लखनऊ: मशहूर शायर मुनव्वर राना का रविवार देर रात लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. तमाम किताबें और संस्मरण लिखने वाले शायर मुनव्वर राना को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचाया उनकी पुस्तक 'मां' ने. यूं तो शायरी सबसे ज्यादा महबूब और मुहब्बत पर लिखी गई है, लेकिन मुनव्वर ऐसे अकेले शायर थे, जिन्हें पहचान मां पर लिखी उनकी शायरी ने दिलाई. वह देश, सियासत, रवायत, बंटवारे और खुद्दारी से लेकर मां और बेटी के नाजुक रिश्तों पर भी शायरी करने वाले लफ्जों के उम्दा कारीगर थे. एक दर्जन से ज्यादा किताबें लिखने वाले मुनव्वर राना को 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था.
मां पर लिखी उनकी ये लाइनें मशहूर हुईं...
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई,
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई..!
तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ए फलक...
मुझको अपनी मां की मैली ओढ़नी अच्छी लगी..!
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती,
बस एक मां है जो मुझसे खफा नहीं होती..!
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है..!
मुनव्वर राना की बेटियों-बहनों पर मर्मस्पर्शी लाइनें
रो रहे थे सब तो मैं भी फूट कर रोने लगा...
वरना मुझको बेटियों की रुखसती अच्छी लगी..!
किस दिन कोई रिश्ता मेरी बहनों को मिलेगा,
कब नींद का मौसम मेरी आंखों को मिलेगा..!
जब यह सुना कि हार के लौटा हूं जंग से,
राखी जमीं पे फेंक के बहनें चली गईं...!
घरों में यूं सयानी बेटियां बेचैन रहती हैं,
कि जैसे साहिलों पर कश्तियां बेचैन रहती हैं..!
मुजाहिद हूं मैं:मुनव्वर राना ऐसे परिवार से आते थे, जिनके रिश्तेदार देश के बंटवारे के समय बड़ी हसरतों के साथ पाकिस्तान चले गए थे. हालांकि बाद में उन्हें मुजाहिद कहा गया और पाकिस्तान में उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया. मुनव्वर राना ने इस पर भी अपनी कलम चलाई और पाकिस्तान में वह जब गए तो उन्होंने मंच से यह शायरी पढ़कर वाहवाही बटोरी.
मुजाहिद हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं,
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं..!
मुनव्वर राना ने हर तबके और राजनीति को शायरी में पिरोया:मुनव्वर राना ने समाज के हर हिस्से को अपनी शायरी में समेटा और जाति और धर्म की राजनीति को भी अपनी शायरी के माध्यम से निशाना बनाया.