लखनऊ : उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी निराश्रित पशुशाला कान्हा उपवन गायों की देखभाल करने के साथ-साथ गाय के गोबर और गोमूत्र से धूपबत्ती, अगरबत्ती, गमले के साथ-साथ कई प्रोडक्ट बना रहा है. इससे कान्हा उपवन को आय भी हो रही है. कान्हा उपवन प्रदेश की सबसे बड़ी निराश्रित गौशाला है और यहां पर 9000 से अधिक निराश्रित पशु रखे गए हैं.
कान्हा उपवन की सराहनीय पहल. राजधानी लखनऊ के कानपुर रोड स्थित नादरगंज कान्हा उपवन ने वर्तमान समय में 9438 निराश्रित पशु हैं. इसमें से 4127 गाय 4541 सांड और 777 बछड़े हैं. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कान्हा उपवन के सचिव यतींद्र त्रिवेदी ने बताया कि सुबह 4 बजे से पशुओं की देखभाल शुरू हो जाती है. पशुओं के गोबर की सफाई के लिए यहां कर्मचारियों को लगाया गया है. जो सुबह दोपहर शाम तीनों पारियों में गोबर हटाने का काम करते हैं.
कान्हा उपवन की सराहनीय पहल. कान्हा उपवन की सराहनीय पहल. बाड़े में अंकित है पशुओं की संख्या
कान्हा उपवन के सचिव यतींद्र त्रिवेदी ने बताया कि यहां पर गाय-सांड और बछड़ों को अलग-अलग बाड़े में रखा गया है. इसके साथ ही प्रत्येक बाड़े में जितने जानवर रखे गए हैं, उनकी संख्या मुख्य द्वार पर लिखी गई है.
कान्हा उपवन की सराहनीय पहल. 37752 किलोग्राम भूसे का प्रतिदिन होता है प्रयोग
यतींद्र त्रिवेदी ने बताया कि यहां रखे निराश्रित पशुओं के लिए 37752 किलोग्राम भूसे का प्रतिदिन प्रयोग होता है. प्रति जानवर 4 किलोग्राम का भूसा उपयोग होता है. इसके साथ ही इन जानवरों को चोकर भी दिया जाता है.
कान्हा उपवन की सराहनीय पहल. कान्हा उपवन में ट्रामा सेंटर
राजधानी लखनऊ के घायल पशुओं की देखभाल के लिए कान्हा उपवन में ट्रामा सेंटर भी बनाया गया है. यहां पर घायल पशुओं को लाकर इलाज किया जाता है. इसके साथ ही नगर निगम ने एक नंबर 6389300056 भी जारी किया है. जिसके माध्यम से घायल जानवरों के बारे में कोई भी व्यक्ति सूचित कर सकता है, जिसके बाद यहां की टीम उन जानवरों को लाकर यहां पर इलाज कराती है.
कान्हा उपवन की सराहनीय पहल. कान्हा उपवन की सराहनीय पहल. निराश्रित पशुओं के लिए जलते हैं अलाव
प्रदेश में लगातार बढ़ रहे ठंड के कारण निराश्रित पशुओं को सर्दी न लगे इसलिए प्रत्येक बाड़े में अलाव भी जलाए जाते हैं. ताकि इन पशुओं को गर्माहट मिलती रहे और सर्दी से बचाया जा सके.
गाय के गोबर और गोमूत्र का होता है उपयोग
कान्हा उपवन के सचिव यतींद्र त्रिवेदी ने बताया कि यहां पर बड़ी मात्रा में गाय का गोबर और मूत्र प्रतिदिन निकलते हैं. ऐसे में गाय के गोबर से जहां हम लोग गमला, दिया, मूर्तियों के साथ-साथ लट्ठे बना रहे हैं, जिनका प्रयोग श्मशान घाट पर होता है. वहीं गाय के गोबर से फिनायल भी बनाया जा रहा है. इनकी बिक्री से कान्हा उपवन को लाभ भी मिलता है.