लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर सभी राजनीतिक दल तैयारियों में जुटे हैं. टिकट वितरण को लेकर सारे गुणा-गणित का ख्याल रखकर उम्मीदवारों की घोषणा कर रहे है. लेकिन समाजवादी पार्टी में बाहरी नेताओं को टिकट मिलने से लोगों में नाराजगी देखने को मिल रही है. लखनऊ की दो सीटों पर स्थानीय नेता का टिकट कटने से बगावत तो हो ही रही है, साथ ही वोटर भी पार्टी के प्रति अपना रुख बदल रहे हैं.
मोहन लाल गंज सीट पर बदले समीकरण-
लखनऊ की मोहन लाल गंज सीट पर साल 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के अम्बरीष सिंह पुष्कर विधायक चुने गए थे. लखनऊ में पुष्कर अकेले सपा के विधायक थे. इस सीट पर पुष्कर को स्थानीय नेता होने का लाभ मिला था. पुष्कर ने बसपा के राम बहादुर को भले ही महज 530 वोटों से हराया था. लेकिन इस सीट के लोग पुष्कर के साथ हमेशा खड़े दिखे थे. यही वजह थी कि पुष्कर ने विधायक बनने से पहले ही अपनी पत्नी को सपा सरकार में मोहन लालगंज से ही ब्लॉक प्रमुख और बीजेपी सरकार में विधायक रहते जिला पंचायत सदस्य बनवाया था.
2022 के चुनाव में भी पार्टी ने अम्बरीष पुष्कर को ही उम्मीदवार बनाया था. लेकिन अचानक पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने प्रत्याशी में बदलाव किया और पुष्कर का टिकट काटकर इसी सीट से सांसद रह चुकीं सुशील सरोज को उम्मीदवार घोषित कर दिया. ऐसे में अम्बरीश पुष्कर ने बगावती तेवर अख्तियार करते हुए मोहन लाल गंज से निर्दलीय पर्चा भर सपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
इस सीट पर स्थानीय बनाम बाहरी मुद्दा एक दशक से है हावी-
1993 में चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी मोहनलाल गंज सीट पर अपना विधायक बनाने में लगातार विफल हो रही थी. यहां के मतदाताओं ने बाहरी उम्मीदवारों पर अपनी रुचि कम दिखाई तो पार्टी ने 2012 के चुनाव में स्थानीय नेता चंद्रा रावत को प्रत्याशी बनाया और जीत हासिल की. इसके साथ ही 2017 के चुनाव में बीजेपी लहर के बाद भी जब सपा ने स्थानीय नेता अम्बरीष पुष्कर को टिकट दिया तो दोबारा सपा को जीत मिली. ऐसे में इस बार के चुनाव में सुशील सरोज को टिकट देना सपा को भारी पड़ सकता है. क्यों कि यहां का वोटर स्थानीय नेता से हट कर किसी को वोट देने में वरीयता देता है तो वो बसपा है.
कौन-कौन सीट से है दावेदार-
बीजेपी: अमरेश सिंह रावत
सपा: सुशीला सरोज
कांग्रेस: ममता चौधरी
बसपा: देवेंद्र कुमार
बागी निर्दलीय: अम्बरीष सिंह पुष्कर (वर्तमान सपा विधायक)
सरोजनी नगर सीट पर मचा घमासान-
लखनऊ की एक और ग्रामीण सीट सरोजनीनगर में भी यही हाल है. यहां सपा के कद्दावर नेता व शिवपाल के खास रहे शारदा प्रताप शुक्ला को टिकट न मिलने से शारदा प्रताप तो नाराज हैं ही, साथ ही उनके समर्थक व सपा कार्यकर्ता भी पार्टी से नाराज हो गए हैं. शारदा प्रताप शुक्ला को टिकट न देकर पार्टी ने अभिषेक मिश्रा को उत्तरी सीट सरोजनी नगर भेजा है. शारदा प्रताप शुक्ला की नाराजगी को देखते हुए बीजेपी ने उन्हें लपक लिया और आज उन्होंने पार्टी में शामिल कर लिया.
शारदा प्रताप सरोजनी नगर के स्थानीय नेता है और अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं. हालांकि अखिलेश-शिवपाल के विवाद के बीच वो शिवपाल के साथ हो लिए थे और 2017 के चुनाव में निर्दलीय लड़े थे. जिसमें वो 5 हजार से ज्यादा वोट नही पा सके थे. लेकिन यह कहना गलत होगा कि शारदा का इस सीट के मतदाताओं के बीच वर्चस्व व ब्राह्मण नेता के रूप में धमक कम हुई है. इसी के चलते बीजेपी से टिकट मिलते ही राजेश्वर सिंह ने शारदा के घर पहुंचकर उनका सहयोग मांगा था.
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बाहरी व स्थानीय का मुद्दा हावी-
मोहनलाल गंज सीट की ही तरह सरोजनी नगर सीट में भी यहां का मतदाता स्थानीय नेता को पार्टी से ज्यादा वरीयता देता है. 2012 के चुनाव में इस सीट पर बसपा के शंकरी सिंह व सपा के शारदा प्रताप के बीच मुकाबला था. दोनों ही नेता इसी सीट के निवासी थे. वहीं साल 2017 के चुनाव में लड़ाई सपा व बीजेपी की थी. बीजेपी ने पार्टी उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह को प्रत्याशी बनाया था. स्वाति का मायका इस सीट के अंतर्गत ही आता था. वहीं सपा के प्रत्याशी अनुराग यादव को बाहरी होने के नाते मतदाताओं का साथ नहीं मिला.
कौन कौन है सीट से दावेदार-
बीजेपी: राजेश्वर सिंह
सपा: प्रो.अभिषेक मिश्रा
बसपा: जलीस खान
कांग्रेस: रुद्र दमन सिंह
बागी निर्दलीय: शारदा प्रताप शुक्ला
मोहनलाल गंज व सरोजनीनगर में एक दशक से पत्रकारिता कर रहे अखिलेश द्विवेदी कहते है कि मोहनलाल गंज की जनता ने इस सीट से कई बार विधायक रहे आरके चौधरी का साथ तब तक नहीं दिया था जब तक वो यहां के नहीं हो गए थे. 2012 व 2017 में भी बसपा के कोर वोटर बाहुल्य सीट होने के बाद भी मतदाताओं ने स्थानीय नेताओं को वोट किया और सपा को जीत दिलाई. उनका मानना है कि पुष्कर का टिकट कटने से जनता व कार्यकर्ताओं दोनों में रोष है. बस पार्टी के नाते कार्यकर्ता सुशील सरोज के साथ मजबूरन खड़े हैं. वो कहते है कि स्थानीय प्रत्याशियों का टिकट काटना सपा को भारी पड़ सकता है.
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