लखनऊ : गर्भाधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व निदान तकनीकि अधिनियम (पीसीपीएनडीटी एक्ट) यानी गर्भ में लिंग की पहचान करने के खिलाफ कानून को बेहतर ढंग से लागू करने के लिए सोमवार को मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय सभागार में क्षेत्र स्तर की कार्यशाला आयोजित हुई. जिसमें लखनऊ सहित 14 जनपदों के प्रतिनिधि शामिल हुए. कार्यशाला की अध्यक्षता मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. मनोज अग्रवाल ने की. स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार इस मौके पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि भ्रूण हत्या रोकने के लिए सरकार ने कानून तो लागू कर दिया है, लेकिन इसकी सार्थकता तभी है जब सभी का सहयोग मिले. पीसीपीएनडीटी एक्ट 1994 के अनुसार गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जांच करना या करवाना दोनों ही कानूनन दंडनीय अपराध है. मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने सभी स्वास्थ्य अधिकारियों से कहा कि इस अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू कराएं. पीसीपीएनडीटी के नोडल अधिकारी डॉ. केडी मिश्रा ने कहा कि लिंग जांच करके बताने वाले को पांच साल की सजा या एक लाख का जुर्माना तो है ही साथ में जो व्यक्ति भ्रूण लिंग जांच करवाता है उस को को पांच साल की सजा या 50 हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. इसके साथ ही आम आदमी भी इस गैरकानूनी काम को रोकने में स्वास्थ्य विभाग की मदद कर सकते हैं.
Lucknow Medical News : गर्भ में लिंग की पहचान करने के खिलाफ बने कानून पर हुई चर्चा, जानिए दंड के प्रावधान
पीसीपीएनडीटी एक्ट के अनुसार गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग की जांच करना और करवाना दोनों ही कानूनन अपराध है. इस विषय पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय सभागार में कार्यशाला आयोजित हुई. इस दौरान कानून में दंड आदि प्रावधानों पर चर्चा की गई.
भ्रूण हत्या को रोकने के लिए सरकार द्वारा "मुखबिर योजना' चलाई जा रही है. आम आदमी इस योजना से जुड़कर लिंग चयन, भ्रूण हत्या, अवैध गर्भपात में संलिप्त व्यक्तियों व संस्थानों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही में सरकार की मदद कर सकते हैं और उसके एवज में सरकार से प्रोत्साहन राशि प्राप्त कर सकते हैं. नोडल अधिकारी ने बताया कि मुखबिर योजना के तहत तीन सदस्यीय टीम का गठन किया जाता है जिसमें एक गर्भवती होती है. जो भी व्यक्ति भ्रूण हत्या होने की सूचना टीम को देता है उसे इनाम के तौर पर दो लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है. इस योजना की अहम बात है कि सूचना देने वाले का नाम गुप्त रखा जाता है. टीम को भ्रूण हत्या करने वाले केंद्रों का स्टिंग ऑपरेशन करना होता है और इसका वीडियो बनाकर स्वास्थ्य विभाग को देना होता है. इसके बाद स्वास्थ्य विभाग पुलिस को लेकर आगे की कार्यवाही करती है. स्टिंग करने वाली टीम को प्रति स्टिंग दो लाख रुपये दिए जाने का प्रावधान है. जिसमें एक लाख रुपये गर्भवती को 60 हजार रुपये मुखबिर को और 40 हजार रुपये टीम के तीसरे सदस्य को दिए जाते हैं.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के पीसीपीएनडीटी के सलाहकार अरविंद ने इस एक्ट को जिले स्तर पर स्वास्थ्य केंद्रों एवं निजी अस्पताल में किस तरह से लागू किया गया गया और इसके प्राशासनिक ढांचे के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि पीसीपीएनडीटी की सारी प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी गई है. ऑनलाइन ही पता चल जाता है कि किसने अल्ट्रासाउंड किया है और किसने और क्यों करवाया है. अल्ट्रासाउंड केंद्र को www.pyaribitia.com फॉर्म-एफ भरकर अपलोड करना होता है. जिसमें अल्ट्रासाउंड करने और करवाने वाले का सारा विवरण होता है और एक पंजीकरण नंबर भी होता है. इस तरह से सारी जानकारी मिलजाती है. रेडियोलॉजिस्ट डॉ. पीके श्रीवास्तव ने अधिनियम के नियमों के बारे में विस्तार से जानकारी दी.
इस मौके पर अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरवी सिंह, डॉ. बिमल बैसवार, उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. एपी सिंह, डॉ. निशांत निर्वाण, डॉ. संदीप सिंह, डॉ. सोमनाथ सिंह जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी योगेश रघुवंशी, जिला कार्यक्रम प्रबंधक सतीश यादव, पीसीपीएनडीटी के जिला समन्वयक शादाब, पीसीपीएनडीटी के विधि सलाहकार प्रदीप मिश्रा, पीएमएमवीवाई के जिला समन्वयक् सुधीर वर्मा, मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के अन्य अधिकारी और कर्मचारी, जिला अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों (सीएचसी) व बाल महिला चिकित्सालय (बीएमसी) की स्त्री रोग विशेषज्ञ, रेडियोलाजिस्ट तथा जिला सलाहकार समिति की सदस्य रंजना द्विवेदी, मधुबाला और एडवोकेट प्रदीप मिश्रा और सहयोगी संस्था सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफॉर) से ज्योति मिश्रा मौजूद रहीं.
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