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लखनऊ हाईकोर्ट बेंच ने गोरखपुर में हुई बच्चों की मौत पर याचिका जताई नाराजगी

उत्तर प्रदेश की लखनऊ हाईकोर्ट बेंच ने गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 2017 में हुई बच्चों की मौतों पर याचिका पर जवाब दाखिल न होने पर नाराजगी जताई है. वहीं दूसरे मामले में सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा 2018 का परिणाम घोषित करने का आदेश राज्य सरकार को देने से इंकार कर दिया है.

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लखनऊ हाईकोर्ट बेंच ने दो मामलों में सुनाया फैसला

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Published : Jan 8, 2020, 1:55 PM IST

लखनऊ:हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में 2017 में हुई कई बच्चों की मौतों की न्यायिक जांच कराने की मांग वाली जनहित याचिका पर जवाब न दाखिल होने पर नाराजगी जताई है. हालांकि न्यायालय ने राज्य सरकार को पुनः तीन सप्ताह का समय प्रदान कर दिया. मामले की अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी.

यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज कुमार जायसवाल और न्यायमूर्ति आलोक माथुर की खंडपीठ ने सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज नाम की संस्था की ओर से दाखिल याचिका पर पारित किया. उक्त याचिका वर्ष 2017 में दाखिल की गई थी. न्यायालय ने प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह की बहस सुनने के बाद राज्य सरकार को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था लेकिन अब तक जवाब नहीं दाखिल किया गया.

लखनऊ हाईकोर्ट ने क्वालिफाइंग मार्क्स घटाने से इंकार किया
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कम क्वालिफाइंग मार्क्स वाले शासनादेश के अनुसार सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा 2018 का परिणाम घोषित करने का आदेश राज्य सरकार को देने से इंकार कर दिया है. इसके साथ ही न्यायालय ने 20 फरवरी 2019 के शासनादेश को निरस्त किये जाने की मांग भी ठुकरा दी है.

न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन ने 57 याचिकाओं को किया खारिज
यह आदेश न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की एकल सदस्यीय पीठ ने सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा 2018 के सैकड़ों अभ्यर्थियों की ओर से दाखिल 57 याचिकाओं को खारिज करते हुए, पारित किया. याचिकाओं में कहा गया था कि 9 जनवरी 2018 के शासनादेश के मुताबिक उक्त परीक्षा के सम्बंध में सामान्य और ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए क्वालिफाइंग मार्क्स 67 अर्थात 45 प्रतिशत था, जबकि अनुसूचित जाति और जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए यह 60 अर्थात 40 प्रतिशत था.

हालांकि बाद में राज्य सरकार ने 21 मई 2018 को नया शासनादेश पारित करते हुए, क्वालिफाइंग मार्क्स को घटाकर 33 व 30 प्रतिशत कर दिया जबकि 27 मई 2018 को ही परीक्षा होनी थी. कुछ अभ्यर्थियों ने 21 मई 2018 के शासनादेश को यह कहते हुए चुनौती दी कि परीक्षा के मात्र छह दिन पहले परीक्षा का मानदंड परिवर्तित करना विधि सम्मत नहीं है. तब न्यायालय ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए, 21 मई 2018 के शासनादेश पर रोक लगा दी थी. न्यायालय के रुख को देखते हुए, राज्य सरकार ने 20 फरवरी 2019 को नया शासनादेश पारित कर, 21 मई 2018 के शासनादेश को निष्प्रभावी कर दिया.

परीक्षा 68 हजार 500 रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया से सम्बंधित
याचियों द्वारा 20 फरवरी 2019 के शासनादेश को चुनौती देते हुए दलील दी गई कि उक्त परीक्षा 68 हजार 500 रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया से सम्बंधित थी जबकि 21 मई 2018 के शासनादेश को निष्प्रभावी करने के कारण मात्र 41 हजार 556 अभ्यर्थी ही क्वालिफाई कर सके. यदि 21 मई 2018 के शासनादेश के अनुसार परिणाम घोषित किया जाए तो याचियों समेत तमाम अभ्यर्थियों के क्वालिफाई करने के कारण सभी रिक्तियां भर सकती हैं.

हालांकि न्यायालय ने याचीपक्ष की सभी दलीलों को खारिज कर दिया. न्यायालय ने कहा कि यह स्थापित नियम है कि जब किसी मानदंड के तहत भर्ती प्रक्रिया शुरू हो जाती है तो उसे बीच में बदला नहीं जा सकता, 21 मई 2018 का शासनादेश परीक्षा के मात्र छह दिन पहले पारित किया गया था. लिहाजा उसे निष्प्रभावी करने सम्बंधी शासनादेश को निरस्त नहीं किया जा सकता.

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