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Published : Apr 9, 2021, 11:14 AM IST

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लड़ाइयों के लिए मशहूर है राजधानी की ये कोठी, जानिए पूरी कहानी

राजधानी लखनऊ वैसे तो बहुत ही चीजों के लिए फेमस है. लजीज खाना हो या फिर चिकन का कारखाना, दोनों के ही देश-विदेश में लाखों दीवाने हैं. हम बात करें यहां कि इमारतों की तो लोगों का दिल इन इमारतों को देखते ही उन पर आ जाता है. पुराने लखनऊ में पैर रखते ही लोग अपने आपको नवाबों के शहर में महसूस करने लगते हैं. चाहे इमामबाड़ा हो या फिर भूल-भुलैया, इनका इतिहास लोगों को सदियों पीछे ले जाता है. राजधानी की एक और इमारत है, जिसका इतिहास उसकी बनावट की तरह ही खूबसूरत है.

जानिए जनरल वाली कोठी का इतिहास
जानिए जनरल वाली कोठी का इतिहास

लखनऊ: राजधानी में अवध के नवाबों ने एक से बढ़कर एक बेहतरीन और खूबसूरत इमारतों का निर्माण कराया है. यह इमारतें स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है. अपनी मजबूती के कारण इनका अस्तित्व आज भी लखनऊ की सरजमीं पर बना हुआ है. इन्हें देखने के लिए पर्यटक आज भी यहां पहुंचते हैं. नवाब सआदत अली खान ने अपने समय में कई सुंदर इमारतों का निर्माण कराया था. इनमें से एक जनरल वाली कोठी भी है. इस कोठी में अवध के नवाब सआदत अली खान के दौर में सेना के जनरल रहने लगे. इसी वजह से इसे जनरल वाली कोठी कहा जाने लगा. इसकी खासियत ये है कि ये कोठी उस दौर की इंडो-यूरोपियन स्थापत्य शैली का नमूना है. इसे आज गोल मेहराब कहा जाता है. वर्तमान में यह कोठी भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा संरक्षित है. पर्यटकों को इसे देखने के लिए किसी भी तरह का कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है.

राजधानी की जनरल वाली कोठी

अवध के छठे नवाब ने बनवाई थी खूबसूरत कोठी

राजधानी लखनऊ में अवध के नवाबों में छोटे नवाब सआदत अली खान ने एक से बढ़कर एक सुंदर कोठियां बनवाई हैं. जनरल वाली कोठी इनमें से एक है. यह कोठी छतर मंजिल परिसर के बाहर बनी हुई है. इस खूबसूरत कोठी का मुख्य द्वार गोमती नदी की तरफ है. अवध के नवाबों में यह प्रथा थी कि वह अपने एक बेटे को सेना का प्रमुख बना देते थे. अक्सर बड़े बेटे को गद्दी का उत्तराधिकारी और छोटे बेटे को सेनापति पद का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया जाता था.

स्थापत्य कला का है बेजोड़ नमूना

अवध के छठे नवाब सआदत अली खान के द्वारा बनवाई गई जनरल वाली कोठी उस दौर की इंडो-यूरोपियन स्थापत्य शैली का नमूना है. इसे आज गोल मेहराब कहा जाता है. कोठी में घोड़े की नाल की मेहराब है. यही इस कोठी की खासियत है. इससे पहले नवाबी दौर में इमारतों की मेहराबें घोड़े की नाल के आकार की नहीं हुआ करती थी. कोठी के भीतर का गोल कमरा बहुत विशाल है. इसमें यूरोपियन शैली के आतिशदान और रोशनदान हैं.
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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में कोठी को पहुंचा नुकसान

नवाबों के द्वारा बनाई गई कोठियों को आजादी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय नुकसान भी पहुंचा था. इन कोठियों पर अंग्रेज कब्जा करना चाहते थे. इसके जरिए ही वह अवध पर अपनी हुकूमत कर सकते थे. 1857 की जंग हुई तो अंग्रेजों ने इस कोठी पर भी हमला किया. इसकी वजह से कोठी को बहुत नुकसान हुआ. अंग्रेजों ने जब अवध पर कब्जा जमा लिया, तो क्षतिग्रस्त हुई इस कोठी की मरम्मत कराई. मरम्मत के बाद अंग्रेजों ने यहां अंग्रेजी पुलिस विभाग का ऑफिस खोल दिया. तब ये कोठी अंग्रेज एसपी की कोठी के नाम से पहचानी जाने लगी. 1910 में कोठी को संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया. तब से ये पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक है.

ये कहते हैं इतिहासकार

लखनऊ के वरिष्ठ इतिहासकार रवि भट्ट बताते हैं कि छतर मंजिल के परिसर के बाहर सड़क किनारे स्थित जनरल वाली कोठी का निर्माण अवध के छठे नवाब सआदत अली खान ने करवाया था. इस कोठी को जनरल वाली कोठी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यहां पर जनरल रहते थे. नवाब के छोटे बेटे सेना के सेनापति होते थे. उन्हें जनरल कहा जाता था. जंग ए आजादी के दौर में यह कोठी लड़ाई का एक बड़ा केंद्र भी रही है.

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