लखनऊ:आज सावन का पहला सोमवार है. देश भर में भगवान भोलेनाथ के भक्त शिवलिंग पर जल अर्पण करने के लिए मंदिरों में जाते हैं. ऐसा ही एक ऐतिहासिक मंदिर राजधानी लखनऊ, उन्नाव और रायबरेली की सीमा पर स्थित है, जिसे भंवरेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस मंदिर का खास नाता पांडवों के साथ भी है.
भंवरेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं की दिखी कमी. तीन जिलों की सीमा पर स्थित भगवान शंकर के ऐतिहासिक भंवरेश्वर महादेव मंदिर में सावन में हर साल लाखों की संख्या में भक्त जलाभिषेक करने आते हैं, लेकिन इस बार भक्तों की संख्या काफी कम नजर आई. वहीं मंदिर प्रशासन ने भी महामारी के चलते सरकार द्वारा जारी की गई गाइडलाइन का पूरा पालन किया.
जल न चढ़ा पाने के कारण दु:खी दिखेश्रद्धालु
मंदिर में भक्तों ने बताया कि वे यहां पिछले कई सालों से आ रहे हैं, लेकिन इस बार उन्हें जल न चढ़ाने का मलाल है. वहीं वे खुश भी हैं कि कोरोना महामारी को रोकने के लिए मंदिर प्रशासन के द्वारा जो इंतजाम किए गए हैं, वे बहुत अच्छे हैं. मंदिर के पुजारी ने बताया कि इस बार महामारी के चलते पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. साथ ही जो गाइडलाइन है, उसको पूरी तरह से फॉलो किया जा रहा है.
हाथ को सैनिटाइज करते श्रद्धालु. ईटीवी भारत से बातचीत में मंदिर के पुजारी सुनील कुमार गोस्वामी ने बताया कि लोगों को कतार में ही अंदर आने की अनुमति है. साथ ही इस बार भक्त शिवलिंग पर न तो जल चढ़ा सकते हैं और न ही मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश कर सकते हैं.
मंदिर का रहा है प्राचीन इतिहास
अगर भंवरेश्वर महादेव मंदिर के इतिहास की बात की जाए तो इसकी स्थापना पांडवों के समय (द्वापर युग) में हुई थी. पुराणों में इसका जिक्र है कि माता कुंती भगवान भोलेनाथ की भक्त थीं और उनकी पूजा करने के लिए उन्होंने भीम को कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाने की आज्ञा दी. जब भीम कैलाश पर्वत से शिवलिंग लेकर जा रहे थे, तभी एक राक्षस ने उन्हें इसी जगह पर रोका. भीम ने उस राक्षस का वध तो कर दिया, लेकिन शिवलिंग को यहीं पर रख दिया.
कहा जाता है कि जहां भी शिवलिंग को एक बार रख दिया जाता है, तो उसे वहीं स्थापित करना पड़ता है. इसी को देखते हुए माता कुंती और पांडवों ने मिलकर इस जगह पर मंदिर की स्थापना की, जिसका नाम सिद्धेश्वर महादेव मंदिर पड़ा.
कैसे पड़ा भंवरेश्वर महादेव मंदिर का नाम
भीम द्वारा स्थापित सिद्धेश्वर महादेव मंदिर का नाम भंवरेश्वर महादेव मंदिर कैसे पड़ा, इसके पीछे भी एक ऐतिहासिक कहानी है. जब औरंगजेब देश भर में मंदिरों को तोड़कर खजाने की तलाश में जगह-जगह जा रहा था, तभी वह सिद्धेश्वर महादेव मंदिर भी पहुंचा. यहां उसने इस शिवलिंग को तोड़ने की काफी कोशिशें की और जब शिवलिंग नहीं टूटा तो बीचो-बीच उसने शिवलिंग पर वार कर दिया.
शिवलिंग पर वार करते ही इससे रक्त की धारा प्रवाहित होने लगी, जिसने भंवरों का रूप ले लिया. भंवरों ने औरंगजेब की सेना को परास्त कर दिया, जिसके बाद औरंगजेब ने दोबारा से इस मंदिर को गुंबददार तरीके से बनवाया. सिद्धेश्वर महादेव मंदिर का नाम उसी समय से भंवरेश्वर महादेव मंदिर पड़ा.
भक्तों की दिखी कम संख्या
कोरोना के चलते इस बार सावन के पहले सोमवार में शिव भक्तों की भीड़ कम नजर आई. वहीं मंदिरों में भी महामारी के चलते पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. भक्तों का कहना है कि वे इस बार जल न चढ़ा पाने की वजह से थोड़ा परेशान हैं, लेकिन महामारी को देखते हुए जो इंतजाम मंदिरों में किए गए हैं, वे काफी अच्छे हैं.