लखनऊ: बुंदेलखंड की जनता ने एक बार फिर भाजपा पर भरोसा जताया है. 2017 की मोदी लहर में मिली बड़ी कामयाबी के बाद 2022 में विपक्षी पार्टियों ने यहां जाति समीकरण के जरिए भाजपा का खेल बिगाड़ने की रणनीति बनाई थी. लेकिन जनता ने विपक्ष के इस सियासी खेल को सिरे से खारिज कर दिया और नतीजा सबके सामने है. दरअसल, पिछले लंबे अरसे से यहां विकास के नाम पर कागजों पर रुपये आवंटित होते रहे, लेकिन यहां के बाशिंदों की समस्याओं का कोई स्थायी समाधान नहीं हो पा रहा था. वहीं, अपनी पुरानी समस्यायों से निजात पाने को यहां के मतदाता हर बार मतदान केंद्र का रुख तो करते थे. लेकिन परिणाम के बाद कोई भी उनकी ओर पलट कर नहीं देखता था. लेकिन 2017 में यहां की जनता ने भाजपा के पक्ष में मतदान कर सूबे में सरकार के गठन में अहम योगदान दिया और यहां की सभी 19 सीटों पर भाजपा को बड़ी जीत हासिल हुई थी. लेकिन 2022 में विपक्षी पार्टियों खासकर समाजवादी पार्टी ने यहां भाजपा के विकास मॉडल को धराशाई करने को जाती कार्ड को हथियार बनाया और अपने पुराने एमवाई यानी यादव+मुस्लिम समीकरण को साधने की भरपूर कोशिश की. लेकिन वो यहां नाकाम रहे.
बुंदेलखंड में कुल सात जिले हैं. जिसमें झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा और चित्रकूट शामिल हैं और यहां विधानसभा की कुल 19 सीटें हैं. इन सीटों पर साल 2017 में मोदी लहर पर सवार भाजाप ने क्लीन स्वीप किया था और सपा, बसपा व कांग्रेस यहां खाता तक नहीं खोल पाई थी. वहीं, इस बार भी पार्टी अपने प्रदर्शन को दोहराने में कामयाब रही है.
यहां तीन चरणों में हुए मतदान
बुंदेलखंड का इलाका सियासी रूप से काफी अहम माना जाता रहा है, जो यूपी और एमपी में फैला है. इसमें यूपी के 7 और एमपी के 6 जिले आते हैं. यूपी के झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा और चित्रकूट जिले की 19 विधानसभा सीटें है, जहां अबकी तीन चरणों में मतदान हुए. जिसकी शुरुआत तीसरी चरण से ही हो गई थी. तीसरे चरण में झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर और महोबा जिले की 13 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए थे तो चौथे चरण में बांदा की 4 और 5वें चरण में चित्रकूट की दो विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए थे. वहीं, 2017 की तरह ही इस बार भी यहां पार्टी ने शानदार प्रदर्शन कर विपक्षी पार्टियों के बढ़े हौसले को पस्त करने का काम किया और इसमें जनता का उसे भरपूर सहयोग मिला.
बुंदेलखंड क्षेत्र में एक समय कांग्रेस का वर्चस्व हुआ करता था और यहां की ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस का कब्जा था. लेकिन 1984 के बाद से इस इलाके में कांग्रेस की पकड़ लगातार कमजोर होती गई और उसकी जगह समाजवादी पार्टी और बसपा के बाद भाजपा ने ले ली. वहीं, 2014 में भाजपा ने बुंदेलखंड में अपनी सियासी जड़े मजबूत की तो फिर उसे कोई उखाड़ नहीं सका. 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बुंदलेखंड की सभी 19 विधानसभा सीटों को जीतकर अपना सियासी वर्चस्व कायम किया था. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा मिलकर भी बुंदेलखंड में भाजपा को रोक नहीं सकी थी, जिसका नतीजा था इस इलाके की पांचों संसदीय सीटों पर भाजपा कमल खिलाने में कामयाब रही थी. वहीं, 2022 में एक बार फिर यहां की जनता ने भाजपा को अपना समर्थन दे जाति की सियासत को नकारने का काम किया.
बुंदेलखंड का सियासी समीकरण
बुंदेलखंड क्षेत्र के जातीय समीकरण को देखें तो पाएंगे कि यहां ओबीसी और दलित वोटर अहम हैं. यहां 22%सामान्य वर्ग के वोट हैं, जिनमें ब्राह्मण और ठाकुरों की संख्या अच्छी खासी है. इसके अलावा वैश्य समुदाय भी हैं. वहीं, 43% ओबीसी वोटर हैं, जिनमें कुर्मी, निषाद, कुशवाहा जातियां बड़ी संख्या में हैं तो दलित वोटरों की संख्या 26% के आसपास है. जिनमें जाटव की संख्या काफी अधिक है और कोरी समुदाय भी ठीक ठाक है. सियासी समीकरण के चलते ही बुंदेलखंड का इलाका एक दौर में बसपा का मजबूत गढ़ हुआ करता था और मायावती की सोशल इंजीनियरिंग ने यहां खासा असर डाला था. एक तरफ मायावती की टीम के बड़े मुस्लिम चेहरे रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी बांदा से आते थे तो वहीं ओबीसी फेस कहे जाने वाले बाबू सिंह कुशवाहा भी यहीं के थे. दद्दू प्रसाद जैसे दलित नेता पार्टी में थे तो पुरुषोत्तम नारायण द्विवेदी जैसे ब्राह्मण चेहरा हुआ करते थे. लेकिन, एक-एक कर सभी ने मायावती का साथ छोड़ दिया.
भाजपा की सियासी मेहरबानी
बसपा ने मुस्लिम, ओबीसी, दलित और ब्राह्मणों को साधकर बुंदेलखंड में धाक जमाई थी, लेकिन अब इस क्षेत्र में भाजपा ने ओबीसी, ठाकुर, ब्राह्मण और दलित वोटों को अपने साथ जोड़कर अपनी जगह मजबूत कर ली. वहीं, यूपी में मोदी-योगी सरकार के आने के बाद बुदंलेखंड में विकास को रफ्तार मिली. बुंदेलखंड के विकास के लिए भाजपा सरकार ने बोर्ड का गठन भी किया. झांसी से चित्रकूट के क्षेत्र को डिफेंस कॉरिडोर घोषित गया तो इटावा से चित्रकूट तक बन रहे बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे के जरिए विकास की सौगात दी. महोबा अर्जुन सहायक परियोजना से बुंदेलखंड के किसानों को पानी की किल्लत से निजात मिलने की संभावना है तो चित्रकूट एयरपोर्ट से लेकर अन्य तमाम परियोजनाओं के जरिए भाजपा ने यहां विकास और हिंदुत्व को साथ लेकर चलने का काम किया, जिसका उसे लाभ भी मिला.
'रण' विजय के लिए भाजपा ने पहले ही खोल दिया था मोर्चा
चुनाव की तिथियां घोषित होने से पहले ही 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झांसी और महोबा में सभाएं की थीं तो वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी 13 फरवरी को झांसी, बबीना और मऊरानीपुर के दौरे किए थे. ब्राह्मण मतदाताओं को साधने के लिए यहां मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा गांव-गांव घूमे तो एमपी की पूर्व मुख्यमंत्री व झांसी से सांसद रहीं उमा भारती ने लोधी वोटों को भाजपा के पक्ष में खड़ा करने को गरौठा, बबीना और ललितपुर विधानसभा क्षेत्रों में सभाएं तक कीं. इधर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 16 फरवरी को हमीरपुर, महोबा और ललितपुर में जनसभाएं की थी और झांसी में रोड शो कर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की थी और 17 फरवरी को झांसी की बबीना और गरौठा विधानसभा में अपने संबोधन में सरकार की उपलब्धियां बताते हुए पार्टी प्रत्याशियों के लिए वोट की अपील की थी.