लखनऊ: राजधानी में हजारों सीएनजी वाहनों में एक्सपायर्ड सिलेंडर लगे हैं, जो कभी भी बड़े हादसे की वजह बन सकते हैं. बीते दिनों चौक इलाके में एक सीएनजी वाहन में आग लगने के बाद सिलेंडर ब्लास्ट कर गया था, जिससे कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे. तमाम दुर्घटनाओं के बावजूद प्रशासन आंख मूंदकर बैठा है और आमजन भी नहीं चेत रहे हैं.
जानकारी देते रोड सेफ्टी एक्सपर्ट. गत कुछ महीनों के दौरान कई सीएनजी वाहनों में आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं. अचानक आग लगने से कइयों की जान पर बन आई. राजधानी में भी हजारों वाहनों में एक्सपायर्ड सिलेंडर लगे हैं. न ही इन वाहनों के सिलेंडर का हाइड्रोलिक टेस्ट कराया जाता है और न ही ऐसे वाहनों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है.
मानकों का रखना चाहिए पूरा ध्यान
प्रदेश के अलग-अलग जिलों में सीएनजी वाहनों में आग लगने के मामले सामने आए हैं. वहीं अब गर्मी शुरू हो गई है, इसलिए सीएनजी वाहनों में आग लगने का खतरा और अधिक होगा. रोड सेफ्टी एक्सपर्ट सैयद एहतिशाम बताते हैं कि हमारे वाहन में अगर सीएनजी सिलेंडर लगा है तो उसके रखरखाव का हमें पूरा ध्यान देना चाहिए. कंपनी के मानक के अनुसार सर्विसेज व मेंटेनेंस का पूरा ध्यान रखना चाहिए. इसके बाद भी अगर कभी गंध आती है तो तुरंत उसको चेक कराना चाहिए.
रोड सेफ्टी एक्सपर्ट सैयद एहतिशाम बताते हैं कि सीएनजी फिटेड गाड़ियों में दुर्घटना के बाद आग लगने की संभावना अधिक होती है, इसलिए मानकों का पूरा ध्यान रखना चाहिए. शहर में अधिकतर कमर्शियल गाड़ियों में सीएनजी का इस्तेमाल किया जा रहा है. इन वाहनों में जो सीएनजी सिलेंडर लगे होते हैं, परिवहन विभाग की तरफ से हर तीन साल पर इनकी टेस्टिंग होनी चाहिए. फिटनेस के समय उस सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ती है. हर तीन महीने पर लीकेज टेस्टिंग का प्रमाण पत्र भी होना चाहिए.
शॉर्ट सर्किट से भी लगती है आग
प्राइवेट वाहनों को भी लीकेज की जांच के साथ-साथ सिलेंडर की जांच कराना चाहिए. कंपनी से जो सीएनजी वाहन आते हैं, वह भारत सरकार के मानकों पर खरे उतरते हैं. थर्ड पार्टी से जो सीएनजी लगाई जाती है, उसमें लोग सुरक्षा को कम ध्यान में रखकर पैसे को बचाने की कोशिश करते हैं, जो काफी हद तक खतरनाक भी साबित हो सकता है. अक्सर वाहनों में आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट भी देखा गया है.
क्या हैं नियम
- सीएनजी सिलेंडरों का नियमित टेस्ट कराना चाहिए.
- पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन नागपुर के अनुसार सिलेंडर का फिटनेस प्रमाण पत्र देखने के बाद ही गैस देनी चाहिए.
- व्यवसायिक वाहनों का प्रत्येक दो साल पर और निजी वाहनों का तीन साल पर हाइड्रोलिक टेस्ट करवाना चाहिए.