लखनऊ :एक दौर था जब बच्चे दादा-दादी, चाचा-चाची के साए में पलते थे और बड़े होते थे. अब माता-पिता दो-तीन महीने के छोटे बच्चों को बहलाने फुसलाने के लिए मोबाइल फोन पकड़ा देते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस वजह से बच्चे की आंखों पर कितना दुष्प्रभाव पड़ता है. बच्चे की आंखों के साथ मानसिक व्यवहार में भी काफी बदलाव होता है. मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ सिंह के मुताबिक पहले बच्चे घर परिवार के किसी न किसी सदस्य की गोद में रहते थे. मोबाइल फोन की आवश्यकता नहीं होती थी, लेकिन आज खिलौने छोड़ आधुनिकता की होड़ में मोबाइल फोन की तरफ रुख कर रहे हैं. हाल ही में पिछले तीन महीनों की ओपीडी की लिस्ट निकाली गई. जिसमें यह लिखा गया कि अस्पताल की ओपीडी में कितने रोजाना बच्चे आ रहे हैं जो वीडियो गेम एडिक्टेड हैं. जब माता पिता के हाथ से चीज निकल जाती है तो वह बच्चे की काउंसिलिंग के लिए अस्पताल लाते हैं.
बलरामपुर अस्पताल के वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. देवाशीष शुक्ला ने बताया कि बच्चों के मोबाइल फोन की शुरुआत खुद पेरेंट्स ही करते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है कि आज के समय में सभी न्यूक्लियर फैमिली में है. पहले के समय में ज्वाइंंट फैमिली होती थी. परिवार में 20-25 सदस्य होते थे. बच्चा किसी न किसी घर के सदस्य की गोद में खेलता था, लेकिन न्यूक्लियर फैमिली के साइड इफेक्ट यही हैं कि बच्चे के साथ खेलने के लिए कोई भी नहीं है. दूसरी बात यह है कि न्यूक्लियर फैमिली होने की अलावा माता-पिता दोनों ही वर्किंग हैं. छोटा बच्चा किसी आया या मेड के भरोसे पल रहा है. यह दोनों कारण सबसे प्रमुख कारण हैं कि बच्चे आज के समय में बहुत ही रूड (गुस्सेल) हो रहे हैं. माता-पिता से अच्छी बॉन्डिंग होती नहीं है. माता-पिता को बच्चे के लिए समय नहीं मिलता है. शाम को जब थक हार कर घर आते हैं तो फैमिली के साथ डिनर किया सो गए. इसके बाद बच्चे के साथ समय नहीं करते हैं.
डॉ. देवाशीष के अनुसार अक्सर माता-पिता अपने काम को करने के लिए बच्चे के हाथ में मोबाइल फोन पकड़ा देते हैं. यहीं से बच्चे को मोबाइल की लत लगनी शुरुआत हो जाती हैं. बच्चे को मोबाइल में तमाम प्रकार की चीजें देखने को मिलती हैं. कार्टून देखने को मिलते हैं, रंग-बिरंगे फीचर्स देखने को मिलता हैं जो उसे अपनी और आकर्षित करते हैं. बच्चा रोएगा, शैतानी करेगा या फिर शोर करेगा तो माता-पिता मोबाइल पकड़ा देते हैं. इसी तरह से बच्चे का एडिक्शन बढ़ता जाता है. अस्पताल में बहुत से माता-पिता अपने बच्चे को लेकर आते हैं. जिनकी शिकायत होती है कि बच्चा दिन र मोबाइल में लगा रहता है और जब मोबाइल नहीं मिलता है तो वह बहुत ही गुस्सा करता है और चिड़चिड़ाता आता है. अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 10 से 20 केस ऐसे आते हैं.
एक महीने में छूटी मोबाइल लत :लखनऊ में निशातगंज से एक माता-पिता अपने पांच वर्षीय बच्चे को लेकर बलरामपुर अस्पताल पहुंचे. जहां पर उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि बच्चा मोबाइल फोन का इस्तेमाल बहुत अधिक करता था. स्कूल से आने के बाद तुरंत मोबाइल में कार्टून देखना शुरू कर देता था. आलम यह था कि बिना मोबाइल देखे खाना तक नहीं खाता था. जिस कारण उसे बलरामपुर अस्पताल लेकर आए और यहां पर हमने विशेषज्ञ से बातचीत की. विशेषज्ञ ने हमें दो तीन बातें बताई थीं. जिसे हमने बच्चे पर इंप्लीमेंट किया और अब बच्चा मोबाइल की मांग भी नहीं करता है, यहां तक कि मोबाइल सामने भी रखा रहता है तो भी अपने खेलकूद में ही व्यस्त रहता है.