
शायर शारिब रुदौलवी का साहित्यिक योगदान.
शारिब रुदौलवी (88) का नाम मुसय्यब अब्बास था जो बदलकर शारिब रूदौलवी कर लिया था. शारिब साहब ख़ुद में ऐसी तहज़ीब थे, जो उनके बाद कहीं देखने को नहीं मिलेगी. पूरी दुनिया में उर्दू को चाहने वालों में वह बहुत ही मोहब्बत और ख़ुलूस के साथ इज़्ज़त पाने वाले शख्स थे. हमारी खुशकिस्मती थी कि हम उनके साथ रहे, उन्हें देखा, उनसे सीखा और आज जो कुछ भी हैं, उसमें उनकी तरबियत का बहुत बड़ा हिस्सा है.
शायर शारिब रुदौलवी के निधन से शोक. शायर शारिब रुदौलवी की यादें.
शारिब रुदौलवी का जन्म 1 सितंबर 1935 में बाराबंकी के रुदौली में हुआ था जो अब अयोध्या में आता है. उनके वालिद और दादा का शुमार फ़ारसी और अरबी के बड़े आलिमों में होता था. शारिब रुदौलवी ने लखनऊ यूनीवर्सिटी से आला तालीम हासिल की. प्रोफ़ेसर सय्यद एहतिशाम हुसैन की निगरानी में अपना तहक़ीक़ी मक़ाला जदीद उर्दू अदबी तन्क़ीद के उसूल के मौज़ू पर लिखा. शारिब रुदौलवी ने दिल्ली यूनीवर्सिटी के दयाल सिंह कॉलेज में उर्दू के उस्ताद की हैसियत से अपनी अमली ज़िन्दगी का आगाज किया. 1990 में जवाहर लाल नेहरू यूनीवर्सिटी के शोबा-ए-उर्दू में ब-हैसियत रीडर रहे.
शायर शारिब रुदौलवी के निधन से शोक. पूरी जिंदगी उर्दू की सेवा करते रहे शारिब रुदौलवी
शारिब रुदौलवी उर्दू साहित्य का एक ऐसा नाम जिन्होंने अपना पूरा जीवन उर्दू की सेवा में लगा दिया. बेहद सादा जीवन और उर्दू के लिए उनका प्यार ही और लोगों से उन्हें अलग बनाता है. उर्दू की महफिलों में उनकी सक्रिय भूमिका इस बात की गवाही देती है कि उन्हें उर्दू से कितना लगाव था. उर्दू के साथ उन्होंने हिन्दी साहित्य में योगदान दिया, वो जीतने उर्दू साहित्यकारों के प्रिय थे, उतने ही हिंदी साहित्यकारों के प्रिय थे. उनके जाने से आज उर्दू जगत का सूरज डूब गया.
शायर शारिब रुदौलवी की यादें. शायर शारिब रुदौलवी के निधन से शोक.
सुल्तानपुर का नाम न बदलने की थी गुजारिश
प्रसिद्ध साहित्यकार, शायर प्रो. शारिब रुदौलवी ने सुल्तानपुर का नाम न बदलने की मांग की थी. वर्ष 2019 में उन्होंने राज्यपाल राम नाईक और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को पत्र लिखकर उनसे मांग कि थी. उस समय उन्होंने कहा था कि यह किसी बादशाह के नाम पर नहीं है. सुल्तान का मतलब बड़ा और पूरा शहर या गांव (रहने की जगह) को कहा जाता है. राज्यपाल द्वारा सुल्तानपुर का नाम कुशभुवनपुर रखने की बात पर कहा था कि अगर नाम बदलना ही है तो आजादी की जंग में शहीद उनके पूर्वज काजी वजीर अली के नाम पर वजीरपुर रखें. उन्होंने कहा कि इल्तुतमिश के समय से करीब 800 वर्षों तक इस परिवार ने सुल्तानपुर की सेवा की. अंग्रेजों ने परिवार के सभी 12 लोगों को घर में कैद कर तोप से उड़ा दिया था. दो साल तक इसका मुकदमा चला और काजी वजीर अली की जेल में मौत हो गई थी.
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जिस इकबाल के नाम पर MP सरकार देती है पुरस्कार, उस मशहूर शायर की लिखी दुआ बैन