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नाटक 'अमृतसञचयम्' के जरिए दिया जल संरक्षण का संदेश

राजधानी लखनऊ में संस्कृत नाटक 'अमृतसञचयम् ' के जरिए पानी की बर्बादी रोकने और उसके संरक्षण का संदेश दिया गया. नाटक उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान एवं अमेजोहाबर्स की ओर आयोजित किया गया था.

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लखनऊ में संस्कृत नाटक अमृतसञचयम् का मंचन.

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Published : Jan 12, 2021, 8:56 AM IST

लखनऊ:भूतल का जल का स्तर कम होना पर्यावरण के लिए घातक है. इसलिए जल बचाओ-पर्यावरण बचाओ जैसे अभियान चलाकर लोगों को जल संरक्षण का संकल्प दिलाया जाता है. सोमवार को राजधानी लखनऊ में संस्कृत नाटक 'अमृतसञचयम् ' के जरिए पानी की बर्बादी रोकने और उसके संरक्षण के लिए संदेश दिया गया. नाटक उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान एवं अमेजोहाबर्स की ओर से आयोजित किया गया था.

लखनऊ में संस्कृत नाटक अमृतसञचयम् का मंचन.

पानी बचाने के लिए लोगों को किया गया जागरूक

नाटक का शुभारंभ संस्कृत नाटकों के नान्दी पाठ से हुआ. इसमें बाद सृष्टि और जीवन के लिए आवश्यक तत्व ‘जल’ की स्तुति की गई. नाटक का मंचन कर रहे कलाकर पानी बचाने के लिए लोगों को जागरूक कर रहे थे. नाटक के माध्यम से जल बचाएं-जीवन बचाएं का संदेश देकर जल संरक्षण के लिए प्रेरित किया गया. नाटक में दिखाया गया कि पृथ्वी पर पेयजल की भयानक स्थिति है. लोगों को पानी पीने के लिए नहीं मिल रहा है. ऐसे में लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. गर्मी के सीजन में पानी की भारी कमी होने पर टैंकर से पेयजल की व्यवस्था की जा रही है.

लखनऊ में संस्कृत नाटक अमृतसञचयम् का मंचन.

नाटक में ग्रामीण पेयजल के संकट को दर्शाया गया. दिखाया गया कि किस तरह से प्रधान पेयजल के लिए आवंटित धनराशि का बंदरबाट कर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं. पानी के नाम पर की जा रही तुच्छ राजनीति से जल संकट गहराता जा रहा है. नाटक का अंत जल संरक्षण का संदेश देकर संपन्न किया गया. नाटक के मूल लेखक डाॅ. अरविंद तिवारी और संस्कृत में अनुवाद अनिल कुमार गौतम ने किया. निर्देशन ललित सिंह पोखरिया ने किया. नाटक में सूत्रधार के रूप में विमलेन्द्र प्रताप सिंह और नदी के किरदार में राधिका गुप्ता थीं.

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