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साहब ! बीवी के जेवर तक बेच दिए, लेकिन भूख है कि मिटती नहीं... - लॉकडाउन का मजदूरों पर असर

लॉकडाउन न जाने गरीब मजदूरों को कैसे-कैसे दिन दिखाएगा. काम धंधा ठप होने के कारण भूख ने इन मजदूरों को इतना मजबूर कर दिया कि उन्हें घर का सामान और बीवी के जेवर तक बेचना पड़ गया. इससे कुछ दिन तो काम चल गया, लेकिन अब इनके पास बेचने के लिए भी कुछ नहीं है. अब इनकी जिंदगी स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा दिए जा रहे लंच पैकेट के भरोसे ही किसी तरह कट रही है. देखिए लखनऊ से यह स्पेशल रिपोर्ट...

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लॉकडाउन का लखनऊ के मजदूरों पर असर.

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Published : May 12, 2020, 12:24 PM IST

लखनऊ:लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर मजदूर वर्ग पर पड़ा है. सरकारें मजदूरों तक खाना पहुंचाने का दावा तो कर रही है, लेकिन कुछ गांवों में हकीकत इससे जुदा है.

..कौन सुनेगा इनकी फरियाद.

कोरोना वायरस महामारी की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया, जिसमें सभी औद्योगिक इकाईयां बंद हो गईं. दिहाड़ी मजदूरों के सामने आमदनी और परिवार को चलाने का संकट खड़ा हो गया. फैक्ट्री या दुकानों पर काम करने वाले मजदूरों के सामने जब कोई रास्ता नहीं बचा तो घर का सामान और बीवी के जेवर बेचकर जो पैसे मिले, उससे उनका कुछ दिन तो गुजर बसर हुआ, लेकिन अब घर में बेचने लायक कोई सामान नहीं बचा है. स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा लंच पैकेट दिए जाते हैं, जिसके भरोसे उनकी जिंदगी चल रही है.

देखिए यह स्पेशल रिपोर्ट...

ईटीवी भारत की टीम राजधानी लखनऊ के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले मजदूरों की स्थिति का जायजा लेने पहुंची. मजदूरों ने बताया कि न तो उन्हें कोई सरकारी मदद मिल रही है और न ही अब उनके पास पैसे बचे हैं. घर में जो भी सामान और बीवी के जेवर थे, उसे बेचकर कुछ दिन तक तो काम चल गया, लेकिन अब खाने की फिर से समस्या खड़ी हो गई है. स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा जो लंच पैकेट दिए जाते हैं उन्हीं के भरोसे अपना और अपने परिवार का पेट पालने को मजबूर हो रहे हैं.

मजदूरों ने बताया कि कभी दोपहर में खाना मिलता है, कभी शाम को, तो कभी देर रात. बच्चों को भी बहला-फुसलाकर शांत कराना पड़ता है. निगाहें बस एक ही इंतजार में रहती हैं कि कब खाना आएगा, जिससे उनकी और उनके परिवार की भूख शांत हो सके.

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लॉकडाउन के बाद से ही लगातार शासन और प्रशासन हर व्यक्ति तक सुविधाएं पहुंचाने के दावे और वादे कर रहा है, लेकिन राजधानी लखनऊ के ग्रामीण क्षेत्र के रहने वाले इन मजदूरों के हालात उन सभी सरकारी दावों की पोल खोलता नजर आ रहा है. अब ऐसे में एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि जब प्रदेश की राजधानी का यह हाल है तो बाकी प्रदेश के जिलों का क्या होगा...

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