लखनऊ: आज के दौर में बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं. महज एक साल के बच्चे को मोबाइल के यूट्यूब से कार्टून और मोबाइल में गेम्स एप्लीकेशन के बारे में सब कुछ पता होता है और परिजनों को इस बात पर गर्व होता है. बच्चे के रोने या जिद करने पर माता-पिता उन्हें मोबाइल दे देते हैं, लेकिन डिवाइस का उन पर क्या दुष्प्रभाव पड़ रहा है, इसकी उन्हें खबर नहीं होती.
75 फीसदी बच्चे बचपन से चश्मिश बन रहे
वर्तमान में करीब 75 फीसदी बच्चे बचपन से ही चश्मिश बन जाते हैं. इसकी वजह यही है कि बचपन से ही बच्चे टेलीविजन और मोबाइल की स्क्रीन पर ज्यादा से ज्यादा समय बीता रहे हैं. उससे उनके रेटिना पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है. कामकाजी महिलाएं बच्चों से फ्री होने के लिए उन्हें मोबाइल पकड़ा देती हैं या फिर टीवी के सामने बैठा देती हैं.
एक दौर ऐसा था, जब परिवार में बच्चों की चहलकदमी रहती थी, लेकिन आज के दौर में सब खो गया है. बच्चे खेलने-कूदने के लिए बाहर नहीं जाते हैं. घर में ही मोबाइल पर सारा समय बीताते हैं. वीडियो गेम या फिर मोबाइल गेम खेला करते हैं. बच्चे 10 मिनट से ज्यादा भी स्क्रीन पर फोकस करते हैं तो उनके दिमाग पर असर पड़ता है. मोबाइल का फोकस उनकी आंखों और दिमाग पर प्रभाव डालता है. वहीं मोबाइल का वाइब्रेशन उनकी मेंटल और फिजिकल हेल्थ को प्रभावित करता है.