लखनऊ: मुख्तार अंसारी का जन्म 30 जून 1963 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में बेहद सम्मानित परिवार में हुआ था. मुख्तार अंसारी के दादा कांग्रेस अध्यक्ष, नाना परमवीर चक्र विजेता, चाचा उपराष्ट्रपति लेकिन मुख्तार अपराधी निकल गया. बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी पर 61 मुकदमे दर्ज हैं, जिसमें हत्या लूट अपहरण और जमीनों पर कब्जा करने के मामले हैं. लेकिन, कम ही लोगों को पता है की जुर्म की दुनिया का यह माफिया एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखता है जिसका कभी गौरवशाली इतिहास रहा है.
मुख्तार के दादा थे स्वत्रंता सेनानी, नाना सेना में ब्रिगेडियरःमुख्तार के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी फ्रीडम फाइटर थे. वर्ष 1927 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष बने. यही नहीं दिल्ली की एक सड़क का नाम भी उनके नाम पर है. मुख्तार के नाना भी एक नामचीन हस्ती थे. महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान ने वर्ष 1948 में भारतीय सेना की तरफ से नवशेरा की लड़ाई लड़ी थी. लड़ाई में ब्रिगेडियर उस्मान शहीद होने वाले सेना के सर्वोच्च अधिकारी थे. मरणोपरांत ब्रिगेडियर उस्मान को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.
सोची-समझी रणनीति के तहत अपराध की दुनिया में रखा कदमःइतना ही नहीं पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, मुख्तार के रिश्ते में चाचा लगते हैं. लेकिन, एक ऐसा व्यक्ति जिसको राजनीति विरासत में मिली, जिसके दादा व नाना देश के सम्मानित लोग रहे हैं, वह इस देश में सबसे बड़ा अपराधी बन गया. कहते हैं कि मुख्तार अपने कॉलेज के दिनों में क्रिकेट खेलता था. लेकिन, देखते देखते वह बंदूक से खेलने लगा. लोग मजबूरी में जुर्म का रास्ता चुनते हैं, लेकिन मुख्तार ने सोची-समझी रणनीति के तहत अपराध की दुनिया में कदम रखा.
आफशा से मुख्तार ने की थी शादीः जिस आफशा अंसारी पर यूपी पुलिस ने 50 हजार रुपए का इनाम घोषित किया है, जिसको लेकर लुकआउट नोटिस जारी किया गया, उससे मुख्तार की शादी कैसे हुई ये भी जानना जरूरी है. दरअसल, मुख्तार अंसारी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई युसुफपुर गांव में की. उसके बाद गाजीपुर कॉलेज से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन किया. स्कूल और कॉलेज के दौरान मुख्तार अक्सर क्रिकेट और फुटबाल खेलता था. वर्ष 1989 में आफशा अंसारी से मुख्तार की शादी हुई, जिनसे दो बेटे अब्बास अंसारी और उमर अंसारी हुए. अब्बास मौजूदा समय विधायक है और कासगंज जेल में बंद है. जबकि, उमर फिलहाल दिल्ली में है.
बृजेश से शुरू हुई मुख्तार की अदावतः90 के दशक में पूरे पूर्वांचल में मुख्तार के नाम की तूती बोलती थी. एक तरह से मुख्तार का आतंक अपने चरम पर था. लेकिन, तभी पूर्वांचल की जमीन पर बृजेश सिंह का नाम सुनाई देने लगा. जैसे एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती ठीक वैसे ही पूर्वांचल में दो डॉन भी नहीं हो सकते थे. ऐसे में शुरू हुआ पूर्वांचल की जमीन पर गैंगवार. गाजीपुर और मऊ के जिन सरकारी ठेकों पर मुख्तार अंसारी का एकाधिकार था उनको बृजेश सिंह ने कब्जाना शुरू कर दिया. लेकिन, वर्चस्व की लड़ाई का अंजाम क्या होगा, अब तक इस बात का अंदाजा किसी को नहीं था.
कहानी मुख्तार अंसारी के पक्ष में तब झुक गई जब वह वर्ष 1996 में बसपा के टिकट पर मऊ से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गया. मुख्तार माफिया था लेकिन राजनीति में आने के बाद वह बाहुबली बन गया. इसके बाद मुख्तार ने अपने विरोधियों को रास्ते से हटाने का फैसला शुरू कर दिया. इसी बीच वर्ष 2001 में उसर चट्टी कांड हुआ, जिसमें बृजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर अंधाधुंध फायरिंग करवाई. बाद में इस मामले बृजेश सिंह को 12 साल तक जेल में रहना पड़ा. इस मामले में बीते साल बृजेश को जेल से सशर्त जमानत देकर रिहा किया गया है.
माफिया से बाहुबली और फिर माननीय बना मुख्तारःमुख्तार अंसारी पूर्वांचल की धरती को कुरुक्षेत्र बना चुका था. जमीन कब्जाना, शराब के ठेके, रेलवे ठेकेदारी, खनन जैसे कई अवैध कामों में उसका कब्जा बढ़ रहा था तो वहीं दूसरी तरफ वो आम जनता की मदद करके अपनी छवि सुधारने का भी काम कर रहा था. ऐसे में मुख्तार अंसारी ने राजनीति में आने का मन बना लिया. मुख्तार अंसारी हर बार मऊ सीट से ही चुनाव लड़ता रहा और लगातार पांच बार विधायक भी चुना गया. 2002 और 2007 में मुख्तार अंसारी ने मऊ से ही निर्दलयी चुनाव लड़ा और उसमें भी जीत हासिल की. साल 2022 के विधानसभा चुनाव में उसने अपनी राजनीतिक विरासत बड़े बेटे अब्बास अंसारी को सौंप दी.