लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक जमीन पर बीस साल पुराने कथित कब्जे को अतिक्रमण मानते हुए, इसे हटाने के राज्य सरकार के कदम पर कहा है कि यह काम प्रशंसनीय तो है. लेकिन सरकार को यह भी बताना होगा कि किन अधिकारियों की मिलीभगत से उक्त अतिक्रमण अब तक बना हुआ था और सरकार ने उन अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की है.
न्यायालय ने कहा कि जिस विभाग व अधिकारी का जिम्मा उक्त जमीन को अतिक्रमण से मुक्त रखने का था, उसकी मिलीभगत के बिना यह अतिक्रमण नहीं हो सकता है. न्यायालय ने इन टिप्पणियों के साथ प्रमुख सचिव, राजस्व को चार सप्ताह में मामले की जांच कर संबंधित अधिकारी की जिम्मेदारी तय करने का आदेश दिया है.
यह आदेश न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की एकल पीठ ने महेश कुमार अग्रवाल की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया. याचिका में सहायक कलेक्टर सीतापुर के 30 दिसम्बर 2021 तथा कलेक्टर सीतापुर के 10 जून 2022 के आदेशों को चुनौती दी गई है. उक्त आदेशों में याची को ग्राम सभा की एक जमीन पर अतिक्रमणकारी करते हुए, उस पर पांच लाख चालीस हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया. जुर्माना न अदा करने पर उक्त जमीन पर बने निर्माण को गिरा दिया गया.