लखनऊ : राजधानी की शहरी विकास से जुड़ी समस्याओं को देखने और समझने के लिए नगर निगम प्रशासन एक खास तरह की रणनीति पर काम करना शुरू कर रहा है. सड़क नाली खड़ंजा, सीवर, आवारा पशु, स्ट्रीट लाइट, अतिक्रमण जैसी तमाम समस्याओं को जानने के लिए ग्राउंड जीरो की हाईटेक मॉनिटरिंग कराने का काम किया जाएगा. इसके लिए बाकायदा एक नयन ऐप कंपनी की मदद से ग्राउंड जीरो पर सब कुछ रिकार्ड किया जाएगा. यह सब रिकार्ड करने का काम शहर की तमाम कम्पनियों के डिलीवरी ब्वॉय की मदद से किया जाएगा. डिलीवरी ब्वॉय को नगर निगम हाईटेक कैमरे देगा, जो फील्ड पर ग्राउंड जीरो की सारी गतिविधियों को रिकॉर्ड करेंगे. इसके बाद उस रिकार्डिंग को सम्बंधित विभाग को भेजकर समस्याओं को दूर करने या अन्य जिस तरह की जरूरत होगी उसके अनुसार उसका निस्तारण कराया जाएगा. डिलीवरी ब्वाय के साथ ही ई रिक्शा पर भी ये हाईटेक कैमरे लगाए जाएंगे.
शहर की समस्याएं जानने के लिए कैमरे से लैस होंगे डिलीवरी ब्वॉय, जानिए क्या है खास तैयारी
लखनऊ की समस्याओं को जानने के लिए नगर निगम अब डिलिवरी ब्वाय व ई रिक्शा चालकों की मदद लेगा. नयन ऐप कंपनी की मदद से ग्राउंड जीरो पर सब कुछ कैमरे में रिकार्ड किया जाएगा.
नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह का कहना है कि 'हम शहर की समस्याओं को ग्राउंड जीरो पर जानने के लिए एक प्रयोग करेंगे. इसके लिए तैयारी चल रही है. उन्होंने बताया कि वार्डों की समस्याओं को समझने, उनके समाधान के लिए दुबई की नयन ऐप नामक कंपनी से एमओयू की बातचीत चल रही है. एमओयू आदि की प्रक्रिया के बाद ऑनलाइन कंपनियों के डिलिवरी एजेंटों के वाहन और ई रिक्शों पर हाईटेक कैमरे लगाए जाएंगे. ये कैमरे कम और अधिक रोशनी में भी अच्छी तस्वीरें खींचने में सक्षम होंगे. साथ ही ऑटो फोकस होने की वजह से ग्राउंड जीरो की हर गतिविधि पर नजर रख सकेंगे. डिलिवरी एजेंट या ई रिक्शा जिस भी कॉलोनी में जाएंगे, कैमरे में वहां की हर गतिविधि रिकार्ड हो जाएगी. इसके बाद स्मार्ट सिटी के कंट्रोल रूम में इसका डेटा रखने के लिए अलग टीम रहेगी जो इसे सहेजने का काम करेगी. इसके बाद उस डेटा को देखने और उन समस्याओं को दूर करने के लिए सम्बंधित विभागाध्यक्ष को भेजा जाएगा.'
नगर आयुक्त का कहना है कि 'नयन ऐप से इसकी माॅनिटरिंग के प्रस्ताव को शासन से मंजूरी मिलने के बाद इसे लागू किया जाएगा. नगर आयुक्त ने बताया कि इस काम के माध्यम से हमें शहर के विकास को लेकर बजट बनाने में भी आसानी होगी. अभी हर वॉर्ड का सालाना बजट डेढ़ करोड़ रुपये का है, इनमें वे वार्ड भी हैं, जो विकसित हैं, जबकि 30 फीसदी ऐसे वार्ड हैं, जहां पर पार्षद विकास निधि के अलावा दूसरे मदों से विकास कार्य पर खर्च किया जाता है. ऐसे में एक व्यवस्थित प्लानिंग करने में आसानी हो सकेगी.'