लखनऊःकोरोना से इस समय पूरा विश्व परेशान है. कोरोना के कारण देश के कई जाने-माने लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं साहित्य जगत के कई कलमजीवी, कवि, साहित्यकार भी कोरोना के कारण मौत के मुंह में जा चुके हैं. 2020 में जहां राहत इंदौरी, खगेंन्द्र ठाकुर की मौत कोरोना के कारण हो गई थी, वहीं अब कोरोना की इस दूसरी लहर में कवि वाहिद अली वाहिद, साहित्यकार डॉ. नरेन्द्र कोहली, इशरत रिजवी लखनवी की मौत हो गई है. अभी भी कोरोना का प्रसार थमने का नाम नहीं ले रहा है.
साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली
देश के जाने-माने साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली बीते शनिवार को नहीं रहे. हिंदी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें साल 2017 में पद्म अलंकरण से नवाजा गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेंद्र कोहली के निधन पर शोक जताते हुए कहा, 'सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेंद्र कोहली जी के निधन से अत्यंत दुख पहुंचा है. साहित्य में पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्रों के जीवंत चित्रण के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे.' उनकी गिनती हिन्दी के नामचीन साहित्यकारों में होती है. उन्होंने अभ्युदय, युद्ध, वासुदेव, अहिल्या जैसी कई किताबें लिखीं, जो खूब पढ़ी व सराही गईं.
वाहिद अली वाहिद
कौमी एकता के पैरोकार कवि वाहिद अली वाहिद (59) का मंगलवार को देहांत हो गया. वह लखनऊ के रहने वाले थे. द्वंद कहां तक पाला जाए, युद्ध कहां तक टाला जाए, तू भी राणा का वंशज है, फेंक जहां तक भाला जाए...जैसी रचनाएं देने वाले कभी वाहिद अली वाहिद कौमी एकता के पैरोकार थे. जब पूजा अजान में भेद न हो, खिल जाती है भक्ति की प्रेम कली रहमान की, राम की एक सदा, घुलती मुख में मिसरी की डली... जैसी पंक्तियों के सहारे वाहिद कौमी एकता की मिसाल पेश करते रहे. उनके जाने से साहित्य जगत में शोक की लहर है. वाहिद को कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.
शायर इशरत रिजवी लखनवी
राजधानी के मशहूर शायर इशरत रिजवी लखनवी का सोमवार को निधन हो गया. वह 72 वर्ष के थे. लखनवी पिछले कई दिनों से बीमार थे. जिसके बाद सोमवार सुबह उनका निधन हो गया. शायर इशरत रिजवी अंजुमन गुलजारे पंजतन और अंजुमन शब्बीरिया के अलावा शहर की कई अंजुमनों के लिए नौहे और सलाम लिखते थे. साथ ही वह अपने लिखी मर्सियों के लिए भी पहचाने जाते थे.
हास्य कवि कमलेश द्विवेदी
कानपुर के हास्य कवि कमलेश द्विवेदी का बीते शनिवार को देहांत हो गया. 'रंगभारती' के अध्यक्ष श्याम कुमार ने बताया कि पहली अप्रैल को हुए 'घोंघाबसंत सम्मेलन' में कमलेश द्विवेदी आए थे. उस समय यह कल्पना भी नहीं हो सकती थी कि एक पखवारा बीतते-बीतते कोरोना का काल उन्हें हमसे छीन लेगा और वह सदा-सदा के लिए संसार से विदा हो जाएंगे. कानपुर के लाजपतभवन में 'रंगभारती' के संगीत-आयोजन हुआ करते थे. फिर वहां हास्य कविसम्मेलन 'गदहा सम्मेलन' शुरू किया गया. कमलेश बहुत सक्रिय थे और अपनी नवरचित कविताएं उस पर डाला करते थे. छंद, मात्रा, भाव आदि की दृष्टि से वो कविताएं बिलकुल खरी होती थीं.