लखनऊ: भूजल में लगातार प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है. बढ़ते प्रदूषण की वजह से शुद्ध जलापूर्ति नहीं हो पा रही है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि देश में रहने वाले हर एक नागरिक को प्रदूषण से मुक्त स्वच्छ जल पीने को मिले, लेकिन प्रदूषण से मुक्त जल देश के कई प्रदेशों में अभी भी नहीं मिल पा रहा है.
देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट. स्वच्छ जल आपूर्ति उपलब्ध कराना केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है. जमीनी हकीकत तो यह है कि भूमि से निकलने वाले भूजल को करीब 75 से 80 फीसदी इस्तेमाल में लिया जाता है, जिस पर जीवन निर्भर है. भूजल स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता से यूपी के कई जिले ऐसे हैं, जहां पीने का जल विषाक्त हो गया है. लेड, मैग्नीज आयरन, क्लोराइड, क्रोमियम, कैडमियम जैसे विषाक्त आर्सेनिक लवणों से जल प्रदूषित हो रहा है.
यूपी के कई जिले विषाक्त आर्सेनिक से प्रदूषित हैं. आर्सेनिक के साथ भूजल भंडारों में भारी धातुओं के साथ जीवाणुओं की भी भरमार है. इन परिस्थितियों में पीने के लिए शुद्ध पानी मुहैया कराना बड़ी चुनौती है. इसी के साथ प्रदूषित भूजल स्रोतों से की जाने वाली सिंचाई से यह विषाक्त प्रदूषक खाने-पीने की चीजों में चेन के जरिए आम आदमी की सेहत के लिए खतरा साबित हो रहे हैं.
बता दें कि भूजल प्रदूषण की स्थिति इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि उत्तर प्रदेश सहित ज्यादातर राज्यों में पेयजल और सिंचाई के लिए जलापूर्ति भूजल से ही होती है. भूजल स्रोतों के प्रदूषित होने की स्थिति में जलापूर्ति योजनाओं के बुरी तरह से प्रभावित होने के साथ-साथ आम आदमी के बीमारियों से ग्रसित होने की संभावना बनी रहती है.
प्राकृतिक संसाधनों का किया दोहन
स्थानीय निवासी अब्दुल रहमान ने कहा कि प्रदेश में जल प्रदूषण की जो स्थिति है, उसे हमने ही उत्पन्न की है. हमने ही अनमोल प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया. साथ ही उसे प्रदूषित भी किया. अब्दुल रहमान ने कहा कि पेड़-पौधे काट लिए गए, जल को प्रदूषित कर दिया गया, जहां उपयोग में नहीं लाना चाहिए, वहां अनमोल प्राकृतिक संपदा को फ्री का समझकर बहाव किया गया.
नहीं उपलब्ध हो पाता स्वच्छ पेयजल
यही नहीं नदियों में अपशिष्ट पदार्थ डाल दिए, औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाले रसायनिक जल को नदियों में प्रवाहित किया गया, नगर क्षेत्रों के सीवर के पानी को नदियों और तालाबों में जोड़ दिया गया. तमाम ऐसे कार्य किए गए, जिससे भूजल प्रदूषित हुआ. आज यह स्थितियां उत्पन्न हो गई हैं कि विश्व में अगर 10 लोगों की बात करें तो उनमें हर तीसरे व्यक्ति को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है. इसके बावजूद भी हम इसकी कीमत चुकाने के बाद भी अपनी आंखें खोलने का नाम नहीं ले रहे हैं.
यह कहते हैं संवैधानिक अधिकार
इन परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सुप्रीम कोर्ट ने नदियों में प्रदूषण और उससे लोगों की सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि साफ पर्यावरण और प्रदूषण रहित जल व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और इसे सुनिश्चित कराना कल्याणकारी राज्य का संवैधानिक दायित्व भी है. संविधान का अनुच्छेद 21 व्यक्ति को जीवन का अधिकार देता है. जीवन जीने के लिए शुद्ध जल उपलब्ध कराना व्यक्ति के अधिकार में शामिल है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि अनुच्छेद 47 और 48 में जन स्वास्थ्य ठीक करना और पर्यावरण संरक्षित करना राज्यों का दायित्व और जिम्मेदारी जरूर है. साथ ही देश में रहने वाले प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक संपदा जैसे वन, नदी, जंगल और जंगली जानवरों का संरक्षण व रक्षा करें और अपनी मौलिक कर्तव्यों का पालन करें.
इस समस्या पर ध्यान दे सरकार
पर्यावरणविद सुशील कुमार द्विवेदी ने ईटीवी भारत को भूजल में बढ़ रहे प्रदूषण के बारे में गहनता से जानकारी दी. साथ ही उन्होंने कहा कि हमें अपने कर्तव्यों को भी निभाना है. वहीं दूसरी ओर सरकारों को भी ऐसे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए और एक कमेटी बनाकर इस पर कठोर कानून लागू किया जाना चाहिए, नहीं तो आने वाले समय में लोगों को पीने योग्य पानी नहीं मिल पाएगा.
नदियों में बहाया जाता है गंदा पानी
पर्यावरणविद सुशील कुमार द्विवेदी ने कहा कि नदियों में लोग गंदगी करते हैं. औद्योगिक क्षेत्रों से रसायनिक व केमिकल युक्त जल को नदियों व तालाबों में बहाया जाता है. शहर और नगर क्षेत्रों में सीवरेज का पानी नदियों में जा रहा है. लखनऊ में गोमती नदी का हाल देख लीजिए किस तरीके से लोग नदी में अपशिष्ट पदार्थ डालकर उसके जल को प्रदूषित कर रहे हैं.
'जल है तो जीवन है'
पर्यावरणविद सुशील कुमार द्विवेदी ने कहा कि हमें अपने जल को बचाना है, क्योंकि 'जल है तो जीवन है, जल नहीं है तो जीवन संभव नहीं है'. इस प्रदूषित जल को पीने से तमाम बीमारियां घर कर जाती हैं. वैसे तो संवैधानिक रूप से देश में रहने वाले हर एक व्यक्ति को स्वच्छ वातावरण और स्वच्छ पीने योग्य पानी मिलना चाहिए, लेकिन 50 फीसदी लोगों तक ही स्वच्छ जल पहुंच पाता है.