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राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिवक्ता परिषद के सेमिनार में मौलिक अधिकारों पर चर्चा

लखनऊ में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिवक्ता परिषद ने मौलिक अधिकारों को लेकर एक सेमिनार का आयोजन किया गया. इस दौरान देश की जनता के मौलिक अधिकारों पर चर्चा हुई.

सेमिनार का आयोजन.
सेमिनार का आयोजन.

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Published : Jan 22, 2021, 7:54 AM IST

लखनऊ : राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिवक्ता परिषद की ओर से लखनऊ में गुरुवार को एक सेमिनार का आयोजन किया गया. इस सेमिनार में अल्पसंख्यक समाज से जुड़े जजों और वकीलों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया. सेमिनार में संविधान के मुताबिक देश की जनता के मौलिक अधिकारों पर चर्चा हुई. इस दौरान हाई कोर्ट के रिटायर्ड सीनियर जज अब्दुल मतीन और शबीउल हसनैन के साथ अल्पसंख्यक समाज से जुड़े कई सीनियर वकील भी मौजूद रहे.

लखनऊ में अल्पसंख्यक अधिवक्ता परिषद की ओर से होने वाले इस खास सेमीनार में लोगों के मौलिक अधिकारों के हनन पर चर्चा करते हुए पूर्व जज बीडी नकवी ने कहा कि इस सेमिनार का मकसद हिंदुस्तान का संविधान और उस संविधान में लोगों को दिए गए उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है. उन्होंने कहा कि आज के दौर में मौलिक अधिकारों के हनन का खतरा है क्योंकि देश की जनता को ऐसा महसूस हो रहा है कि कॉरपोरेट घरानों ने सियासी पार्टियों को कंट्रोल कर लिया है. पूर्व जज बीडी नकवी ने कहा कि डेमोक्रेसी का मतलब है कि देश के सभी कमजोर लोगों को रोजी-रोटी और रोजगार मिले. डेमोक्रेसी में वही सरकार अच्छी होती है, जो आवाम से डरे और वह सरकार हमेशा बुरी होती है, जो आवाम को डराए.

मौलिक अधिकारों का न हो हनन
इस सेमिनार में मौजूद राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिवक्ता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सीनियर एडवोकेट काज़ी सबीउर रहमान ने कहा कि आज जिस तरीके से देश में लोगों के मौलिक अधिकारों को खत्म किया जा रहा है. ऐसे में वकीलों ने अपने फर्ज को देखते हुए अल्पसंख्यक अधिवक्ता परिषद की ओर से यह प्रोग्राम रखा. जिससे लोगों को यह मालूम हो और हमारी बात ऊपर तक जाए. इस कार्यक्रम में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता इंतजार आब्दी ने कहा कि आज की सरकार लोगों की आवाज के साथ उनके हक को दबाना चाहती है जो हमारे मौलिक अधिकारों के खिलाफ है. हमें आवाज उठाना पड़ेगी, तभी हमारा हक मिलेगा. उन्होंने कहा कि इस प्रोग्राम के माध्यम से वकीलों के प्रोटेक्शन एक्ट की सरकार से मांग की गई है क्योंकि पिछले कुछ वक्त में तेजी से वकीलों के खिलाफ वारदातें बढ़ी हैं. जबकि वकालत एक ऐसा पेशा है जो दबी कुचली आवाजों को बुलंद करता है लेकिन अब हालात ऐसे बन गए हैं, कि अब वकील ही सुरक्षित नहीं है.

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