लखनऊ: बिहार और बंगाल के बाद अब एआईएमआईएम (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) यूपी में पार्टी के लिए संभावनाएं तलाश रहे हैं और इसके लिए उन्होंने अभी से ही प्रदेश के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार भी शुरू कर दिया है. पूर्वांचल और अवध के साथ ही उन्होंने पश्चिमी यूपी के उन जिलों की विशेष सूची तैयार की है, जहां मुस्लिम मतदाता (Muslim voters) निर्णायक की भूमिका में हैं. इतना ही नहीं उन्होंने स्थानीय स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं की फौज बढ़ाने और प्रत्याशियों के चुनाव को खास रणनीति बनाई है, जिसके तहत वे जिलों के मौलवियों और छोटी पार्टियों के नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं.
शाहनवाज आलम और हीरो बाजपेई. साथ ही विधानसभावार समस्याओं की सूची बनाने और मुस्लिम युवाओं को पार्टी से जोड़ने को उन्होंने प्रदेश पार्टी इकाई के नेताओं को जिलेवार सदस्यता कार्यक्रम में लगने का निर्देश दिया है. वहीं, लगातार सभाओं के जरिए अपने चिर-परिचित अंदाज में समाजवादी पार्टी के साथ ही बसपा और अन्य उन दलों पर हमले कर रहे हैं, जो पिछले लंबे समय से मुस्लिम मतदाताओं का वोट हासिल कर जीत दर्ज करते आ रहे हैं. सूबे में लगातार दौरा कर अपनी पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने के साथ ही वे खुद को मुस्लिमों का असल रहनुमा बताए फिर रहे हैं.
ओवैसी कहते हैं कि यूपी में हर समाज का एक नेता है, अगर किसी समाज का नेता नहीं है, अगर किसी समाज की कोई आवाज नहीं है, अगर किसी समाज को दबाया जा रहा है और अगर किसी समाज को कुचला जा रहा है तो वो हैं मुसलमान. ओवैसी की मानें तो सूबे की सत्ताधारी पार्टी भाजपा का तो चाल चरित्र सबके सामने है, लेकिन समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जो ओबीसी और मुस्लिम मतदाताओं को साध सत्ता का सुख भोगते रहे हैं ने कभी भी इनकी फिक्र नहीं की. चुनाव के आते ही मुस्लिम इन दलों की प्राथमिक सूची में होता है और चुनाव बाद सूचीहीन. यानी आज देश व प्रदेश में मुस्लिम केवल वोट बैंक बनकर रह गया.
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वहीं, कांग्रेस को बेदम पार्टी करार देते हुए ओवैसी कहते हैं कि कांग्रेस अब किसी का भला नहीं कर सकती, क्योंकि उसके अपने ही उसके लिए काल बन गए हैं. यही कारण है कि एक के बाद एक पार्टी का नेता पंजे से खुद को अलग कर रहा है. पार्टी छोड़ने वाले हर नेता को पता है कि उनका और उनके समाज का कांग्रेस के साथ रहकर कोई फायदा नहीं होने वाला है.
इतना ही नहीं ओवैसी ने आगे कहा कि अगर आप दुनिया के सबसे बड़े हकीम को भी ले आएंगे और कहेंगे कि इस पार्टी को जिंदा करने की कोई दवा है तो हकीम साहब कहेंगे तुझे ताकत की दवा दे सकता हूं. लेकिन इस पार्टी में अब कुछ नहीं रहा. जिंदगी नाम की कोई चीज ही नहीं रही.
असदुद्दीन ओवैसी और ओम प्रकाश राजभर वहीं, हैदराबाद के सांसद व ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने अब सूबे में अपना सियासी आकार और आधार बढ़ाने को सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान भी कर दिया है. ओवैसी की नजर भले ही सूबे की मुस्लिम बहुल सीटों पर है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर तक में चुनाव लड़ने का प्लान बनाए हैं.
गौर हो कि यूपी में 20 फीसद के करीब मुस्लिम मतदाता हैं और सूबे की कुल 143 सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव माना जाता है. इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिमों की संख्या 20 से 30 फीसद के बीच है तो वहीं, 73 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम आबादी 30 फीसद से अधिक हैं.
सूबे की करीब तीन दर्जन ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर जीत दर्ज कर सकते हैं और करीब 107 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां अल्पसंख्यक मतदाता चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं और इन्हीं सीटों पर ओवैसी खास तौर निगाहें गड़ाए हुए हैं.
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इधर, ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली की मानें तो 2022 में पार्टी ने सूबे की जिन सौ सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है, उन्हें चिन्हित कर लिया गया है. शौकत ने बताया कि सूबे की 75 में से 55 जिलों की विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है, जिनमें से ज्यादातर सीटें पश्चिम उत्तर प्रदेश की है.
यही कारण है कि हमने पश्चिम यूपी में 60 फीसद प्रत्याशी देने और पूर्वांचल में 30 फीसद उम्मीदवार उतारने का निर्णय लिया है. इसके अलावा मध्य यूपी में 10 से 15 सीटों का टारगेट लिया गया है, जिनमें कानपुर, लखनऊ, सीतापुर और सुल्तानपुर जिले की सीटें शामिल हैं.
शौकत बताते हैं कि पश्चिम यूपी के बरेली, पीलीभीत, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, अमरोहा, मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, संभल, बुलंदशहर, फिरोजाबाद, आगरा और अलीगढ़ जनपद की विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए चयन किया गया है तो वहीं, पूर्वांचल में गोरखपुर, श्रावस्ती, जौनपुर, बस्ती, गाजीपुर, आजमगढ़, वाराणसी, बहराइच, बलरामपुर, संतकबीरनगर, गोंडा, प्रयागराज और प्रतापगढ़ की सीटों को चिन्हित किया गया है. इसके अलावा पार्टी अब चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों से आवेदन भी ले रही है. फिलहाल तक हर एक सीट से 5 से 10 संभावित नाम आए हैं.
सूबे के सियासी जानकारों की मानें तो ओवैसी के निशाने पर सपा, बसपा और कांग्रेस हैं, क्योंकि इन्हीं दलों को मुस्लिमों का वोट मिलता रहा है. इसी को ओवैसी झटकना चाहते हैं. वहीं, दूसरी ओर सूबे में सपा, बसपा, कांग्रेस और मुस्लिम वोटों की सियासत करने वाले सियासी दलों से यहां के मुस्लिम खासा नाराज और मायूस हैं और भरोसेमंद विकल्पों की तलाश में हैं.
हालांकि, ओवैसी ने मुस्लिम को विकल्प देने के मकसद से ओम प्रकाश राजभर और शिवपाल यादव के साथ मिलकर कुछ छोटे दलों का भागेदारी संकल्प मोर्चा बनाने को जरूर आगे, लेकिन अब ओम प्रकाश राजभर किसी भी समय पल्टी मार सकते हैं, क्योंकि उन्होंने भाजपा से गठबंधन की इच्छा जाहिर की है, लेकिन भाजपा से गठबंधन को उन्होंने कुछ शर्तें भी रखी हैं. ऐसे में अगर भाजपा उनकी मांगों को मान लेती है तो फिर वे भागेदारी संकल्प मोर्चा को टाटा बाय-बाय कर देंगे.
बता दें कि वर्तमान में यूपी विधानसभा में सबसे कम महज 24 मुस्लिम विधायक हैं. मुस्लिम विधायकों की यह भागीदारी 6 फीसद से भी कम है, जबकि सूबे में मुस्लिमों की आबादी 20 फीसद है. ऐसे में 403 सदस्यों वाली विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या 75 होनी चाहिए.
उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस के चेयरमैन शाहनवाज आलम का कहना है कि ओवैसी को चुनाव लड़ना है तो उनका स्वागत है. वह 100 सीट या 200 सीट पर लड़ेंगे, यह उनकी पार्टी का मसला है. लेकिन औवैसी चुनाव लड़ने को लेकर गंभीर होते तो संगठन बनाते. उन्होंने कहा कि औवैसी सिर्फ मीडिया में बयान देंगे तो लोग समझ जाएंगे कि किसको फायदा पहुंचाने के लिए कर रहे हैं. सभी पार्टियां चुनाव की तैयारियों में लगी हुई हैं, जबकि ओवैसी की पार्टी के लोग कहीं दिख नहीं रहे हैं. सीएए एनआरसी का आंदोलन हो रहा तो कांग्रेस के नेता जेल गए. लेकिन ओवैसी की पार्टी के लोग कहीं नहीं दिखे. शाहनवाज ने कहा कि ओवैसी नेता कम प्रवक्ता ज्यादा लगते हैं. वहीं, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हीरो बाजपेई ने कहा कि ओवैसी के उत्तर प्रदेश में लड़ने से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. उनकी साम्प्रदायिक राजनीति यहां नहीं चलेगी. अब उत्तर प्रदेश की जनता वोट बैंक नहीं है. यह ओवैसी भी जानते हैं. योगी की सरकार में सबका भला हुआ है. भाजपा दोबारा बहुत बड़े बहुमत से जीतेगी