लखनऊ :अवध का इतिहास बहुत पुराना है. हिन्दू ग्रंथों और मान्यताओं के हिसाब से यह अवधपुरी है, लेकिन मुस्लिम शासकों ने यहां आने के बाद लखनऊ को अपना ठिकाना बना लिया. प्राचीन काल में इसे लखनपुरी के नाम से भी जाना जाता था. आधुनिक भारत में मुगलों की गतिविधियां बढ़ने की वजह से लखनपुरी लखनऊ में तब्दील हो गया और इसे नवाबों का शहर कहा जाने लगा.
इस दौरान मुगलों ने कई इमारते बनवाईं, जो आज भी लखनऊ की शान बढ़ा रही हैं. उनमें से एक है नवाब सआदत अली खां का मकबरा. इसे सआदत अली के बेटे ने बनवाया था. इस मकबरे को देखने के लिए आज भी लोग यहां आते हैं. सआदत अली खां का मकबरा लखनऊ के कैसरबाग क्षेत्र में भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय के ठीक बगल में स्थित है. सआदत अली के मकबरे को उनके बेटे गाजीउद्दीन हैदर ने बनवाया था. इस मकबरे को गाजीउद्दीन हैदर ने वहीं पर बनवाया था, जहां वह खुद युवराज की हैसियत से रहा करते थे.
लखौरी ईटों से निर्मित इस इमारत पर चुने के मसाले से प्लास्टर और अलंकरण किया गया है. प्रत्येक कोने पर स्तंभ युक्त छतरी है, जिसके ऊपर गुंबद है. मुंडेरों पर अनेक छोटी मीनारें और गुम्बदों की सजावट है. मुख्य कक्ष तल विन्यास में अष्टकोणीय है, जिसकी फर्श को शतरंज के बोर्ड की भांति काले और सफेद संगमरमर के पत्थरों से सुसज्जित किया गया है. नवाब को इस तल के नीचे तहखाने में उत्तर-दक्षिण दिशा में दफनाया गया है. अलग से बनाई गई सीढ़ियां एक सकरे रास्ते की ओर जाती हैं, जहां नवाब सआदत अली खान और उनके भाइयों के कब्र हैं. पिछले बरामदे से नवाब सआदत अली खां की तीन बेगम के कब्र हैं, जबकि पूर्वी भाग में स्थित तीन कब्र उनकी तीन बेटियों की हैं.
क्या है खासियत
नवाब सआदत अली खां का मकबरा जिस भवन में स्थित है, वह भवन बेहद ही खूबसूरत है. हवादार महल नुमा यह भवन आज भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है. दीवारों पर लगे प्लास्टर और संगमरमर की फर्श शीतलता प्रदान करती है. यही वजह है कि गर्मी के दिनों में भी इस भवन में गर्मी का एहसास नहीं होता है. भवन काफी ऊंचाई पर बना हुआ है. चारबाग रेलवे स्टेशन से महज 15 मिनट की दूरी तय करके यहां तक पहुंचा जा सकता है. अमीनाबाद से सटा हुआ कैसरबाग जहां पर यह मकबरा शहर की खूबसूरती को बढ़ा रहा है.