उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

एलयू के 100 साल: जब पैसों की कमी से टैगोर लाइब्रेरी पर नहीं बन पाया घंटाघर

इस साल लखनऊ विश्वविद्यालय अपने 100 साल पूरे कर रहा है. शताब्दी समारोह के दौरान ही टैगोर पुस्तकालय में राधा कमल मुखर्जी कला दीर्घा की शुरुआत की गई है. वहीं विश्वविद्यालय के टैगोर पुस्तकालय के मेन गेट के ऊपर टावर प्रस्तावित था, जिस पर घंटाघर या बड़ी घड़ी लगाने का प्लान था, लेकिन पैसे की कमी व अन्य कारणों से वह टावर अब तक नहीं बन पाया है.

एलयू के 100 साल
एलयू के 100 साल

By

Published : Nov 25, 2020, 3:28 PM IST

लखनऊ: एलयू अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने का जश्न मना रहा हैं. वहीं लविवि का टैगोर पुस्तकालय भी अपने गौरवमयी इतिहास के लिए जाना जाता है. यह देश के प्रतिष्ठित पुस्तकालयो में एक हैं, लेकिन एक दिलचस्प बात है कि टैगोर लाइब्रेरी के मेन गेट के ऊपर टावर प्रस्तावित था, जिस पर घंटाघर या बड़ी घड़ी लगाने का प्लान था, लेकिन पैसे की कमी व अन्य कारणों से वह टावर अब तक नहीं बन पाया. इस पुस्तकालय का नक्शा अपने समय के मशहूर आर्किटेक्ट ग्रिफिन ने तैयार किया था.

जब पैसों की कमी से की टैगोर लाइब्रेरी पर नहीं बन पाया घंटाघर.

1937 में रखी गई थी पुस्तकालय की नींव
शताब्दी समारोह के दौरान ही टैगोर पुस्तकालय में राधा कमल मुखर्जी कला दीर्घा की शुरुआत की गई है. लखनऊ विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद रविंद्र नाथ टैगोर कई बार यहां आए. उनकी मौत होने के बाद लविवि के केंद्रीय पुस्तकालय का नाम उनके नाम पर रखा गया. बता दें कि पुस्तकालय के भवन की नींव वर्ष 1937 में रखी गई थी और 1940 में इस भवन का उद्घाटन किया गया था. इस पुस्तकालय का नक्शा अपने समय के मशहूर आर्किटेक्ट ग्रिफिन ने तैयार किया था. उनकी मौत के बाद नलीकर ने इसे पूरा किया. इसकी दीवारों पर खास डिजाइन बनाई गई है. इसी तरह मेन गेट पर जो पिलर है उनमें भी खास तरह की आकृति बनाई गई है. यहां करीब पांच लाख से अधिक किताबें हैं. यह रात में 8 बजे तक खुली रहती है.

जब पैसों की कमी से की टैगोर लाइब्रेरी पर नहीं बन पाया घंटाघर.

पैसों की कमी से नहीं बन पाया घंटाघर
पर्यटन अध्ययन संस्थान के शिक्षक प्रशांत चौधरी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि टैगोर लाइब्रेरी के मेन गेट के ऊपर टावर प्रस्तावित था, जिस पर घंटाघर या बड़ी घड़ी लगाने का प्लान था. लेकिन पैसे की कमी व अन्य कारणों से वह टावर नहीं बन पाया. लेकिन आज देश की गिनी चुनी लाइब्रेरी में इसका नाम शामिल किया गया है. इसको बनाने में यूरोपियन अर्टिकेचर का इस्तेमाल किया गया था.

ABOUT THE AUTHOR

...view details