लखनऊः लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने चुनाव आयोग पर सवाल खड़े किये हैं. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग जैसी संस्थाएं भी सरकार की कठपुलती बनकर काम कर रही हैं. चुनाव आयोग को विधान परिषद की 36 सीटों पर निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए हमने बधाई दी थी. लेकिन सत्ता के दबाव में चुनाव आयोग ने विधान परिषद का चुनाव विधानसभा के बीच में न कराकर आगे की तारीख दे दी. ये एक तरह के राजानीतिक दबाव को दर्शाता है, ये समझ से परे है.
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने संवैधानिक संस्था है. इस तरह के निर्णय लेने की व्यवस्था को लेकर लोकदल कड़ी निंदा करता है. इस तरह के चुनाव को निष्पक्ष न कराये जाने को लेकर सुनील सिंह ने कहा कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था सत्ता की कठपुलती बनकर रह गई हैं. लोकतंत्र का ये कैसा भद्दा मजाक है?
लोकदल अध्यक्ष ने आरोप लगाया है कि विधान परिषद का चुनाव सत्ता पक्ष का चुनाव होता है. ऐसे में सत्तापक्ष अपनी ही शक्तियों से विधान परिषद के चुनाव में अपनी शक्तियों का प्रयोग करके विधान परिषद का चुनाव धन, बलपूर्वक हासिल कर लेता है. ऐसे में विधानसभा चुनाव के बीच में विधान परिषद का चुनाव आचार संहिता के बीच में कराए जाने पर ऐसी सत्ता की शक्तियां निष्प्रभावी हो जाती हैं. विधान परिषद का चुनाव कराना निष्पक्ष हो सकता है, लेकिन चुनाव आयोग के इस विधानसभा चुनाव के बीच में विधान परिषद चुनाव को कराने की तिथि को बढ़ाया जाना यह दर्शाता है कि विधान परिषद का चुनाव सरकार निष्पक्ष नहीं कराना चाहती है. सत्तापक्ष अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर सकता है. चुनाव आयोग ऐसे सत्तारूढ़ सरकारों के प्रति कठोर रवैया अपनाए जाने के बजाय उनके इशारों पर काम कर रहा है.
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लोकदल की मांग है कि विधानसभा चुनाव के बीच में ही विधान परिषद का चुनाव निष्पक्ष व्यवस्था के साथ कराया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि विधान परिषद का चुनाव जिसकी सरकार होती है, उसी की सीटें होती हैं. उदाहरण के तौर पर चाहे बसपा हो चाहे सपा हो, सदैव वही जीती हैं. विपक्ष ने कोई भी जीत अभी तक हासिल नहीं की है. लोकदल की मांग चुनाव आयोग से विधान परिषद का चुनाव कराए जाने के बजाय मनोनीत करने की व्यवस्था हो. क्योंकि जिस की सरकार हो विधान परिषद का चुनाव उसके हाथ में होता है. पूर्व की सभी सरकारें इसका उदाहरण रही हैं.