लखनऊ : उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हो रहे हैं. इस चुनाव को लेकर सभी दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. चार बार की मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती भी इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहती हैं. प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के लिए वह अपने पुराने वोट बैंक को हर हाल में हासिल करना चाहती हैं. इसके लिए उन्होंने जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश शुरू कर दी है.
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक. ...ताकि मिल सके जनता का साथ
मायावती ने जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य के पदों पर बसपा समर्थित उम्मीदवारों का एलान किया है. बसपा कार्यकर्ता भी पार्टी समर्थित इन उम्मीदवारों को चुनाव जिताने में जी जान से लगे हुए हैं. सूत्रों के अनुसार, पंचायत चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने ब्राह्मण, मुस्लिम, दलित व अति पिछड़ी जातियों को भरपूर टिकट दिया है. खास बात यह भी है कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण के साथ ही दलित व मुस्लिम उम्मीदवारों को भी बसपा समर्थित उम्मीदवार बनाया गया है, ताकि पार्टी को जनता का साथ मिल सके.
विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल है पंचायत चुनाव
दरअसल, 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मायावती सत्ता की कुर्सी पर काबिज होने को लेकर उत्तर प्रदेश में किस प्रकार से चुनाव मैदान में उतरना है, किस जाति वर्ग के लोगों को अधिक टिकट देकर चुनाव में सफलता अर्जित करनी है, उसको लेकर अपनी रणनीति बनाने में जुटी हुई हैं. अब जब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सेमीफाइनल के रूप में पंचायत चुनाव हो रहे हैं तो बसपा इसी बहाने अपनी सियासी ताकत का अंदाजा भी लगा लेना चाहती है. इसी आधार पर अगले चुनाव में पूरी रणनीति बनाने की कोशिश होगी.
ब्राह्मण-दलित-मुस्लिम समीकरण पर अधिक फोकस
बसपा के कई पदाधिकारी अनौपचारिक बातचीत में बताते हैं कि विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ब्राह्मण, दलित व मुस्लिम समीकरण के आधार पर चुनाव मैदान में उतरना चाहती है. इस समीकरण के आधार पर चुनाव लड़ने से पहले वह पंचायत चुनाव में उसे कितना फायदा हो रहा है, इसे देख लेना चाहती है. इसीलिए बसपा ने पंचायत चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे हैं. चुनाव परिणाम 2 मई के बाद आएंगे तो बहुजन समाज पार्टी चुनाव परिणामों के आधार पर अपनी आगे की रणनीति बनाएगी. इसके अलावा विधानसभा चुनाव में किस पार्टी के साथ गठबंधन किया जाना बसपा के लिए ज्यादा मुफीद होगा, उसको लेकर बसपा के नेता लगातार छोटे बड़े दलों के संपर्क में हैं. खासकर ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व में बने संकल्प भागीदारी मोर्चे के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की चर्चाएं भी तेज हैं.
गांव तक क्या है पार्टी की ताकत, जान लेना चाहती है बसपा
यही नहीं, खास बात यह भी है कि पंचायत चुनाव निचले स्तर तक हो रहे हैं और बहुजन समाज पार्टी का कैडर बेस वोटर भी निचले स्तर पर है. ऐसे में एकदम धरातल पर बहुजन समाज पार्टी की ताकत की क्या स्थिति है, इस पंचायत चुनाव के बहाने बसपा इसका आंकलन करने में जुटी हुई है. मायावती पंचायत चुनाव के बहाने सियासी जमीन पर अपनी पकड़ और पहुंच का अंदाजा लगा लेना चाहती हैं. इसीलिए बसपा ने रणनीति बनाकर पहली बार उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में समर्थित उम्मीदवारों को उतारने का काम किया. बसपा के रणनीतिकार इसे विधानसभा चुनाव 2022 से जोड़कर ही देख रहे हैं.
ये भी पढ़ें:झारखंड से ऑक्सीजन टैंकर की दूसरी खेप पहुंची लखनऊ
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव चल रहे हैं और बहुजन समाज पार्टी ने भी अपने समर्थित उम्मीदवार उतारे हैं. प्रत्येक विधानसभा स्तर पर जातीय समीकरण को देखते हुए मायावती ने ब्राह्मण उम्मीदवार भी उतारे हैं. इसके अलावा अन्य जातियों के उम्मीदवारों को भी बसपा ने समर्थन दिया है. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले स्वाभाविक रूप से बहुजन समाज पार्टी इस पंचायत चुनाव के बहाने अपनी ताकत का एहसास कर लेना चाहती है. स्वाभाविक रूप से जो चुनाव परिणाम होंगे, उसके आधार पर मायावती अपनी अगली रणनीति बनाकर विधानसभा चुनाव में उतरेंगी.