लखनऊ: चीन के साथ चल रहे विवादों और चाइनीज उत्पादों के विरोध का असर अब रक्षाबंधन त्योहार पर भी दिखने लगा है. राजधानी में इस बार स्वदेशी राखियों का बोलबाला ज्यादा दिखाई दे रहा है. लोगों ने चाइनीज प्रोडक्ट्स का बहिष्कार कर 'वोकल फॉर लोकल' पर अमल किया है.
मुस्लिम महिलाओं ने बनाई राखी. मुस्लिम बहनें बना रहीं राखियां
पीएम मोदी के 'वोकल फॉर लोकल' और आत्मनिर्भर बनने के नारे को भारती स्वयं सहायता समूह पूरी तरह अपना रहा है. इस समूह की महिलाएं हिंदू भाइयों के लिए राखियां तैयार कर रही हैं. खास बात यह है कि इस संगठन में 10 महिला सदस्य मुस्लिम हैं, जो हिंदू-मुस्लिम एकता के नारे को भी बढ़ावा दे रही हैं.
अब तक बना चुकी हैं 20 हजार राखियां. भारती स्वयं सहायता समूह संगठन की अध्यक्ष अफसाना खान ने बताया कि संगठन की महिलाओं ने मिलकर अब तक 20 हजार से ज्यादा राखियां तैयार कर लिया है. वहीं कैम्प लगाकर दस हजार राखियों को बेचा जा चुका है. समूह में 10 मुस्लिम बहनें काम कर रही हैं, जिनमें सफीन, रेशमा और सबीना प्रमुख हैं. इस तरह के काम से हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की भावना का अधिक विस्तार होगा.
1 महीने से हो रहा काम
अफसाना खान ने कहा कि यह संगठन पिछले 1 महीने से राखी बनाने के काम में लगा हुआ है. अब लोगों की जागरूकता बढ़ रही है, लोग चाइनीज प्रोडक्ट्स का बहिष्कार कर रहे हैं. चाइनीज प्रोडक्ट्स की वजह से देशी उत्पादों की बिक्री में कमी आती थी, लेकिन अब ट्रेंड बदल रहा है. एक छोटी राखी को बनाने में 7.50 रुपये की लागत आ रही है. वहीं 3.50 रुपए मेहनताना जोड़कर राखी को बेचा जा रहा है, जिससे प्रति राखी 5 रुपये का लाभ हो रहा है.
स्वदेशी राखी का बढ़ा चलन. आजीविका मिशन के निदेशक डॉ. सुजीत कुमार ने कहा कि प्रदेश भर में करीब 3 लाख 50 हजार से अधिक स्वयं सहायता समूह काम कर रहे हैं. इन समूहों ने मिलकर इस बार 25 लाख से अधिक राखियां बेची हैं. महिलाओं द्वारा किए गए यह कार्य बेहद सराहनीय है. भारती स्वयं सहायता समूह अपनी इन राखियों को देश की सुरक्षा में लगे जवानों और प्रधानमंत्री मोदी को भेजना चाहता है.