लखनऊ : मैनपुरी संसदीय सीट के उपचुनाव (Mainpuri parliamentary seat by election) में बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नहीं हैं, ऐसे में इन दलों से जुड़े वोट बैंक जिस प्रत्याशी को मिलेंगे, उसकी सियासी राह आसान हो जाएगी. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बसपा और कांग्रेस उम्मीदवारों के ना होने से क्षेत्र की जनता का वोट सिर्फ सपा और भाजपा उम्मीदवार को ही जाएगा. पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी पर यह आरोप लगे थे कि उसने अपने वोट बैंक को भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में ट्रांसफर करा दिया, जिससे प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने में बड़ी मदद मिली.
दरअसल, मैनपुरी में सबसे ज्यादा यादव वोट बैंक है जो करीब साढ़े चार लाख है, इसके बाद शाक्य मतदाताओं की संख्या यहां दूसरे नंबर पर है. इनकी संख्या करीब सवा दो लाख है. यादव और शाक्य वोटर्स के बाद मैनपुरी में तीसरे नंबर पर ब्राह्मण वोटर्स हैं. ब्राह्मण वोटर्स की संख्या करीब 1 लाख है, इसके अलावा दलित वोटर्स की संख्या सवा लाख है. इसी तरह लोधी वोटर्स की संख्या एक लाख के आसपास है. इन सबके बाद मैनपुरी सीट पर मुस्लिम वोटर्स का नंबर आता है. यहां मुस्लिम वोटर्स की संख्या करीब 80 हजार है, यादव और मुस्लिम वोट बैंक पर मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी का एकाधिकार माना जाता है. बसपा और कांग्रेस की तरफ से प्रत्याशी न होने का फायदा भाजपा को मिल सकता है. बसपा के दलित समाज के वोट में जितना अधिक भाजपा सेंधमारी करेगी और बसपा का वोट बैंक जितना भाजपा के पक्ष में ट्रांसफर होगा उससे फायद भाजपा को ही होगा.
समाजवादी पार्टी के लिए मुस्लिम और यादव वोट हमेशा से अहम माना जाता रहा है. इस पर मुलायम सिंह यादव के समय से ही सपा का राज है, लेकिन पाल, कठेरिया और कश्यप वोट भी लाखों में हैं. जिन पर बहुजन समाज पार्टी का एकाधिकार भी माना जाता है. चुनावी लड़ाई में तो इसका फायदा स्वाभाविक रूप से भाजपा को मिलता हुआ नजर आता है. भाजपा की अगर बात करें तो उनके लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय और लोधी वोट बैंक आरक्षित माना जाता है. ऐसे में भाजपा को जीत के लिए बची हुई अन्य जातियों का वोट हासिल करना होगा, जिससे उसकी जीत हो सके.