लखनऊ: हिंदू पक्षकारों द्वारा टीले वाली मस्जिद में कमीशन कार्रवाई कराने का अनुरोध की जाने वाली अर्जी का निस्तारण करते हुए अपर जिला जज कल्पना ने कहा है कि याचीगण कमीशन कार्रवाई कराए जाने संबंधी प्रार्थना पत्र मूल वाद का क्षेत्राधिकार रखने वाले अवर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं. अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि यह सिविल निगरानी इस न्यायालय के समक्ष निचली अदालत के 25 सितंबर 2017 के आदेश के विरुद्ध दाखिल की गई है.
आदेश में कहा गया है कि मूल वाद अभी भी निचली अदालत में विचाराधीन है तथा निगरानी निस्तारण के दौरान इस अदालत को मात्र निगरानी के संदर्भ में विधिक बिंदुओं व आदेश की वैधानिकता के संबंध संदर्भ में निर्णय लेना है. इस संदर्भ में कमीशन जारी करना अथवा अधिवक्ता कमिश्नर की नियुक्त किए जाने के संबंध में इस अदालत को मूल वाद के लंबित रहने के दौरान क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है.
आदेश में यह भी कहा गया है कि यह प्रार्थना पत्र मूल वाद का क्षेत्राधिकार रखने वाली निचली अदालत के समक्ष पेश किया जाना न्याय संगत होगा. वहीं. अदालत ने लंबित सिविल निगरानी में आगामी 2 जुलाई की तिथि नियत करते हुए कहा है कि बिना किसी स्थगन के निगरानी में बहस करने के लिए पक्षकार आवश्यक रूप से नियत तिथि पर उपस्थित हों. अदालत के समक्ष सुनवाई के दौरान हिंदू पक्षकारो की ओर से कहा गया था कि लॉर्ड शेष नागेश टीलेश्वर महादेव मंदिर की मूर्तियां नष्ट की जा रही हैं तथा उसके स्वरूप को बदला जा रहा है. लिहाजा कमीशन नियुक्त कर सर्वे कराया जाए. वहीं, राज्य सरकार की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता (दीवानी) ने कहा कि यदि अदालत विवादित स्थल का सर्वे कराने का कोई आदेश पारित करती है तो सरकार अदालत के आदेश का पालन करेगी.
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पत्रावली के अनुसार वर्ष 2013 में लार्ड शेष नागेश टीलेश्वर महादेव की ओर से सिविल जज (जूनियर डिविजन) साउथ लखनऊ की अदालत में नियमित वाद दायर किया गया था. जिसमें यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य पक्षकार बनाए गए थे. बाद में अदालत से अनुरोध किया गया था कि टीले वाली मस्जिद के अंदर लॉर्ड शेष नागेश का मंदिर है, जिसको नुकसान पहुंचाया गया है. इस टीले वाले स्थान का मालिकाना हक एवं पूजा अर्चना की अनुमति दिए जाने को कहा गया था. इस नियमित वाद के विरुद्ध आपत्ति पर सिविल जज साउथ की अदालत ने 25 सितंबर 2017 को एक आदेश पारित कर कहा कि पक्षकारों को सुनने के बाद एवं मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार संपूर्ण वाद को निरस्त नहीं किया जा सकता. इस आदेश के खिलाफ मौलाना सैयद शाह फजलुरहमान की ओर से मौलाना काजी सैयद शाह फजलुर मन्नान द्वारा जिला जज की अदालत में 11 अक्टूबर 2017 को सिविल निगरानी याचिका दाखिल की गई.