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लखनऊ: नई तकनीक से मिल रहा है लंग कैंसर का बेहतर इलाज, बोले विशेषज्ञ

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में श्री अटल बिहारी वाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में दो दिवसीय नेल्कॉन 2019 चला. इस आयोजन में लंग कैंसर पर चर्चा की गई, जिसका समापन रविवार को हुआ.

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Published : Dec 16, 2019, 8:26 AM IST

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दो दिवसीय आयोजन में लंग कैंसर पर हुई चर्चा.

लखनऊ: किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी स्थित श्री अटल बिहारी वाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में दो दिवसीय नेल्कॉन 2019 चला, जिसका समापन का रविवार हुआ. इस आयोजन में लंग कैंसर, उनके लक्षण, इलाज और इलाज में इस्तेमाल होने वाली नई तकनीकों पर चर्चा की गई, जिसमें देशभर से विशेषज्ञों ने प्रतिभाग किया.

दो दिवसीय आयोजन में लंग कैंसर पर हुई चर्चा.
  • श्री अटल बिहारी वाजपेयी साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में दो दिवसीय नेल्कॉन चला.
  • इस आयोजन का समापन रविवार को हुआ.
  • आयोजन में लंग कैंसर पर चर्चा की गई.
  • आयोजन के दूसरे दिन भी विशेषज्ञों ने लंग कैंसर के तमाम पहलुओं और इलाज की नई तकनीक पर चर्चा की गई.
  • इस आयोजन कि थीम स्टॉप स्मोकिंग, रिड्यूस द एयर पॉल्यूशन एंड प्रिवेंट लंग कैंसर रखा गया था.
  • इस में देशभर से तमाम चेस्ट सर्जन और पलमोनरी विशेषज्ञों ने प्रतिभाग किया.
  • इसके अलावा किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग के तमाम एलुमनाई भी इसमें शामिल हुए.

आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय सैफई इटावा के कुलपति प्रोफेसर राजकुमार ने बताया कि तमाम बातें सामने आईं जो मरीजों के इलाज में सहायक होने के साथ छात्र-छात्राओं के लिए भी उत्सुकता का विषय होगी. उनके रिसर्च में काम आएंगे.

आयोजन का हिस्सा बने पीजीआई चंडीगढ़ के रेस्पिरेटरी विशेषज्ञ डॉ. नवनीत सिंह ने बताया कि लंग कैंसर भारत में पुरुषों में होने वाला दूसरा सबसे बड़ा कैंसर है. इसको ठीक करने और बेहतर इलाज करने के लिए लगातार शोध हो रहे हैं. इलाज और मरीजों की आर्थिक स्थिति को कम से कम नुकसान पहुंचाए बिना नई तकनीक पर हम लगातार शोध कर रहे हैं.

कीमो थेरेपी से इतर लंग कैंसर के इलाज में नई तकनीक में इम्यूनोथेरेपी और टारगेटेड थेरेपी आई है जो मरीजों के सर्वाइवल रेट को बढ़ा रही हैं. उनके आर्थिक पक्ष को कम नुकसान पहुंचा रही हैं और कीमोथेरेपी से कहीं अधिक प्रभावी भी साबित हो रही हैं. इसके अलावा इम्यूनोथेरेपी भी मरीजों के इलाज में काफी सहायक साबित हो रही है, लेकिन यह थोड़ी कॉस्टली होती हैं इसलिए हम ज्यादातर मरीजों पर टारगेटेड थेरेपी का ही इस्तेमाल करते हैं.

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