लखनऊ :अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर उत्तर प्रदेश में तैयारियां अभी से तेज हो गई हैं. सीटों के लिहाज से सबसे बड़ा राज्य होने के कारण सभी दलों की निगाहें भी प्रदेश पर रहती हैं. निकाय चुनावों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुछ सीटों समेत कई जगह यह देखने को मिला कि मुस्लिम मतदाताओं का रुझान सपा के स्थान पर कांग्रेस या ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम के पक्ष में रहा. निकाय चुनावों के बाद यह सवाल जोर पकड़ने लगा है कि आखिर लोकसभा चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं का रुख किसके पक्ष में होगा.
प्रदेश में पिछले कई दशक से मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद समाजवादी पार्टी ही रही है. यह बात और है कि कभी भाजपा को हराने के लिए मुस्लिम मतदाताओं ने बहुजन समाज पार्टी या राष्ट्रीय लोक दल को वोट दिया हो, पर उनका स्थायी ठिकाना सपा ही रही है. पिछले डेढ़-दो वर्षों में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनसे मुस्लिमों का समाजवादी पार्टी से भरोसा दरका है. इस समुदाय में अब कहीं न कहीं यह चर्चा उठने लगी है कि सपा उनके हितों की रक्षा नहीं कर पा रही है और न ही उनकी समस्याओं या विषयों को सही ढंग से उठाने का प्रयास होता है. वहीं एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम समुदाय के मसले जोर-शोर से उठाते हैं. संसद हो या जनसभा वह अपना नजरिया खुलकर रखते हैं और धीरे-धीर मुस्लिमों खासतौर पर युवाओं में अपनी पैठ बनाते जा रहे हैं, वहीं तमाम अन्य लोगों को लगता है कि अब कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है, जो मुस्लिमों का कल्याण कर सकती है.
ऐसे कई कारण हैं, जो समाजवादी पार्टी से मुस्लिम समुदाय के मोहभंग के लिए जिम्मेदार माने जा रहे हैं. यदि बड़े चुनावों को छोड़ दें तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव प्रचार करने शायद ही निकलते हों. लोकसभा और विधानसभा के उप चुनाव हों या निकाय चुनाव, अखिलेश यादव बिरले ही चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे. यही कारण है कि उनके द्वारा खाली की गई आजमगढ़ लोकसभा सीट और सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान द्वारा छोड़ी गई रामपुर लोकसभा सीट भाजपा ने छीन ली. निकाय चुनाव में भी वह एक भी मेयर प्रत्याशी नहीं जिता सके. इसे लेकर मुस्लिमों में खासा आक्रोश है. लोगों का कहना है कि जब आपका मुकाबला ऐसे दल से है, जो हमेशा लड़ाई के लिए तैयार रहता है, तो आपको भी अपनी तैयारी और प्रचार उसी स्तर पर करना होगा. मुस्लिम समुदाय में सबसे ज्यादा नाराजगी उन मुद्दों को लेकर है, जहां अखिलेश यादव खामोशी अख्तियार कर लेते हैं. अयोध्या मामला हो या आजम खान का प्रकरण, ऐसे तमाम विषय आए, जहां अखिलेश यादव से मुस्लिम समुदाय के लोगों की उम्मीदें पूरी नहीं हुईं. सपा विधायक इरफान सोलंकी और सारस पालने वाले आरिफ के साथ प्रशासनिक रवैये पर अखिलेश की खामोशी भी इस समाज के लोगों को बहुत अखरी है.