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Pain during pregnancy : यूपी के कई मेडिकल कॉलेजों में एनेस्थीसिया डॉक्टर नहीं, जानिए कैसे कराए जा रहे प्रसव

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Published : Jan 18, 2023, 8:23 PM IST

Updated : Jan 18, 2023, 10:25 PM IST

यूपी के कई मेडिकल काॅलेज में एनेस्थीसिया डॉक्टर नहीं हैं. इससे अस्पताल पहुंचने वाली महिलाओं को प्रसव की असहनीय पीड़ा (Pain during pregnancy ) बर्दाश्त करनी पड़ती है. मेडिकल साइंस में प्रसव पीड़ा के निवारण का इलाज है, लेकिन एनेस्थीसिया डॉक्टरों की टीम नहीं होने से यह समस्या बनी हुई है. राजधानी लखनऊ के ही कई अस्पतालों में एनेस्थीसिया डॉक्टर नहीं हैं.

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लखनऊ : नॉर्मल डिलीवरी एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे हर महिला को गुजरना पड़ता है, लेकिन साथ ही असहनीय दर्द बर्दाश्त करना पड़ता है. दर्द निवारण के लिए इंजेक्शन का उपयोग किया जा सकता है. इसके लिए रीढ़ में एक पतले से कैथेटर के माध्यम से दवा दी जाती है. इसके बाद महिला को डिलीवरी का दर्द नहीं होता और बच्चा भी बिना ऑपरेशन के हो जाता है, लेकिन प्रदेश के कई मेडिकल कॉलेजों में एनेस्थसिया के डॉक्टर नहीं होने के कारण इस विधि का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. प्रदेश के सबसे बड़ी मेडिकल कॉलेज केजीएमयू के महिला विभाग में भी एनेस्थसिया टीम नहीं होने के कारण इस विधि द्वारा डिलीवरी नहीं कराई जा रही है. महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि हर महिला को अपने जीवन में प्रसव पीड़ा को जरूर बर्दाश्त करना पड़ता है. ऐसे में एपिडूरल इंजेक्शन कहीं न कहीं अच्छा और जरूरी भी है.

महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. सीमा मल्होत्रा के मुताबिक एपीडुरल दर्द से राहत पाने का एक तरीका है. इसका इस्तेमाल प्रसव के दौरान किया जाता है. यह शरीर के निचले हिस्से में लगातार हो रहे दर्द में राहत पहुंचाता है, जबकि महिला पूरे होश में होती है. यह रीजनल या लोकल एनेस्थीसिया होता है. इसलिए आपका पूरा शरीर इससे प्रभावित नहीं होता. आपके शरीर का निचला हिस्सा सुन्न हो जाता है, जबकि महिला सचेत रहती है. यह अनुभूति को कम कर देता है, मगर ऐसा नहीं है कि आपको पूरी तरह कुछ भी अहसास नहीं होगा. उन्होंने कहा कि अगर सभी महिला अस्पतालों में एनेस्थसिया के डॉक्टर हों तो गर्भवती महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी के दौरान होने वाली प्रसव पीड़ा से बचाया जा सकता है. कम उम्र में गर्भवती होने के कारण कई बार जच्चा-बच्चा की जान को खतरा रहता है. महिलाएं प्रसव पीड़ा बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं और दम तोड़ देती हैं. ऐसे में यह इंजेक्शन काफी मददगार साबित हो सकता है, अगर अस्पतालों में एनेस्थीसिया के डॉक्टर मौजूद रहें.

प्रसव कक्ष

हर गर्भवती महिला को देना संभव नहीं : डॉ. सीमा मल्होत्रा ने बताया कि एक महीने में करीब 800 से अधिक गर्भवती महिलाओं का प्रसव कराया जाता है. रोजाना के हिसाब से करीब 25 से 30 गर्भवतियों का प्रसव अस्पताल में होता है. ऐसे में हर गर्भवती महिला की काउंसिलिंग हम नहीं कर पाते हैं या उन्हें एपीडुरल इंजेक्शन के बारे में नहीं बता पाते हैं. वैसे तो एपीडुरल इंजेक्शन प्रथम पीड़ा से बचने के लिए काफी अच्छा माध्यम है. अस्पताल में हर गर्भवती महिला को एपीडुरल इंजेक्शन लगाएं ऐसा संभव इसलिए भी नहीं है, क्योंकि हर समय एनेस्थीसिया की टीम या विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं होते हैं. उन्होंने बताया कि देखा जाए कई बार अस्पताल में ऐसे केस आते हैं जिसमें महिला प्रसव पीड़ा नहीं बर्दाश्त कर पाती हैं. ऐसे में जच्चा बच्चा की मौत हो जाती है. ज्यादातर कम उम्र की महिलाओं के साथ यह समस्या होती है. उन्होंने कहा कि सभी का अलग इम्यून सिस्टम होता है और ऐसा ही प्रसव के दौरान भी होता है. कुछ महिलाएं प्रसव पीड़ा सह लेती हैं, लेकिन वर्तमान की महिलाएं प्रसव पीड़ा बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं.

प्रसव कक्ष

डॉ. सीमा ने कहा कि आज भी बहुत सारे लोग है जो इसके बारे में नहीं जानते हैं. इसके लिए जागरूकता की बेहद जरूरत है. हालांकि मौजूदा दौर की कुछ महिलाएं ऐसी आती है जो यह पूछती है कि क्या कोई ऐसी इंजेक्शन या दवा नहीं आती है, जिससे प्रसव पीड़ा को कम किया जाए. तब उन्हें हम एपिडुरल इंजेक्शन के बारे में बता देते हैं. क्वीन मैरी महिला अस्पताल में प्रदेशभर से गर्भवती महिलाएं इलाज के लिए आती हैं. खास बात यह है कि अस्पताल में रेफर के अधिक आते हैं. महिलाओं को अपने डॉक्टर से भी खुलकर बात करनी चाहिए, क्योंकि सरकारी अस्पताल में मरीजों की संख्या इतनी ज्यादा होती है कि हम चाह कर भी कुछ चीजें गर्भवती महिलाओं से नहीं कह पाते हैं. इस इंजेक्शन को लगाने के लिए एनेस्थीसिया टीम का होना अनिवार्य है. कोई भी महिला रोग विशेषज्ञ इस इंजेक्शन को नहीं लगाती है. वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ रंजना खरे के मुताबिक अस्पताल में एनेस्थीसिया के तीन डॉक्टर हैं. इंजेक्शन का इस्तेमाल नहीं करते हैं.


केजीएमयू प्रवक्ता डॉ. सुधीर ने कहा कि बहुत सालों से हमारे यहां एपीडुरल इंजेक्शन गर्भवती महिलाओं को दिया जा रहा है. इसके लिए केजीएमयू की एनेस्थीसिया विभाग काफी एक्टिव है. जो भी महिलाएं आती हैं डिलीवरी के दौरान एनेस्थसिया टीम मौजूद होती है. आमतौर पर एपीडुरल प्रसव शुरु होने के बाद दिया जाता है. इसलिए आपको शुरुआती संकुचन तो महसूस होंगे ही. एपीडुरल का असर दिखने में करीब 40 मिनट का समय लगता है तो इस दौरान भी आपको संकुचन महसूस होंगे. इसके अलावा एपीडुरल इंजेक्शन लगाने में भी दर्द और असहजता हो सकती है, क्योंकि यह इंजेक्शन आपकी रीढ़ में लगाया जाता है और अगर एपीडुरल उचित ढंग से काम न कर रहा हो और केवल आपके शरीर के निचले हिस्से के कुछ हिस्से को ही सुन्न करे तो डॉक्टर को यह इंजेक्शन दोबारा लगाना पड़ सकता है.

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Last Updated : Jan 18, 2023, 10:25 PM IST

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