लखनऊ : सरोजनी नगर के बिजनौर स्थित सीआरपीएफ कैंप में शुक्रवार को स्लो कंटेंट प्राइवेट लिमिटेड और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गया. यह समझौता स्लो कंटेंट के द्वारा देशभर में सीआरपीएफ की वीरता और गौरव की अनकही कहानियों को पेश करने के लिए किया गया है. इस अवसर पर सीआरपीएफ के महानिदेशक डॉ. एपी महेश्वरी, सीआरपीएफ डीआईजी लखनऊ एसपी सिंह, स्लो प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक नीलेश मिश्रा, निदेशक यमिनी त्रिपाठी सहित कई अधिकारी मौजूद रहे.
स्लो कंटेंट प्राइवेट लिमिटेड और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के बीच समझौता. सीआरपीएफ में उत्तर प्रदेश के 50 हजार जवान
इस अवसर पर सीआरपीएफ के महानिदेशक डॉ. एपी महेश्वरी ने कहा कि सीआरपीएफ देश का सबसे सुशोभित पुलिस बल है. जिसे 2112 वीरता पदक मिले हैं. यह पदक उन्होंने देश की निस्वार्थ भावना से सेवा करके हासिल किए हैं. सीआरपीएफ ने अब तक अपने 2224 बहादुरों का बलिदान दिया है. इन बलदानियों ने अपने देश की परवाह अपने परिवार और साथियों से ज्यादा की है. उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में सीआरपीएफ में तीन लाख से ज्यादा जवान कार्यरत हैं. जिसमें उत्तर प्रदेश के 50 हजार से ज्यादा जवान शामिल हैं. सीआरपीएफ देश के सभी प्रदेशों में सर्वमान्य सुरक्षा बल है.
स्लो कंटेंट प्राइवेट लिमिटेड और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के बीच समझौता. डॉ. एपी महेश्वरी ने बताया कि स्लो ऐप एक अनोखा प्लेटफार्म है. इसके जरिए नीलेश मिश्रा हमारे बहादुर जवानों की गौरव गाथा दुनिया के सामने पेश करेंगे. इस मौके पर स्लो कंटेंट प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक नीलेश मिश्रा ने कहा कि एक लेखक और कहानीकार के रूप में मुझे लगता है की अनसुनी कहानियों को अपनी आवाज देना हमारी जिम्मेदारी है. सीआरपीएफ के जवान हमेशा देश के नागरिकों की सेवा और सहयोग के लिए जाने जाते हैं. उनकी वीरता की हर कहानी प्रेरणादायक है और उसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहिए. हमें सीआरपीएफ को सार्थक और समृद्ध तरीके से स्लो पर प्रस्तुत करने में बहुत ही गर्व महसूस होगा.
क्या है स्लो एप
स्लो एक ऐसा ऐप है जो देश के प्रसिद्ध लोगों के जीवन को कहानी और वीडियो के रूप में प्रसारित करता है. सीआरपीएफ के साथ समझौता होने के बाद अब जवानों की वीर गाथा को समाज में प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाने का कार्य भी इस ऐप के जरिए किया जाएगा. इस मौके पर यम बहादुर थापा शौर्य पुरस्कार से नवाजे गए. इन्होंने संसद पर हुए हमले के दौरान अपनी जान की परवाह न करते हुए गोलियां लगने के बावजूद आतंकवादियों से लोहा लिया और उन्हें संसद भवन में प्रवेश नहीं करने दिया.