लखनऊ:उत्तर प्रदेश में लगातार सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में इजाफा हो रहा है. सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल होने वाले लोगों को महंगे इलाज के चलते आर्थिक संकट झेलना पड़ता है. वहीं, घायलों को इलाज के लिए अस्पताल दर अस्पताल भटकना भी पड़ता है. ईटीवी भारत की टीम ने जब सड़क हादसों में घायल होने वाले लोगों से बात की तो उनका दर्द छलक उठा. उन्होंने कहा कि शरीर के घाव तो भर गए, लेकिन हादसे के बाद जो आर्थिक और मानसिक चोट लगी है उसके घाव आज भी ताजा हैं. उन्होंने बताया कि हादसे के बाद रोजगार भी गया, लाखों रुपये खर्च भी हुआ. यहां तक कि मकान बेचने की नौबत आ गई है.
संपत्ति बेचने की आई नौबत
राजाजीपुरम में रहने वाले सीपी सिंह बताते हैं कि उनका 2009 में एक्सीडेंट हुआ था. देर रात वे पत्नी के साथ घर आ रहे थे. उस दौरान शराब पी रखे लोगों ने उन्हें पीछे से धक्का मार दिया और मौके से फरार हो गए. सीपी सिंह सड़क पर ही पड़े रहे. इस दौरान उन्हें देखने वाला कोई नहीं था.
कर्ज लेकर कराया इलाज
सीपी सिंह ने बताया कि इलाज में उन्हें काफी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा. उनकी सारी कमाई बंद हो गई. जितना भी डिपॉजिट था. सब खत्म हो गया. कर्ज लेकर इलाज कराना पड़ा. यहां तक कि संपत्ति बेचने की नौबत आ गई. हादसे के बाद 5 साल तक बेड पर पड़ा रहा. उन्होंने बताया कि अगर उनका मानसिक संतुलन ठीक न रहता तो वे कबका मर चुके होते. सीपी सिंह ने बताया कि हादसा उनकी गलती से नहीं हुआ था. इसलिए वे मामले को कोर्ट लेकर गए थे, लेकिन उन्हें संतोषजनक मुआवजा नहीं मिला.
आलमबाग के रहने वाले गुरमीत सिंह बताते हैं कि करीब 2 साल पहले उनका एक्सीडेंट हुआ था. इसमें उनका दाहिना पैर कट गया. हादसे के बाद उन्हें ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया, जहां वे 48 घंटे रहे. उन्होंने बताया कि पहले तो डॉक्टर ने ड्रिल मशीन न होने का बहाना बताया. उसके बाद उनकी रिपोर्ट गलत बता दी. हेपेटाइटिस बी तक बता दिया गया.