लखनऊ: लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. न्यायपालिका के पास अपार शक्तियां होने के बावजूद भी कई बार पीड़ित को समय से न्याय नहीं मिल पाता है, क्योंकि हमारी अदालतों में क्षमता से अधिक मुकदमे चल रहे हैं. इन मुकदमों की संख्या अधिक होने के चलते जहां पीड़ितों को समय से न्याय नहीं मिल पाता है, वहीं मुकदमे की पैरवी में समय और धन दोनों व्यय होता है. ऐसे में न्यायालय में चल रहे मुकदमे जिन्हें आपसी सहमति के आधार पर सुलझाया जा सकता है. इसके निपटारे के लिए लोक अदालत की व्यवस्था की गई है.
लखनऊ: राष्ट्रीय लोक अदालत में आपसी सहमति से सुलझाए जाएंगे विवाद
राजधानी लखनऊ में 14 सितबंर को लोक अदालत लगाकर आपसी समझौते के आधार पर वाद का निपटारा किया जाएगा. इससे एक ओर लोगों को राहत मिलेगी तो वहीं कोर्ट में मुकदमों की संख्या कम होगी.
समझौते के आधार पर किया जाएगा वाद का निपटारा
अभियान के तहत लोक अदालत लगाकर आपसी समझौते के आधार पर वाद का निपटारा किया जाता है, जिससे कोर्ट में मुकदमों की संख्या कम होती है और पीड़ितों को समय से न्याय मिलने में मदद होती है. पीड़ितों को समय से न्याय उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 14 सितंबर को सुबह 10 बजे से जिला न्यायालय लखनऊ में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें भूमि विवाद, बैंक वसूली, किराएदार वाद, नगर निगम, नगर पालिका कर वसूली वाद समेत 22 तरह के विवादों का निस्तारण आपसी समझौते के आधार पर किया जाएगा. 24 सितंबर को आयोजित होने वाली लोक अदालत से बड़ी संख्या में विवादों से निपटारा मिलेगा. इससे एक ओर लोगों को राहत मिलेगी तो वहीं कोर्ट में मुकदमों की संख्या कम होगी.
लखनऊ में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन
सुरेंद्र कुमार यादव अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण/ जनपद न्यायाधीश ने जानकारी देते हुए बताया कि दिनांक 14 सितबंर को सुबह 10 बजे से जनपद न्यायालय लखनऊ में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया जाना है, जिसमें भूमि अध्यापन वाद, बैंक वसूली वाद, किराया वाद समेत तमाम तरह के विवादों का निस्तारण किया जाएगा.
अपर जनपद न्यायाधीश अरविंद मिश्रा ने बताया कि न्यायालयों में भारी संख्या में वाद विचाराधीन हैं. ऐसे में लोक अदालत से इन वादों के निस्तारण करने में तेजी आती है. लोक अदालत में आपसी सहमति के आधार पर वादों का निस्तारण किया जाता है, जिससे दोनों पक्षों को राहत मिलती है तो वहीं न्यायालय में विचाराधीन वादों की संख्या में गिरावट आती है.