लखनऊ :सियाचिन ग्लेशियर के बंकर में आग लग जाने पर अपनी जान की परवाह न करके अपने साथियों की जान बचाने वाले लखनऊ के कैप्टन डॉ. अंशुमान सिंह शहीद हो गए. डॉ. अंशुमान की उम्र अभी महज 25 साल ही थी. फरवरी में ही शादी हुई थी. माता-पिता अपने बेटे पर गर्व कर रहे थे तो पत्नी भविष्य के सुनहरे सपने बुन रही थी, लेकिन अचानक इस घटना से माता-पिता से बेटा और पत्नी से सुहाग छिन गया. मूल रूप से देवरिया निवासी शहीद डॉ. अंशुमान सिंह का उनके पैतृक गांव में ही अंतिम संस्कार किया गया. वर्तमान में यह परिवार लखनऊ के आलमनगर स्थित सलीम खेड़ा में निवास करता है. सूचना मिलने के बाद अब सभी लखनऊ से देवरिया के लिए जा चुके हैं. ईटीवी भारत भी शहीद कैप्टन अंशुमान के आलमनगर स्थित घर पहुंचा.
एक दिन पहले तक जिस घर में खुशियों का माहौल था, मोहल्ले में रौनक रहती थी. गुरुवार को उस घर में मातम पसरा था. मोहल्ले की सारी गलियां सूनी थीं. जैसे ही लोगों को कैप्टन डॉ. अंशुमान के शहीद होने की जानकारी मिली, वैसे ही उनके घर पर श्रद्धांजलि देने के लिए लोग पहुंचने लगे थे. हालांकि जब उन्हें यह पता लग रहा है कि घर में कोई है ही नहीं, सभी देवरिया के लिए रवाना हो चुके हैं तो वे गमजदा होकर वहां से वापस लौट गए.
ईटीवी भारत ने कैप्टन डॉ. अंशुमान सिंह के घर पहुंचे लोगों से बात की. अंशुमान के साथ हुई इस घटना से सभी काफी दुखी थे. लोगों का कहना था कि मुझे इस बात का भी फक्र है कि इतनी कम उम्र में अंशुमान ने अपने कई साथियों की जान बचाई और खुद अपनी कुर्बानी दे दी. यह ऐसा जख्म है जो कभी भर तो नहीं सकता है, लेकिन माता-पिता को हमेशा अपने देश की रक्षा में प्राणों की आहुति देने वाले अपने जांबाज बेटे पर नाज रहेगा.
सेना से रिटायर्ड नायक रणधीर सिंह गुरुवार सुबह अखबार में डॉ. अंशुमान के शहीद होने की खबर पढ़ी तो वे सीधे घर पर आए थे. हालांकि यहां पहुंचने पर पता चला कि पूरा परिवार पैतृक गांव देवरिया के लिए रवाना हो चुका है. ईटीवी भारत से बातचीत में रणधीर सिंह ने कहा कि कैप्टन अंशुमान जांबाज थे. उनकी बहादुरी का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि अपनी जान की परवाह किए बगैर बंकर के अंदर मौजूद अपने तीन साथियों की जान बचाई. दूसरी बार भी अन्य जवानों की जान बचाने के लिए बंकर में गए थे, लेकिन वहां उनके साथ ही हादसा हो गया. हमें डॉ अंशुमान की जांबाजी पर फक्र है.