हैदराबाद:यूपी में मुस्लिमों और दलितों को साध एआईएमआईएम के सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी सीटों के समीकरण को दुरुस्त करना चाहते हैं. लेकिन ओवैसी भी इस बात को समझ रहे हैं कि बिना किसी क्षेत्रीय पार्टी से गठजोड़ किए उन्हें यहां कुछ खास हासिल होने वाला नहीं है. वहीं, सूबे की बड़ी पार्टियों ने तो पहले ही ओवैसी से किनारा कर लिया है. ऐसे में उन्हें छोटी पार्टियों से गठबंधन की उम्मीद थी. लेकिन तमाम भेंट मुलाकात के बावजूद एक-एक कर सभी नेताओं ने अपने नफा-नुकसान को देखते हुए ओवैसी से दूरी बना ली.
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या यूपी की सियासी मैदान में अब ओवैसी अकेले पड़ गए हैं. खैर, इसका जवाब तो आने वाले समय में खुद ही मिल जाएगा कि ओवैसी सच में अकेले पड़ गए हैं या फिर कोई है, जो उन्हें पीछे से टेक दिए हुए है. लेकिन आपको बता दें कि इससे पहले भी साल 2017 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने कई सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे.
पर उन्हें यहां कोई कामयाबी नहीं मिली थी. हालांकि, बीते बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें पांच सीटों पर सफलता जरूर मिली थी. वहीं, बिहार की तरह अब यूपी में भी ओवैसी की नजर मुस्लिम और दलित वोटों पर है. इसे देख जहां भाजपा उन्हें बड़ा नेता बता रही है तो समाजवादी पार्टी उन्हें भाव ही नहीं दे रही है.
इधर, ओवैसी का कहना है कि वो भाजपा और कांग्रेस को छोड़कर किसी भी दल से गठबंधन करने को तैयार हैं. लेकिन इससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने यहां की कुल 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन 37 सीटों पर उनकी पार्टी की जमानत जब्त हो गई थी. पार्टी को कुल दो लाख चार हजार 142 वोट मिले थे. एआईएमआईएम ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा था, वो मुख्य तौर पर पश्चिमी यूपी की मुस्लिम बहुल सीटें थीं. लेकिन तब मतदाताओं ने उन्हें बहुत अधिक तरजीह नहीं दी थी.
इसे भी पढ़ें- मोदी लहर में भी यूपी की इन सीटों पर नहीं खिला था कमल, हो गई थी जमानत जब्त
इधर, खबर यह भी थी कि एआईएमआईएम का बसपा से गठबंधन को लेकर अंदरखाने चर्चाए चल रही थी. लेकिन खुद मायावती ने ऐसी खबरों को खारिज कर दिया. इसके बाद ओवैसी, ओमप्रकाश राजभर के साथ मिलकर राष्ट्रीय भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाने को आगे तो बढ़े, लेकिन ऐन वक्त पर राजभर ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर ओवैसी से किनारा कर लिया. हालांकि, सपा ने ओवैसी पर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है.
इतनी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है AIMIM