लखनऊः शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक का मंगलवार को इंतकाल हो गया. बुधवार को लखनऊ के यूनिटी कॉलेज कैंपस में जनाजा निकाला गया, जिसमें लाखों लोग शामिल हुए. जनाजे में मौलाना कल्बे जवाद, मौलाना सैफ अब्बास, उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा सहित कई बड़ी हस्तियां शामिल रहीं. जनाजे के दौरान सड़कों पर भारी संख्या में पुलिस बल भी मौजूद रहा. सड़क पर सुरक्षा व्यवस्था का भी का इंतजाम किया गया था. सुरक्षा व्यवस्था की मॉनिटरिंग खुद आईजी लॉ एंड ऑर्डर नवीन अरोड़ा कर रहे थे. चौक स्थित कब्रिस्तान गुफरान मआब में उन्हें सुपुर्दे खाक (दफनाया) किया गया.
दो बार पढ़ी गई नमाज
मरहूम कल्बे सादिक साहब की नमाजे जनाजा दो बार में पढ़ाई गई. एक बार यूनिटी कॉलेज में पढ़ी गई थी, लेकिन जो लोग भी इस नमाजे जनाजा में शामिल नहीं हो सके थे, वह दूसरी बार ऐतिहासिक स्थल घंटाघर पर हुई नमाज में शामिल हुए. वहीं, इस दौरान मुस्लिम महिलाएं भी इस जनाजे में शामिल होने के लिए कब्रिस्तान पहुंचीं. इस जनाजे को कब्रिस्तान तक ले जाने के लिए रुट डायवर्जन भी किया गया. साथ ही चप्पे-चप्पे पर पुलिस खड़ी नजर आई. लोगों ने कल्बे सादिक को दफनाने से पहले मजलिस पढ़ी. मजलिस पढ़ने के बाद मातम हुआ और उसके बाद उनके शव को दफनाया गया. इस दौरान सभी लोगों ने गमजदा आंखों से उन्हें रुख्सती दी.
इसी कब्र में किया गया सुपुर्दे खाक सोशल डिस्टेंसिंग भूले लोग
जनाजे के दौरान लोग कोविड-19 से बचाव के नियम भूले दिखे. इस दौरान भारी भीड़ रही पर कहीं भी सामाजिक दूरी नजर नहीं आई. अनेक लोगों के चेहरों पर मास्क भी नहीं दिखा. इतनी बड़ी संख्या में लोगों के सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने पर पुलिस भी असहाय दिखी.
शिक्षा को देते थे तवज्जो
कल्बे सादिक शिक्षा को काफी तवज्जो देते थे, जिस बारे में लोग चर्चा करते रहे. लोगों की जुबान पर सबसे ज्यादा यही बात देखने को मिली कि जिस तरह से सुभाष चंद्र बोस कहते थे तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा. उसी तर्ज पर मरहूम कल्बे सादिक साहब अक्सर कहते थे आप मुझे जमीन दीजिए मैं आपको स्कूल दूंगा. मौलाना ने नई पीढ़ी को शिक्षित करने में अपनी जिंदगी लगा दी और हर वक्त इसी उधेड़बुन में लगे रहते थे. वह बहुत मेहनती थे, लगभग 14 से 16 घंटे काम करते थे. वह ऐसे आलिम थे जिन्होंने वह रास्ता अपनाया जिस पर आमतौर पर उलमा तवज्जो नहीं देते थे.
अलीगढ़ में प्राप्त की उच्च शिक्षा
मरहूम कल्बे सादिक साहब कि शुरुआती तालीम मदरसा नदिया में हुई. उसके बाद सुल्तान उल मदरिस से डिग्री हासिल की. लखनऊ यूनिवर्सिटी से स्नातक किया फिर अलीगढ़ गए जहां से एमए और पीएचडी की. उसके बाद उनकी सोच का दायरा और बढ़ गया. नई नस्ल को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए पागल रहते थे और वह कहा करते थे कि मेरा जो भी चाहता है के जरदोज़ के हाथों से सुई छीनकर कलम थमा दो और मूंगफली बेचने वाले के बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाई करें.