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रानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस, ललित कला अकादमी में ऑनलाइन चित्रकला प्रतियोगिता

राजधानी लखनऊ में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर ललित कला अकादमी में उनकी स्मृतियों को ताजा करते हुए ऑनलाइन चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित कर रहा है. ये प्रतियोगिता 4 जून तक चलेगी. इस दौरान विजेताओं को 5 हजार रुपये का पुरस्कार भी दिया जाएगा.

उ. प्र. राज्य ललित कला अकादमी में आयोजित की गई चित्रकला प्रतियोगिता
उ. प्र. राज्य ललित कला अकादमी में आयोजित की गई चित्रकला प्रतियोगिता

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Published : Jun 18, 2021, 11:30 AM IST

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर आज यानि 18 जून को उ. प्र. राज्य ललित कला अकादमी में उनकी स्मृतियों को ताजा करते हुए ऑनलाइन चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित कर रहा है. ये प्रतियोगिता 21 जून तक चलेगी. बता दें कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने 18 जून, 1858 अंग्रेजों से युद्ध करते हुए रणभूमि में वीरगति पाई थी. रानी की स्मृतियों से कलाकारों को जोड़ने के लिए हो ये प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है.

अकादमी सचिव डाॅ. यशवंत सिंह राठौर ने प्रतियोगिता के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे रानी के संघर्ष की स्मृतियों के प्रति जागरूक करने और कलाकारों को इससे जोड़ने के लिए ऑनलाइन चित्रकला प्रतियोगिता 'रानी लक्ष्मीबाई की अमर स्मृतियां' आयोजित की जायेंगी. वहीं उन्होंने बताया कि प्रतियोगीता के 10 श्रेष्ठ विजेताओं को 5 हजार रुपये का पुरस्कार और प्रमाण पत्र भी दिया जायेगा. इसमें प्रदेश के रहने वाला कलाकार, स्नातक, परास्नातक, शोधार्थी और स्वतंत्र कलाकार भी इस प्रतियोगिता में भाग ले सकता है.

अकादमी सचिव ने बताया कि कलाकार अकादमी की वेबसाइटwww.fineartakadefineartakademiup.com पर फार्म और अन्य संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. इसके अलावा e-mail lalitkalaup@gmail.com पर भी जानकारी ले सकते हैं.

वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान और शौर्य की कहानी पूरी दुनिया के लिए आज भी एक मिसाल है. उनके पराक्रम का ही ये प्रभाव था कि जब रानी की जान पर संकट आया तो झांसी की एक छोटी सी रियासत लोहागढ़ के ग्रामीणों ने अंग्रेजों का रास्ता रोककर उन्हें खुली चुनौती दी थी. इस लड़ाई में करीब पांच सौ ग्रामीणों को अपनी जान गवानी पड़ी थी. जिनमें से अधिकांश पठान थे.

दरअसल जब झांसी पर अंग्रेजों ने हमला बोला तब अपने विश्वासपात्र सिपहसालारों की राय पर रानी कालपी कूच कर रही थीं. अंग्रेजों की सेना रानी का लगातार पीछा कर रही थी. झांसी को कब्जे में लेने से पहले अंग्रेजों ने लोहागढ़ के राजा को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए पत्र लिखा था. लेकिन राजा हिन्दूपत ने प्रस्ताव मानने से इनकार कर दिया था. 4 अप्रैल 1858 को रानी भांडेर से होते हुए जैसे ही लोहागढ़ की सीमा में पहुंची. यहां के ग्रामीणों ने अंग्रेज सैनिकों का रास्ता रोक लिया. जिसके बाद दोनों के बीच भयानक लड़ाई चली. अग्रेजों ने लोहागढ़ पर कब्जा करने के लिए हमला कर दिया. उधर रानी लक्ष्मीबाई कालपी के लिए सुरक्षित रवाना हो गई हैं.

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