लखनऊ:बसपा यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर सधी रणनीति पर काम कर रही है. उसका कैडर डोर-टू-डोर कंपेन कर रहा है. वहीं, गरीबों की जुड़ी योजनाओं से भाजपा में जहां उसके मूल वोट में सेंध की आशंका बनी हुई है. वहीं सपा के लोहिया वादी के साथ-साथ अंबडेकरवादी के संकल्प ने चुनौती और बढ़ा दी है. ऐसे में बसपा प्रमुख मायावती 'पांच खास प्लान' के जरिए दो फरवरी को आगरा से मैदान में उतरने जा रही हैं. जनसभा करके वो दलित समाज को एकजुट करने के साथ-साथ भाईचारा का फॉर्मूला भी फिट करेंगी.
1-दलितों का अधिकार: मायावती भाजपा-सपा को दलित विरोधी करार देंगी. इसके जरिये अपने बिखरे वोटों को एकजुट करेंगी. भाजपा को जहां आरक्षण मसले पर घरेंगी. वहीं सपा द्वारा संसद में प्रमोशन में आरक्षण का बिल फाड़ने की घटना की याद दिलाएंगी.
मायावती सेट करेंगी जीत का एजेंडा 2-कानून व्यवस्था: मायावती चुनावी जनसभा में कानून व्यवस्था का मसला उठाएंगी. इसमें लखीमपुर हिंसा, पुलिस कस्टडी में मौतें, एनकांउटर व महिलाओं के साथ हुई घटनाओं के जरिए भाजपा को घरेंगी. वहीं, दंगा, लूट के जरिए सपा शासनकाल की याद दिलाएंगी.
3-बेरोजगारी-किसानी: मायावती के एजेंडे में बेरोजगारी, कर्मियों के मसले भी शामिल हैं। पेपर लीक प्रकरण, विभागों में लाखों डंप भर्ती को लेकर सरकार को घरेंगी. इसके अलावा किसानों की आय दो गुना को लेकर भी सवाल उठाएंगी. वहीं सपा सरकार में नौकरी में भ्रष्टाचार को लेकर हमला बोलेंगी.
इसे भी पढ़ें - गृहमंत्री अमित शाह ने किए बांके बिहारी के दर्शन, बोले- अगले 5 साल में यूपी को नंबर वन बनाएंगे
4-अपनी नीति का बखान:मायावती बसपा के शासनकाल की नीतियों को भी जनता के समक्ष रखेंगी. इसमें प्रदेश में कायम रही कानून-व्यवस्था का दावा करेंगी. साथ ही दलित, महिला, मजदूर, गरीब, युवा, किसान, कर्मचारियों के हित को लेकर भी अपना पक्ष रखेंगी. साथ ही घोषणा के बजाय काम करने का वादा करेंगे.
5-भाईचारा को देंगी धार: मायावती चुनावी जनसभा में भाईचारा नीति को धार देंगी. इसमें दलितों के साथ-साथ सवर्ण और मुस्लिम वोटरों को साधने की कोशिश करेंगी. खासकर सवर्णों में ब्राह्मणों को जोड़ने पर उनका खास फोकस होगा. इस नीति के जरिए वह 2007 वाली जीत हासिल करने की कोशिश करेंगी.
2007 के चुनाव में बसपा हिट, 62 सीट पर जमाया था कब्जा
बसपा ने 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के जरिए राज्य में बहुमत की सरकार बनाई थी. इस दरम्यान सुरक्षित सीटों पर दलित मतदाताओं के अलावा दूसरे समाज के वोटरों का भी बड़ा समर्थन मिला था. इसमें ब्राह्मणों का बसपा के पाले में आना प्रमुख रहा. अगर पिछले तीन विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो सुरक्षित सीटों (84 एससी-2 एसटी) पर बसपा का प्रदर्शन मन मुताबिक नहीं रहा. 2017 के विधानसभा चुनाव में 86 सुरक्षित सीटों में से बसपा सीतापुर की सिधौली और आजमगढ़ की लालगंज सीट ही फतह कर सकी. इसमें से 70 सीटों पर अकेले भाजपा ने जीत दर्ज की थी.
इससे पहले 2012 के चुनाव में केवल 85 सीटें आरक्षित रहीं। यह केवल एसटी के लिए थीं. इनमें से बसपा केवल 15 सीटें ही जीत सकी थी. यह सीटें रामपुर, मनिहारान, पुरकाजी , नागौर, हाथरस, आगरा कैंट, आगरा ग्रामीण, टूंडला हरगांव, मोहान, महरौनी, नारायणी, मंझनपुर ,कोराओं ,बांसगांव और अजगरा सीट जीती थी। वहीं मायावती ने वर्ष 2007 में सुरक्षित सीटों में से 62 सीटों पर कब्जा जमाया था. यह सीटें बसपा को सत्ता में लाने के लिए मददगार साबित हुईं.
यूपी में जातिगत वोटों का फैक्टर
यूपी में सबसे ज्यादा ओबीसी मतदाता हैं. इसमें करीब 79 जातियां हैं. इनके मतदाताओं की संख्या 52 फीसद है. वहीं, पिछड़ा वर्ग में 11 फीसद मतदाता यादव समाज के हैं. वहीं गैर यादव 45 फीसद मतदाता हैं. इधर, दलित मतदाताओं की संख्या 20.5 से 21 फीसद है. यूपी में जनसंख्या के लिहाज से मुस्लिमों की आबादी लगभग 20 फीसद है. इसके अलावा सवर्ण मतदाताओं की आबादी 23 फीसद है. जिसमें सबसे ज्यादा 11 फीसद ब्राह्मण, 8 फीसदी राजपूत और 2 फीसद कायस्थ व अन्य अगड़ी जाति हैं.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप