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चित्रकूट जेलकांड: जेल अधीक्षक, जेलर का जेल में न रहना इत्तेफाक या फिर साजिश ?

चित्रकूट जेलकांड में नया मोड़ सामने आया है. दरअसल, इस मामले में जेल अधीक्षक की तरफ से दर्ज कराई गई एफआईआर में कहा गया है कि, जिस समय ये घटना हुई उस समय जेल में जेल अधीक्षक और जेलर दोनों मौजूद नहीं थे. ऐसे में अब ये सवाल उठ रहा है कि, दोनों अधिकारियों का एक साथ जेल में नहीं होना इत्तेफाक है या साजिश. वहीं सूत्रों की मानें तो जेल में अंशू दीक्षित के पास 9 एमएम पिस्टल जेल रक्षकों ने ही पहुंचाई है. तीन सदस्यीय कमेटी की जांच में यह सनसनीखेज खुलासा हुआ है. पूरे मामले में जांच कमेटी के निशाने पर जेल का एक हेड वार्डर व एक पीएसी का जवान है.

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Published : May 17, 2021, 7:49 AM IST

चित्रकूट जेलकांड
चित्रकूट जेलकांड

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिला जेल में हुए गैंगवार के वक्त जेल अधीक्षक एसपी त्रिपाठी और जेलर महेंद्र पाल का जेल में न रहना इत्तेफाक या फिर साजिश है. सूत्रों की मानें तो जेल में अंशू दीक्षित के पास 9 एमएम पिस्टल जेल रक्षकों ने ही पहुंचाई है. तीन सदस्यीय कमेटी की जांच में यह सनसनीखेज खुलासा हुआ है. पूरे मामले में जांच कमेटी के निशाने पर एक जेल हेड वार्डर व एक पीएसी का जवान है. एसटीएफ इन दोनों कर्मियों की भूमिका की जांच कर रही है. वहीं, जेल अधीक्षक की ओर से लिखाई गई FIR से पता चलता है कि जिस वक्त अंशु दीक्षित जेल में ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहा था, उस वक्त कोई भी वरिष्ठ अधिकारी जेल में मौजूद नहीं था.

सुरक्षा बंदोबस्त में बड़ी लापरवाही

चित्रकूट जेल में गैंगवार में सुरक्षा बंदोबस्त में बड़ी लापरवाही सामने आई है. जेल में घटना के वक्त जेल अधीक्षक, जेलर व अन्य अधिकारियों के मौजूद न होने पर कई सवाल उठ रहे हैं. चर्चा इस बात की हो रही है कि जेल में हुए गैंगवार के वक्त जेल अधीक्षक एसपी त्रिपाठी और जेलर महेंद्र पाल का जेल में न रहना इत्तेफाक या फिर साजिश है. जेल में पिस्टल कैसे पहुंची, यह अभी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो सका है. घटना की न्यायिक जांच होगी, जिसकी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. पुलिस विवेचना में कई तथ्य पूरी तरह से स्पष्ट हो सकेंगे. निलंबित किए गए जेल के दो हेड वार्डर के अलावा सुरक्षा-व्यवस्था में तैनात पीएसी के एक सिपाही की भूमिका की गंभीरता से जांच हो रही है. डीजी जेल आनन्द कुमार का कहना है कि सभी बिंदुओं पर जांच कराई जा रही है.

FIR में हुए कई सनसनीखेज खुलासे
FIR के मुताबिक, जिस वक्त ये गैंगवार हुआ उस समय जेल अधीक्षक एसपी त्रिपाठी और जेलर महेंद्र पाल सिंह अपने-अपने घरों में थे. जेलर महेंद्र पाल ने सुबह 5:31 बजे जेल और हाई सिक्योरिटी बैरक को खुलवाया था, ताकि बंदी अपने नित्य कर्म कर सकें. जिसके बाद जेल अधीक्षक सुबह 7:02 बजे जेल में आ गए थे और 7:55 बजे जेलर अपने सरकारी आवास में नहाने-धोने और नाश्ता करने के लिए चले गए थे. वहीं, जेल अधीक्षक 9:30 बजे अपने सरकारी आवास पर नहाने-धोने और नाश्ता करने गए थे.

गैंगवार के वक्त नहीं था कोई जेल अफसर मौजूद
FIR के मुताबिक, सुबह करीब 9:55 बजे जेल अधीक्षक को पता चला कि हाई सिक्योरिटी बैरक का एक बंदी पिस्टल से लगातार फायरिंग कर रहा है. जिसके बाद जेल अधीक्षक और जेलर अपने सरकारी आवास से 10:06 बजे जेल पहुंचे थे. 10:20 बजे जेल अधीक्षक की ओर से अलार्म कराया गया और डीएम और एसपी को सूचना दी गई. इस घटनाक्रम के बाद अब जेल मुख्यालय की ओर से जो निर्देश जारी किए गए हैं उसमें बिल्कुल साफ कर दिया गया है कि जेल अधीक्षक, जेलर में से कोई एक अधिकारी जेल में मौजूद रहना ही चाहिए था.

दोनों डिप्टी जेलरको रोना पॉजीटिव
हालांकि चित्रकूट जेल में जब यह वारदात हुई तो दोनों डिप्टी जेलर भी उस वक्त जेल में नहीं थे. बताया जा रहा है कि वह दोनों कोरोना पॉजिटिव होने की वजह से छुट्टी पर चल रहे थे. अब यह सभी अधिकारी जानबूझकर जेल से बाहर थे या नहीं, यह अब जांच का विषय है.

जेल प्रशासन पर उठे सवाल
चित्रकूट जेल में अंशू दीक्षित और मेराज एक ही हाते में कैद थे, लेकिन अलग-अलग बैरक में. वहीं मुकीम दूसरे हाते में था. इसके बावजूद अंशू ने किस तरह जेल की भीतरी सुरक्षा की हर परत को तार-तार किया, जिसे लेकर अधिकारियों के पास ठोस जवाब नहीं हैं. चित्रकूट जेल में बीते 14 मई को हुई वारदात के बाद जब अधिकारियों की आंख खुली तो जांच में कई कमियां सामने आईं. यहां बंदियों की सुरक्षा के नियमों की लगातार अनदेखी हो रही है. बंदियों के एक स्थान से दूसरे स्थान तथा एक बैरक से दूसरी बैरक में आने-जाने को पूरी तरह प्रतिबंधित नहीं किया जा रहा है. ना ही मूवमेंट रजिस्टर बनाए गए हैं.

नियमों की हो रही अनदेखी
संवेदनशील स्थलों पर जवाबदेह कर्मियों की तैनाती भी नहीं है. कारागार में कोई एक अधिकारी उपस्थित रहे, यह सुनिश्चित नहीं किया जा रहा है. संवेदनशील बंदियों तथा उनके कक्ष, बैरकों, अहातों की नियमित रूप से प्रभावी तलाशी भी नहीं की जा रही है. बंदियों के सामानों की नियमानुसार सघन तलाशी की भी अनदेखी हो रही है. इसके लिए उपलब्ध उपकरणों का प्रयोग तक नहीं हो रहा है. चित्रकूट जेल में हुई घटना इन्हीं नियमों की घोर अनदेखी का परिणाम है.

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