लखनऊ: उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में शुरू हुई 69,000 सहायक अध्यापक भर्ती लगभग अंतिम चरण में है. 3 चरणों की काउंसलिंग पूरी हो चुकी है. इसके बाद बची हुई सीटों पर संबंधित बेसिक शिक्षा अधिकारी के स्तर पर काउंसलिंग में छूटे हुए अभ्यर्थियों को मौका दिया जा रहा है.
उधर, ओबीसी एससी एसटी वर्ग के अभ्यर्थी इस पूरी प्रक्रिया में आरक्षण के नियमों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन कर रहे हैं. जिसको लेकर सरकार पहले ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुकी है. 69 हजार शिक्षक भर्ती में 23 हजार पदों पर समायोजन कानूनी रूप से नहीं हो सकता है. इन हालातों में यह मुद्दा अभ्यर्थियों की समस्या से ज्यादा राजनीतिक रंग ले चुका है. इस मुद्दे की आड़ में कुछ राजनीतिक संगठन वर्ष 2022 के चुनाव दलित वोटर्स या यूं कहे कि युवा दलित वोटर को अपनी ओर खींचने की जुगाड़ भी तलाश रहे हैं.
भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर ने निर्णायक फैसले के नाम पर 6 सितंबर को युवाओं को लखनऊ पहुंचने की अपील की थी. सैकड़ों की संख्या में प्रदेश भर से युवक लखनऊ के इको गार्डन पहुंचे थे. इस दौरान कुछ घंटों की भाषण बाजी हुई थी. सरकार को फैसला लेने के लिए अल्टीमेटम भी दिया गया. लेकिन, घंटों की मशक्कत के बाद प्रदर्शनकारी युवकों के हाथ में भी सिर्फ आश्वासन ही मिला.
यह है मामला
उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग में इस समय 69 हजार सहायक अध्यापक की भर्ती की जा रही है. इस भर्ती प्रक्रिया में सबसे बड़ा विवाद आरक्षण को लेकर खड़ा हुआ है. ओबीसी/एससी वर्ग के अभ्यर्थियों का आरोप है कि उन्हें निर्धारित मानकों से कम आरक्षण का लाभ दिया गया है. भर्ती में ओबीसी वर्ग को 27% की जगह मात्र 3.86% सीट पर आरक्षण का लाभ मिला है. ओबीसी कोटे की 18,598 सीटों में से 2637 सीट मिली है. इसी तरह, भर्ती में एससी वर्ग को 21% की जगह मात्र 16.6% आरक्षण दिया गया है. 5,844 ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों की ओवरलैपिंग नहीं कराई गई बल्कि उनकी जगह सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों का चयन कर लिया गया.