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राजधानी में कोविड के खौफ से घटी सिजेरियन डिलीवरी की संख्या

कोविड संक्रमण के कारण लखनऊ के सरकारी अस्पतालों में सिजेरियन डिलीवरी की संख्या घटी है. डॉक्टर पुष्पलता कनौजिया का कहना है कि कोरोना काल में सभी डॉक्टर चाह रहे हैं कि नॉर्मल डिलीवरी हो. बिना रिपोर्ट के ऑपरेशन करना मुश्किल होता है.

सिजेरियन डिलीवरी की संख्या घटी.
सिजेरियन डिलीवरी की संख्या घटी.

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Published : Feb 17, 2021, 10:52 PM IST

लखनऊ : नॉर्मल डिलीवरी के लिए घर के सभी सदस्य गर्भवती का पूरा ध्यान रखते हैं. साथ ही डॉक्टर से समय-समय पर जांच भी करवाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अंतिम समय में डॉक्टरों को सी-सेक्शन यानी सिजेरियन डिलीवरी का विकल्प चुनना पड़ता है. प्राइवेट अस्पतालों में सिजेरियन डिलीवरी को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है. इसको लेकर कई बार डॉक्टरों पर बिल बढ़ाने के आरोप भी लगते रहे हैं.

लखनऊ में सिजेरियन डिलीवरी की संख्या घटी.

सिजेरियन डिलीवरी की संख्या लखनऊ के सरकारी अस्पतालों में भी बढ़ी थी. लेकिन, ETV भारत की पड़ताल में सामने आया कि कोरोना का संक्रमण बढ़ने पर सरकारी अस्पतालों में सिजेरियन डिलीवरी की संख्या घट गई है. विभागीय आंकड़ों के मुताबिक, 2019-20 में 55,581 प्रसव हुए थे. 2020-21 में करीब 33,483 हुए हैं. इनमें से 6545 सिजेरियन डिलीवरी हुई हैं.

अस्पताल पहुंची महिलाएं.
क्या होता है सी-सेक्शन (सिजेरियन डिलीवरी)

सी-सेक्शन एक प्रकार का ऑपरेशन होता है. इसमें डिलीवरी के दौरान गर्भवती के पेट और गर्भाशय पर चीरा लगाया जाता है, ताकि शिशु का जन्म हो सके. इसके बाद डॉक्टर पेट और गर्भाशय को टांके लगाकर बंद कर देते हैं. सी-सेक्शन करना है या नहीं, यह कई मामले पर निर्भर करता है. आमतौर पर डॉक्टर गर्भावस्था के 39वें हफ्ते के बाद ही सिजेरियन डिलीवरी करते हैं, ताकि गर्भ में बच्चा पूरी तरीके से विकसित हो जाए. नॉर्मल डिलीवरी में प्रसव पीड़ा के दौरान गर्भवती और शिशु दोनों की जान को खतरा हो जाए, तो सिजेरियन डिलीवरी का निर्णय लिया जाता है. लखनऊ के सरकारी अस्पतालों (ग्रामीण और नगरीय क्षेत्र) में 1 अप्रैल से 31 जनवरी तक के प्रसव के आंकड़े

ग्रामीण क्षेत्र में कुल डिलीवरी की संख्या-

यूनिट प्रसव
चिनहट 444
सरोजिनी नगर सीएचसी 1633
काकोरी 1301
मोहनलालगंज 2061
गोसाईगंज 2362
माल 2269
बीकेटी 1072
मलिहाबाद 1902
इटौंजा 2179


नगरीय क्षेत्र में कुल डिलीवरी की संख्या-

यूनिट
बीएमसी एनके रोड 139
बीएमसी ऐशबाग 155
बीएमसी टूरिया गंज 71
बीएमसी सिल्वर जुबली 174
बीएमसी आलमबाग 705
बीएमसी रेड क्रॉस 1
बीएमसी इंदिरा नगर 346
बीएमसी अलीगंज 328


राजधानी के बड़े अस्पतालों कुल डिलीवरी की संख्या-

अस्पताल संख्या
आरएलबी राजाजीपुरम 1221
अवंती बाई महिला
चिकित्सालय
4317
झलकारी बाई महिला
चिकित्सालय
2185
क्वीन मेरी चिकित्सालय 4285
बीआरडी महानगर 86
लोकबंधु राजनारायण 198
राम सागर में संयुक्त
चिकित्सालय
22
आरएमएल गोमती नगर 2932
टीबी हॉस्पिटल ठाकुरगंज 9

यहां देखिए, जनवरी से दिसंबर तक के सिजेरियन डिलीवरी की संख्या

यूनिट डिलीवरी सिजेरियन
रेड क्रॉस 1 0
वीएबीएमसी 4202 2254
टूरियागंज 71 0
बीकेटी 3251 38
गोसाईगंज 2362 2
चिनहट 444 25
काकोरी 1301 4
एनके रोड 139 68
मोहनलालगंज 2061 11
मलिहाबाद 1902 5
आरएसएम 22 12
माल 2269 18
बीआरडी 86 41
अलीगंज 328 108
सरोजनी नगर 1633 18
टीबी हॉस्पिटल 9 5
ऐशबाग 155 51
एस जुबली 174 25
एफबी रोड 346 21
चंदर नगर 705 148
वीजे बीएमसी 2089 971
आरएलबी 1221 260
केजीएमयू 3643 1815
आरएमएल - -
आईएमएस 2871 503
एलबीआरएन 198 142


हालात के हिसाब से लेना होता है फैसला

महिला चिकित्सालय अधीक्षक डॉक्टर पुष्पलता कनौजिया बताती हैं कि जो पेशेंट हम लोगों को दिखा रहा है या जो हम लोगों से लगातार मिलता रहता है. उसको जब हम लोग समझाते हैं तो वह समझ जाता है कि हमें नॉर्मल की तरफ जाना है या ऑपरेशन की तरफ जाना है. वह हमारा समझा हुआ केस होता है कि हम उसको कब तक नॉर्मल देख सकते हैं और कब ऑपरेशन की जरूरत हो सकती है. लेकिन, जो मरीज इधर-उधर से आते हैं या रेफर किए जाते हैं, उनको समझ पाना मुश्किल होता है.

नॉर्मल कराने के लिए मरीज को टाइम-टू-टाइम बुलाते हैं

डॉक्टर पुष्पलता कनौजिया ने बताया कि कोरोना काल में सभी डॉक्टर चाह रहे हैं कि नॉर्मल डिलीवरी हो. बिना रिपोर्ट के ऑपरेशन करना मुश्किल होता है. इसीलिए डॉक्टर यह तय करते हैं कि पेशेंट की नॉर्मल डिलीवरी करानी है. इसके लिए पेशेंट को टाइम-टू-टाइम बुलाकर देखते रहते हैं, लेकिन दिक्कत बढ़ने पर उसको ऑपरेशन के लिए भी कन्वेंस करते हैं.

जच्चा-बच्चा को सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी

डॉक्टर पुष्पलता कनौजिया ने बताया कि परिजन कहते हैं कि मरीज को दर्द हो रहा है, बच्चा नॉर्मल हो सकता है. कोरोना के समय में मरीज की रिपोर्ट नहीं आती है, इससे मरीज फंस जाता है. तब का समय डॉक्टर के लिए बहुत स्ट्रेस भरा होता है. डॉक्टर को यह देखना होता है कि जच्चा-बच्चा दोनों ही सुरक्षित रहें. ऐसे मौके पर हमें जच्चा-बच्चा के साथ-साथ परिजनों को संभालने में बहुत स्ट्रेस का सामना करना पड़ता है. जिन पेशेंट को हम देख रहे होते हैं, उनको तो समझाना आसान होता है. लेकिन जो बाहर से आते हैं, उनको समझा पाना बहुत कठिन होता है.

सिजेरियन के लिए मरीज को प्रेशराइज नहीं किया जाता

सीनियर मेडिकल ऑफिसर स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अनुप्रिया वर्मा ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में किसी भी मरीज को नॉर्मल की जगह सिजेरियन के लिए प्रेशराइज नहीं किया जाता है. कहीं कोई डिफिकल्टी होती है, जिसकी वजह से बच्चे को दिक्कत हो सकती है, तभी सिजेरियन के लिए मरीज को कन्वेंस किया जाता है. सामान्यतः नॉर्मल प्रोसेस के लिए वेट किया जाता है.

पहले के दौर में नहीं थीं सुविधाएं

डॉक्टर अनुप्रिया वर्मा ने बताया कि पहले के दौर में भी ऑपरेशन होते थे, लेकिन तब इतनी सुविधाएं नहीं थीं. अब इतनी सुविधाएं हो चुकी हैं कि बच्चे को किसी प्रकार की दिक्कत ना हो, इसके लिए पहले से ही तैयारी कर ली जाती है. पहले डिलीवरी से पहले या डिलीवरी के बाद बच्चों की मृत्यु दर बहुत ज्यादा थी. अब वह कम हो गई है. जननी सुरक्षा योजना के तहत जच्चा और बच्चा दोनों का ही ख्याल रखा जाता है. कोरोना के दौर में अब लगभग सभी ऑपरेशन रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद ही किए जाते हैं.

घरों में ही कराई जाती थी नॉर्मल डिलीवरी

स्थानीय महिलारामदेवी बताती हैं कि पुराने समय में उनके घर में डिलीवरी कराने का काम होता था, लेकिन जब से अस्पतालों में ऑपरेशन के जरिए डिलीवरी होने लगी, तब से कोई काम नहीं बचा. अब हम लोग बच्चा पैदा होने के बाद उसकी मालिश के लिए जाते हैं. हम लोगों को मालिश करने के लिए 100 से 200 रुपये दिए जाते हैं. मजदूरी करके हम लोग अपने घर का पालन-पोषण कर रहे हैं. पहले के समय में घरों में ही नॉर्मल डिलीवरी होती थी.

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