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UP की सियासी त्रिया चरित्र को नहीं समझ पाए ओवैसी, अब खड़े हैं अकेले - Big news related to UP Vidhan Sabha

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले एआईएमआईएम के मुखिया व हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी किसी क्षेत्रीय पार्टी संग गठबंधन करना चाहते हैं. हालांकि, इस दिशा में उन्होंने पहले पहल भी की थी, लेकिन उन्हें एक भी विश्वासी साथी नहीं मिला. यानी जो मिले भी वो भी मौकापरस्त निकले. ऐसे में बतौर नजीर ओम प्रकाश राजभर को ले सकते हैं, जो पहले ओवैसी के संपर्क में रहे, फिर भाजपा से शर्तों पर गठबंधन की बातें सामने आई और आखिरकार सपा के साथ हो लिए.

UP की सियासी त्रिया चरित्र को नहीं समझ पाए ओवैसी
UP की सियासी त्रिया चरित्र को नहीं समझ पाए ओवैसी

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Published : Nov 7, 2021, 8:42 AM IST

हैदराबाद:यूपी में मुस्लिमों और दलितों को साध एआईएमआईएम के सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी सीटों के समीकरण को दुरुस्त करना चाहते हैं. लेकिन ओवैसी भी इस बात को समझ रहे हैं कि बिना किसी क्षेत्रीय पार्टी से गठजोड़ किए उन्हें यहां कुछ खास हासिल होने वाला नहीं है. वहीं, सूबे की बड़ी पार्टियों ने तो पहले ही ओवैसी से किनारा कर लिया है. ऐसे में उन्हें छोटी पार्टियों से गठबंधन की उम्मीद थी. लेकिन तमाम भेंट मुलाकात के बावजूद एक-एक कर सभी नेताओं ने अपने नफा-नुकसान को देखते हुए ओवैसी से दूरी बना ली.

ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या यूपी की सियासी मैदान में अब ओवैसी अकेले पड़ गए हैं. खैर, इसका जवाब तो आने वाले समय में खुद ही मिल जाएगा कि ओवैसी सच में अकेले पड़ गए हैं या फिर कोई है, जो उन्हें पीछे से टेक दिए हुए है. लेकिन आपको बता दें कि इससे पहले भी साल 2017 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने कई सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे.

UP की सियासी त्रिया चरित्र को नहीं समझ पाए ओवैसी

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पर उन्हें यहां कोई कामयाबी नहीं मिली थी. हालांकि, बीते बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें पांच सीटों पर सफलता जरूर मिली थी. वहीं, बिहार की तरह अब यूपी में भी ओवैसी की नजर मुस्लिम और दलित वोटों पर है. इसे देख जहां भाजपा उन्हें बड़ा नेता बता रही है तो समाजवादी पार्टी उन्हें भाव ही नहीं दे रही है.

इधर, ओवैसी का कहना है कि वो भाजपा और कांग्रेस को छोड़कर किसी भी दल से गठबंधन करने को तैयार हैं. लेकिन इससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने यहां की कुल 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन 37 सीटों पर उनकी पार्टी की जमानत जब्त हो गई थी. पार्टी को कुल दो लाख चार हजार 142 वोट मिले थे. एआईएमआईएम ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा था, वो मुख्य तौर पर पश्चिमी यूपी की मुस्लिम बहुल सीटें थीं. लेकिन तब मतदाताओं ने उन्हें बहुत अधिक तरजीह नहीं दी थी.

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इधर, खबर यह भी थी कि एआईएमआईएम का बसपा से गठबंधन को लेकर अंदरखाने चर्चाए चल रही थी. लेकिन खुद मायावती ने ऐसी खबरों को खारिज कर दिया. इसके बाद ओवैसी, ओमप्रकाश राजभर के साथ मिलकर राष्ट्रीय भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाने को आगे तो बढ़े, लेकिन ऐन वक्त पर राजभर ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर ओवैसी से किनारा कर लिया. हालांकि, सपा ने ओवैसी पर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है.

UP की सियासी त्रिया चरित्र को नहीं समझ पाए ओवैसी

इतनी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है AIMIM

ओवैसी ने तो पहले ही यूपी की 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रखी है. साथ ही उनकी नजर दलित और मुस्लिम वोटों पर है. जिनकी सूबे में आबादी करीब 40 फीसद से अधिक है. इस वोट बैंक को ध्यान में रखकर AIMIM शोषित वंचित समाज सम्मेलन कर रही है. ओवैसी 11 नवंबर को मुरादाबाद, 13 नवंबर को मेरठ, 14 नवंबर को अलीगढ़, 21 नवंबर को बाराबंकी, 25 नवंबर को जौनपुर और 28 नवंबर को बलरामपुर में होने वाले सम्मेलन को संबोधित करेंगे.

UP की सियासी त्रिया चरित्र को नहीं समझ पाए ओवैसी

इसलिए सपा पर सख्त हैं ओवैसी

वहीं, गौर करने वाली बात यह है कि अपनी सभाओं में ओवैसी भाजपा से अधिक समाजवादी पार्टी पर हमले कर रहे हैं. इसके अलावा वो खुद को मुसलमानों के राष्ट्रीय नेता के तौर पर पेश कर रहे हैं. वो कहते हैं कि देश में हर समाज की अपनी पार्टी और अपने नेता हैं. लेकिन मुसलमानों के साथ ऐसा नहीं है. वो मुसलमानों की अपनी कयादत की बात करते हैं. उनका कहना है कि देश में कभी मुस्लिम वोट बैंक न था और न कभी बन पाएगा. लेकिन हमेशा से हिंदू वोट बैंक था, है और रहेगा.

UP की सियासी त्रिया चरित्र को नहीं समझ पाए ओवैसी

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इन पार्टियों को UP के मुसलमान करते हैं मतदान!

उत्तर प्रदेश में मुसलमान समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को वोट करते हैं. लेकिन ओवैसी अब इसमें सेंध लगाने की कोशिश में हैं. वहीं, भाजपा को लगता है कि अगर ओवैसी ऐसा कर पाते हैं तो सपा कमजोर होगी. यही कारण है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओवैसी को देश का बड़ा नेता बताया था. वहीं, बहुत से विपक्षी नेता ओवैसी को भाजपा की टीम B बताते हैं.

खैर, ओवैसी कहते हैं कि वे भाजपा और कांग्रेस से समझौता नहीं करेंगे तो दूसरी ओर सपा-बसपा उन्हें भाव ही नहीं दे रही हैं. ऐसे में इस बात की प्रबल संभावना है कि यूपी में उन्हें अकेले ही चुनाव लड़ना होगा. इसलिए उनके प्रदर्शन पर सबकी नजरें टिकी हैं.

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