लखनऊ : हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने क्षमादान के एक आदेश को खारिज करते हुए अपनी तल्ख टिप्पणी में कहा कि समझ नहीं आता कि तिहरे हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा पाए कैदी को क्षमा देने के लिए राज्यपाल को किस बात ने प्रेरित किया. न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी को भी दोहराया, जिसमें कहा गया है कि क्षमादान के मामले में राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल का कोई निर्णय यदि मनमानीपूर्ण है तो इसका न्यायिक पुनरीक्षण किया जा सकता है.
2012 में हुई थी आजीवन कारावास की सज़ा
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति राजीव सिंह की खंडपीठ ने प्रकाशवती सिंह की वर्ष 2017 की एक याचिका पर पारित किया. याचिका में बुलंदशहर के एक तिहरे हत्याकांड में वर्ष 2012 में आजीवन कारावास की सजा पाए अभियुक्त जैनी सिंह को मिले क्षमादान को चुनौती दी गई थी. मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि उक्त कैदी ने मात्र पांच वर्ष एक माह और 23 दिन जेल में बिताए. न्यायालय ने पाया कि समाजवादी सैनिक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष सत्यवीर सिंह ने तत्कालीन कारागार मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया को पत्र लिखकर जैनी सिंह की बीमारी व उम्र का हवाला देते हुए उसकी रिहाई का अनुरोध किया. याची की ओर से कहा गया कि जिलाधिकारी और एसएसपी की रिपोर्ट पर गौर किए बिना तत्कालीन कारागार मंत्री ने जैनी सिंह की 70 वर्ष की उम्र के आधार पर उसकी रिहाई का अनुमोदन किया, जिसे तत्कालीन राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने मंजूर कर लिया.