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ऊर्जा संरक्षण के लिए नेडा के साथ एमओयू करेगा एलडीए

लखनऊ विकास प्रधिकरण के निर्माणाधीन प्रधानमंत्री आवासों में नई तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. बसंतकुंज योजना में एनर्जी कंजर्वेशन बिल्डिंग कोड (ईसीबीसी) का पालन करते हुए पीएम आवास के मकान बन रहे हैं, इसमें 20 से 35 फीसद बिजली की बचत होगी.

बैठक करते अधिकारी.
बैठक करते अधिकारी.

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Published : Nov 20, 2020, 7:56 AM IST

लखनऊ:एलडीए के निर्माणाधीन प्रधानमंत्री आवासों में नई तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. पहली बार गरीबों के भवन बनाने में केंद्र की ऊर्जा संरक्षण संबंधित गाइड लाइन का ध्यान रखा गया है. बसंतकुंज योजना में एनर्जी कंजर्वेशन बिल्डिंग कोड (ईसीबीसी) का पालन करते हुए पीएम आवास के मकान बन रहे हैं, इसमें 20 से 35 फीसद बिजली की बचत होगी. इस ऊर्जा संरक्षण के संबंध में यूपी नेडा एवं लखनऊ विकास प्राधिकरण के बीच सोमवार को एमओयू साइन होगा. इससे पहले राजकीय निर्माण निगम लिमिटेड के साथ नेडा का करार हो चुका है.

दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया

गोमती नगर स्थित प्राधिकरण कार्यालय के सभागार में एनर्जी कंजर्वेशन बिल्डिंग कोड (ईसीबीसी) पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. यूपी नेडा के सीनियर प्रोजेक्ट आफिसर डॉ. रामकुमार ने अभियंताओं को बताया कि ईसीबीसी एक ऐसा मॉडल है, जिसके सही इस्तेमाल से न केवल बिल्डिंग सुंदर बनाई जा सकती है, बल्कि सोलर एनर्जी को बढ़ावा देकर बिजली की भरपूर बचत भी की जा सकती है. इसमें बिल्डिंग मैटेरियल अलग होगा. भवन के आतरिक हिस्से में पूरी रोशनी और हवा का इंतजाम होगा. ताकि बिजली खपत कम से कम हो.

रियल इस्टेट क्षेत्र में बढ़ेगी ऊर्जा की मांग

प्राधिकरण के अधिशासी अभियंता अवधेश तिवारी ने बताया कि विद्युत मंत्रालय ने रिहायशी इमारतों के लिए ऊर्जा संरक्षण इमारत कोड (ईसीबीसी-आर) इको निवास संहिता, 2018 शुरू की है. इस कोड की शुरूआत राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस के मौके पर की गई थी. इस तकनीकी के आधार पर ही बसंतकुंज योजना में पीएम आवास बनाये जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि आने वाले 10-15 सालों में रियल इस्टेट क्षेत्र में ऊर्जा की मांग में सबसे अधिक बढ़ोतरी होगी. ऐसे में इंजीनियरों, आर्किटेक्टों को ऊर्जा संरक्षण की दिशा में जागरूक करने के लिए नेडा के माध्यम से प्रशिक्षित किया जा रहा है.

इमारत के अंदर के हिस्से को शुष्क, गर्म और ठंडा रखेगा

पीडब्लूसी कंल्सटेंट कंपनी की आर्किटेक्ट ग्लोरी श्रीवास्तव ने विस्तार से इसके बारे में प्राधिकरण के इंजीनियरों को अवगत कराया. बताया गया कि यह कदम रिहायशी क्षेत्र में ऊर्जा की बचत के मद्देनजर उठाया गया है. इसका मकसद ऐसे अपार्टमेंट और टाउनशिप का डिजाइन तैयार करके बढ़ावा देने का है, जिससे उनमें रहने वालों को ऊर्जा की बचत के लाभ दिए जा सके. इस कोड को बिल्डिंग मैटेरियल आपूर्तिकतार्ओं, डेवलपरों, वास्तुकारों और विशेषज्ञों समेत सभी साझेदारों के साथ विमर्श के बाद तैयार किया गया है.

2030 तक प्रतिवर्ष एक अरब यूनिट बिजली की बचत की संभावना

कोड में सूचीबद्ध मानदंडों जलवायु और ऊर्जा संबंधी आंकड़ों का इस्तेमाल करके कई मानकों के आधार पर विकसित किया गया है. इसमें इमारत के अंदर के हिस्से को शुष्क, गर्म और ठंडा रखने व इमारत के बाहरी हिस्से की नींव के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित किए गए हैं. इस कोड को लागू करने से 2030 तक प्रतिवर्ष एक अरब यूनिट बिजली की बचत की संभावना है. यह करीब 100 मिलियन टन कार्बनडाई ऑक्साइड के उत्सर्जन के बराबर है.

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