लखनऊ : कानपुर में तैनात रहे रिटायर्ड आईएएस अधिकारी मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन अपने बंगले पर धर्मांतरण विरोधी गतिविधियों में शामिल रहे और लोगों का ब्रेनवाश भी करते रहे. सोशल मीडिया पर जब इनका वीडियो वायरल हुआ था तो योगी सरकार ने एसआईटी से जांच कराने का फैसला किया. एसआईटी ने जांच की तो जांच रिपोर्ट में रिटायर्ड आईएएस अधिकारी दोषी साबित हुए, लेकिन अभी तक मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. सवाल यह है कि क्या अफसरों ने एसआईटी जांच रिपोर्ट को ही दबा दिया? अब एसआईटी की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक हुई तो कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं कि मजहबी कट्टरता और धर्मांतरण के मामले में आईएएस अधिकारी मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन (सेवानिवृत्त) के खिलाफ आखिर क्यों कार्रवाई नहीं हुई.
1985 बैच के अधिकारी :दरअसल 1985 बैच के आईएएस अधिकारी मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन के मंडलायुक्त कानपुर रहते हुए सितंबर 2021 में उनके कमिश्नर आवास पर धर्मांतरण कराने, तकरीर करने और मजहबी कट्टरता के वीडियो सामने आए थे. वीडियो में मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन लोगों के ब्रेनवॉश करने और धर्मान्तरण कराने के लिए तकरीर करते हुए दिख रहे हैं. यब वीडियो सामने आए तो कानपुर से लेकर लखनऊ तक हड़कंप मच गया. इसके बाद कानपुर निवासी अखिल भारतीय मठ मंदिर समन्वय समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भूपेश अवस्थी ने इस अफसर को बेनक़ाब करने का काम किया. उन्होंने पूरे मामले की शिकायत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से की और मीडिया के सामने वीडियो सहित सभी प्रमाण के साथ पूरी बात बताई.
एसआईटी जांच में चौंकाने वाले खुलासे : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे मामले की जांच के लिए एसआईटी जांच गठित करने के आदेश दिए. डीजी स्तर के अधिकारी गोपाल लाल मीणा की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई थी, जिसमें कानपुर के तत्कालीन एडीजी भानू भास्कर को सदस्य बनाया गया. एसआईटी ने जांच शुरू की तो शिकायत करने वाले भूपेश अवस्थी के अलावा कानपुर के ही रहने वाले पीड़ित निर्मल कुमार और कमिश्नर कार्यालय में काम करने वाले कई कर्मचारियों ने एसआईटी के सामने अपने बयान दर्ज कराए. साथ ही अन्य वीडियो उपलब्ध कराए.
207 पेज की जांच रिपोर्ट :एसआईटी टीम ने 16 अक्टूबर 2021 को अपनी करीब 207 पेज की रिपोर्ट में मोहम्मद इफ्तेखारुद्दीन को दोषी पाया और उनके खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की. एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में आईएएस सर्विस रूल का उल्लंघन करने और मुकदमा दर्ज कराने की सिफारिश राज्य सरकार से की थी. उनके खिलाफ धर्मांतरण कराने, मजहबी कट्टरता फैलाने, सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का प्रयास व दूसरे धर्म की आलोचना करने संबंधी धाराओं में मुकदमा दर्ज करने की भी संस्तुति की थी. साथ ही एसआईटी ने किसी अन्य विशेषज्ञ एजेंसी से जांच कराने की सिफारिश की थी, लेकिन अब तक कार्रवाई नहीं की जा सकी है. यही नहीं फरवरी 2022 में मोहम्मद इफ्तेखारुद्दीन सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं.
धर्मान्तरण कराने की भी पुष्टि हुई :जांच में सामने आया कि मोहम्मद इफ्तेखारुद्दीन ने बिना मुद्रक और प्रकाशक का नाम दिए इस्लाम के प्रचार के लिए पुस्तकें छपवाईं, यह दंडनीय अपराध है. उन्होंने अन्य धर्मों के प्रति अपमानजनक व विद्वेषपूर्ण भावनाओं का प्रचार किया. उन्होंने हिंदू व इसाई धर्म का अपमान भी किया. इफ्तिखारुद्दीन द्वारा लिखी गईं तीन पुस्तक शुद्ध भक्ति, शुद्ध उपासना तथा नमन और शुद्ध धर्म भी मिली. इन किताबों के माध्यम से उन्होंने हिंदू धर्म की मूल भावनाओं को आहत किया. इसके अलावा तथ्यों से हटकर अपने अनुसार गलत व्याख्या कर मजहबी कट्टरता फैलाने, सामाजिक विद्वेष फैलाने का प्रयास भी किया. उनके करीब 67 वीडियो भी मिले, जिसमें कई लोगों का धर्म परिवर्तन कराने की भी पुष्टि हुई थी.
एसआईटी जांच रिपोर्ट में ये भी था :एसआईटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में मोहम्मद इफ्तेखारुद्दीन के खिलाफ आईपीसी की धारा 153 क, 295 क, 298 व 505 (2) के अलावा प्रेस एवं पुस्तक पंजीकरण एक्ट 1867 की धारा 3/12 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करने की संस्तुति की थी. इन गैर-जमानती धाराओं में अधिकतम पांच वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि उन्होंने अपने पद के दायित्व के निर्वहन के लिए प्राप्त अधिकारों औऱ सुविधाओं का दुरुपयोग इस्लाम धर्म के प्रचार-प्रसार, पुस्तकों के प्रकाशन तथा अन्य गैरकानूनी गतिविधियों में अधिकारों का दुरुपयोग खूब किया. ऐसी स्थिति में उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही करने की भी सिफारिश की गई थी.