लखनऊ: सपा सरकार (SP Governmnet) में मंत्री रहे अरविंद सिंह गोप (Arvind Singh Gope) को एक आपराधिक मुकदमे में पुलिस के कोर्ट न पहुंचने पर बड़ी राहत मिली है. एमपी-एमएलए कोर्ट के विशेष जज पवन कुमार राय ने 27 साल पुराने उक्त आपराधिक मामले में पिछले दो साल से गवाही के लिए पुलिस के गवाहों को पेश नहीं करने पर अभियोजन साक्ष्य का अवसर समाप्त कर दिया है.
कोर्ट ने अब अभियुक्तों के बयान के लिए 20 अक्टूबर की तारीख तय की है. कोर्ट ने 20 अक्टूबर को अभियुक्तगण अरविंद कुमार सिंह गोप, धीरेंद्र सिंह, शैलेंद्र सिंह, मेराज अहमद, मुकेश शुक्ला, मनोज सिंह, जितेंद्र मिश्रा, विवेकानंद, प्रद्युम्न वर्मा, विष्णुकांत पांडेय, राजीव कुमार सिंह और रमेश प्रताप सिंह को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया है. वहीं, कोर्ट ने अपने इस आदेश की प्रति जिलाधिकारी और पुलिस आयुक्त के साथ ही पुलिस महानिदेशक को भी भेजने का आदेश दिया है. थाना हसनगंज से संबधित यह मामला लखनऊ विश्वविद्यालय से जुड़ा है.
21 फरवरी 1994 को इस मामले में हत्या का प्रयास व अन्य गम्भीर धाराओं में एफआईआर खुद पुलिस ने दर्ज कराई थी. इस मामले में गवाही की प्रक्रिया चल रही थी, लेकिन पिछले दो साल से अभियोजन की ओर से कांस्टेबल सुरेश कुमार सिंह, राजेन्द्र प्रताप सिंह और प्रेम शंकर भारती को गवाही के लिए पेश नहीं किया जा सका, जबकि अदालत ने पिछली तारीख पर अंतिम अवसर दिया था. इस संदर्भ में पुलिस के आला अधिकारियों को भी कई बार पत्र भेजा गया था, लेकिन इनकी ओर से भी कोई आख्या तक नहीं दी गई.
हसनगंज के दरोगा बीएस सिंह ने 21 फरवरी 1994 को रिपोर्ट दर्ज करके बताया था कि लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव होने वाले थे, जिसमें छत्रसंघ महामंत्री ओंकार भारती बाबा और अरविंद सिंह गोप अध्यक्ष पद के लिए प्रचार कर रहे हैं और इसी प्रचार की रंजिश को लेकर 21 फरवरी को दिन में ओंकार भारती और अरविंद सिंह गोप के समर्थक छात्र हथियारों से लैस होकर कैशियर ऑफिस के सामने आपस मे भिड़ गए. गाली-गलौच व मारपीट करते हुए एक दूसरे पर गोलियां और बम चलाना शुरू कर दिया. गोली और बम की आवाज सुनकर पुलिस पहुंची और मौके से ओंकार भारती और मेराज को कारतूसों के साथ गिरफ्तार किया.अरविंद सिंह गोप की भी गिरफ्तारी की गई.