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लखनऊ विश्वविद्यालय फर्जी मार्कशीट प्रकरण में एसआईटी की जांच ठंडे बस्ते में

लखनऊ विश्वविद्यालय में उजागर हुए फर्जी मार्कशीट प्रकरण की जांच ठंडे बस्ते में चली गई है. पूरे प्रकरण में एसआईटी 6 महीने में भी जांच पूरी नहीं कर पाई है.

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लखनऊ विश्वविद्यालय फर्जी मार्कशीट प्रकरण.

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Published : Dec 19, 2019, 4:00 AM IST

लखनऊ:लखनऊ विश्वविद्यालय में उजागर हुए फर्जी मार्कशीट प्रकरण की जांच को लेकर एसआईटी का गठन किया गया था. एसआईटी 6 महीने में भी लखनऊ विश्वविद्यालय फर्जी मार्कशीट प्रकरण की जांच पूरी नहीं कर पाई है. अब तक की कार्रवाई में एसआईटी ने विश्वविद्यालय के 6 कर्मचारियों को गिरफ्तार किया है. इन गिरफ्तारी के बाद एसआईटी की जांच ठंडे बस्ते में चली गई है.

जानकारी देते लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रवक्ता.


लखनऊ विश्वविद्यालय में उजागर हुए फर्जी मार्कशीट प्रकरण को लेकर एसआईटी तह तक नहीं पहुंच पाई है. जांच के दौरान एसआईटी ने तमाम दावे किए थे, लेकिन समय के साथ-साथ यह दावे भी जांच के दायरे से दूर होते चले गए. लखनऊ विश्वविद्यालय में कई कर्मचारियों की गिरफ्तारी की गई थी. इसके बाद एसआईटी ने दावा किया था कि उनकी जांच के दायरे में लखनऊ विश्वविद्यालय से जुड़े हुए कई आला अधिकारी भी हैं. जिनके ऊपर जल्द कार्रवाई हो सकती है, लेकिन इन दावों के बावजूद अभी तक लखनऊ विश्वविद्यालय के किसी बड़े अधिकारी पर कार्रवाई नहीं हुई है.


अपनी जांच के दौरान एसआईटी ने खुलासा किया था कि लखनऊ विश्वविद्यालय सहित उत्तर प्रदेश की कई अन्य विश्वविद्यालय व उत्तर प्रदेश के बाहर भी कई विश्वविद्यालय में फर्जी मार्कशीट का धंधा होता है, जोकि एक नेटवर्क के तौर पर काम करता है. एसआईटी ने भले ही इस बात का जिक्र किया हो, लेकिन अभी तक इस पर कार्रवाई नहीं हो पाई है और इस नेटवर्क का खुलासा करने में एसआईटी कामयाब नहीं रही है.


अपनी जांच के दौरान एसआईटी ने खुलासा किया था कि लखनऊ विश्वविद्यालय से ही मार्कशीट का कागज नकली मार्कशीट बनाने वाले गैंग तक पहुंचा है। ऐसे में परीक्षा विभाग के निचले स्तर के कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई, लेकिन एसआईटी इस बात का पता नहीं लगा पाई है कि आखिर लखनऊ विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग से कागज कैसे बाहर गया और इसके पीछे जिम्मेदार अधिकारी की क्या भूमिका रही.


एसआईटी के लिए यह गिरफ्तारी थी महत्वपूर्ण
जानकीपुरम निवासी सौरव यादव नाम के युवक की शिकायत पर पुलिस ने कार्रवाई करते हुए नायब हुसैन को गिरफ्तार किया था, जिसके पास से फर्जी मार्कशीट बनाने में प्रयोग की जाने वाली सामग्री बरामद हुई है. जिन कर्मचारियों को लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन ने निलंबित किया है उनके पास महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां थी. निलंबित किए गए संजय सिंह चौहान कनिष्ठ सहायक बीएससी द्वितीय वर्ष, राजीव पांडे वरिष्ठ सहायक बीए द्वितीय वर्ष, जेबी सिंह कनिष्ठ सहायक डिग्री सेक्शन में समायोजित थे. वहीं नायाब हुसैन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर तैनात था. एसआईटी के लिए यह गिरफ्तारियां महत्वपूर्ण थी. गिरफ्तारी के बाद अंदाजा लगाया जा रहा था कि पूरा नेटवर्क का खुलासा होगा, लेकिन अभी तक नेटवर्क का खुलासा नहीं हो सका है.


यह है पूरा मामला
एक युवक की शिकायत पर लखनऊ पुलिस ने हसनगंज थाने में फर्जी मार्कशीट को लेकर एक मुकदमा दर्ज किया था, जिसकी जांच करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के एक कर्मचारी को गिरफ्तार किया गया था. जिससे पूछतछ में तीन अन्य कर्मचारियों की संलिप्तता सामने आई थी. हालांकि जिन कर्मचारियों की संलिप्तता सामने आई, उन पर कार्रवाई करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय में उन्हें निष्कासित कर दिया था.


डेढ़ लाख रुपए में बनती थी एक फर्जी मार्कशीट
जांच में सामने आया कि एक सेमेस्टर की मार्कशीट बनाने के लिए डेढ़ लाख रुपये लिया जाता था. लखनऊ से गिरफ्तार एक आरोपी कीरोधन के पास करोड़ों की संपत्ति है. किरोधन के साथ-साथ उसके कई रिश्तेदार भी लखनऊ विश्वविद्यालय के अहम पदों पर तैनात हैं. ऐसे में सभी रिश्तेदारों की प्रॉपर्टी के आधार पर भी जांच की जा रही है. पुलिस अधिकारियों को अनुमान है किरोधन व रिश्तेदारों के पास 50 करोड़ से भी अधिक की प्रॉपर्टी है, जिसमें 20 फ्लैट 12 बड़ी गाड़ियां और लाखों रुपये का बैंक बैलेंस शामिल है.

फर्जी मार्कशीट प्रकरण के बाद जहां एसआईटी पूरे मामले की जांच कर रही है. फाइनल रिपोर्ट के आधार पर लखनऊ विश्वविद्यालय आगे की कार्रवाई करेगा. लखनऊ विश्वविद्यालय की ओर से फर्जी मार्कशीट पर लगाम लगाने के लिए कड़े कदम उठाए गए हैं, जहां एक ओर मार्कशीट बनाने में प्रयोग किए जाने वाले कागज की सिक्योरिटी के प्रबंध किए गए हैं. वहीं मार्कशीट पर बुकमार्क की व्यवस्था की गई है. साथ ही लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रों के एड्रेस पर मार्कशीट भेजता है.
-संजय मेधावी, प्रवक्ता, लखनऊ विश्वविद्यालय

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