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मुनव्वर राना को 'मां' ने दिलाई शोहरत की बुलंदियां, महबूब और मुहब्बत को भी शब्दों से किया बयां

Munawwar Rana Poetry: मशहूर शायर मुनव्वर राना का लखनऊ में निधन (Munawwar rana memories) हो गया. पेश हैं मुनव्वर राना के कुछ खास कलाम.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 15, 2024, 9:27 AM IST

Updated : Jan 15, 2024, 3:39 PM IST

लखनऊ: मशहूर शायर मुनव्वर राना का रविवार देर रात लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. तमाम किताबें और संस्मरण लिखने वाले शायर मुनव्वर राना को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचाया उनकी पुस्तक 'मां' ने. यूं तो शायरी सबसे ज्यादा महबूब और मुहब्बत पर लिखी गई है, लेकिन मुनव्वर ऐसे अकेले शायर थे, जिन्हें पहचान मां पर लिखी उनकी शायरी ने दिलाई. वह देश, सियासत, रवायत, बंटवारे और खुद्दारी से लेकर मां और बेटी के नाजुक रिश्तों पर भी शायरी करने वाले लफ्जों के उम्दा कारीगर थे. एक दर्जन से ज्यादा किताबें लिखने वाले मुनव्वर राना को 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था.

मां पर लिखी उनकी ये लाइनें मशहूर हुईं...

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई,
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई..!

तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ए फलक...
मुझको अपनी मां की मैली ओढ़नी अच्छी लगी..!

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती,
बस एक मां है जो मुझसे खफा नहीं होती..!

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है..!

मुनव्वर राना की बेटियों-बहनों पर मर्मस्पर्शी लाइनें

रो रहे थे सब तो मैं भी फूट कर रोने लगा...
वरना मुझको बेटियों की रुखसती अच्छी लगी..!

किस दिन कोई रिश्ता मेरी बहनों को मिलेगा,
कब नींद का मौसम मेरी आंखों को मिलेगा..!

जब यह सुना कि हार के लौटा हूं जंग से,
राखी जमीं पे फेंक के बहनें चली गईं...!

घरों में यूं सयानी बेटियां बेचैन रहती हैं,
कि जैसे साहिलों पर कश्तियां बेचैन रहती हैं..!

मुजाहिद हूं मैं:मुनव्वर राना ऐसे परिवार से आते थे, जिनके रिश्तेदार देश के बंटवारे के समय बड़ी हसरतों के साथ पाकिस्तान चले गए थे. हालांकि बाद में उन्हें मुजाहिद कहा गया और पाकिस्तान में उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया. मुनव्वर राना ने इस पर भी अपनी कलम चलाई और पाकिस्तान में वह जब गए तो उन्होंने मंच से यह शायरी पढ़कर वाहवाही बटोरी.

मुजाहिद हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं,
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं..!

मुनव्वर राना ने हर तबके और राजनीति को शायरी में पिरोया:मुनव्वर राना ने समाज के हर हिस्से को अपनी शायरी में समेटा और जाति और धर्म की राजनीति को भी अपनी शायरी के माध्यम से निशाना बनाया.

तवायफ की तरह अपने गलत कामों के चेहरे पर,
हुकूमत मंदिरों-मस्जिद का पर्दा डाल देती है...!

हुकूमत मुंह भराई के हुनर से खूब वाकिफ है,
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है..!

नए कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है,
परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है..!

सिरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जां कहते हैं,
हम तो इस मुल्क की मिट्टी को भी मां कहते हैं!

भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है,
मोहब्बत करने वाला इसलिए बरबाद रहता है...!

अगर सोने के पिंजड़े में भी रहता है तो कैदी है,
परिंदा तो वही होता है, जो आजाद रहता है..!

चमन में घूमने फिरने के कुछ आदाब होते हैं,
उधर हरगिज नहीं जाना उधर सय्याद रहता है..!

लिपट जाती है सारे रास्तों की याद बचपन में,
जिधर से भी गुज़रता हू मैं रस्ता याद रहता है..!

हमें भी अपने अच्छे दिन अभी तक याद हैं 'राना'
हर इक इंसान को अपना जमाना याद रहता है..!

मुनव्वर राना ने हकीकत को शायराना अंदाज में किया बयां:मुनव्वर राना ऐसे शेयरों में शुमार थे, जिन्होंने जिंदगी की हकीकत को शब्दों में पिरोया. मौत की हकीकत को भी वह जानते थे. इसीलिए तो उन्होंने लिखा...

दुनिया तेरी रौनक से मैं अब ऊब रहा हूं,
तू चांद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूं ...!

दुनिया मुझे साहिल से खड़ी देख रही है,
मैं एक जजीरे की तरह डूब रहा हूं....!

जिस्म पर मिट्टी मलेंगे पाक हो जाएंगे हम,
एै ज़मीं एक दिन तेरी ख़ूराक हो जाएंगे हम।

मुनव्वर राना की किताबें:मुनव्वर राना की किताबों में जो अब तक प्रकाशित हुई हैं, मां, गजल गांव, पीपल छांव, बदन सराय, नीम के फूल, सब उसके लिए, घर अकेला हो गया, कहो जिल्ले इलाही से, बगैर मक्शे का मकान, फिर कबीर, नए मौसम के फूल प्रमुख रूप से शामिल हैं.

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Last Updated : Jan 15, 2024, 3:39 PM IST

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